आज सुबह तेज वर्षा हुई, उसी वर्षा में वे मृणाल ज्योति गए. बच्चों को योग कराया और क्लब की सदस्याओं द्वारा दिया सामान सौंपा. एक अध्यापिका ने कुछ पैसे मांगे थे, वे भी उसे दिए, वर्ष के अंत तक धीरे-धीरे करके लौटा देगी, ऐसा उसने कहा है. पिछले चार दिनों से मन बुद्ध के साथ है. वह बुद्ध के जीवन पर आधारित धारावाहिक देख रही है, जो बुद्ध पूर्णिमा के दिन देखना आरम्भ किया था. उस दिन उनके निर्वाण का दृश्य देखा था. उनके उपदेश हृदय को छू गए थे, फिर जन्म से लेकर उनके बुद्ध बनने तक का संघर्ष देखा. कितने महान थे वे, कितने करुणावान और कितने बड़े तपस्वी किन्तु देवदत्त उन्हें कभी समझ नहीं पाया. उन्हें मरवाने के कितने षड्यन्त्र किये उसने. यशोधरा का त्याग भी अनुपम है, उसने बुद्ध के हृदय को समझ था. स्वयं में स्थित होकर ही कोई सुखों-दुखों के पार जा सकता है. मानव के शुभ कर्म एक दिन मुक्ति पथ पर ले जाते हैं और दुष्कर्म बन्धन की ओर. जिसे बुद्ध निर्वाण कहते हैं उसे ही ऋषि मोक्ष कहते हैं, जहां पूर्ण शांति है, जहां जाकर मन खो जाता है. जो सारे द्वंद्वों से अतीत है. जून आज पाँच दिनों के लिए बाहर गए हैं. अभी कुछ देर बाद नैनी व उसके साथ की महिलाएं आएँगी योग कक्षा के लिए, शाम के योग सत्र को एक घन्टा पहले खिसका दिया है क्योंकि शाम को मीटिंग है, फ्रिज को कल रात से बन्द किया है, भीतर की सारी बर्फ पिघल जाएगी तब वह अपना काम करना शुरू कर देगा. मानव का मन भी कभी कभी नकारात्मकता के कारण जम जाता है, फिर उसे साधना के द्वारा पिघलाया जाता है, पहले सा खुशनुमा हो जाता है, प्रेम की ऊष्मा जो भीतर दबी हुई थी, फिर झलकने लगती है. उसके सर के दाहिने भाग में ज्यादा देर तक स्क्रीन देखने के कारण तनाव महसूस हो रहा है, विश्राम देने से वह ठीक हो जायेगा. पिछले कई दिनों से नियमित लेखन नहीं हुआ. अब समझ-बुझ कर, जागकर लिखना होगा. इस समय मौसम सुहाना है, भीतर एक सहजता का अनुभव हो रहा है, ध्यान के बाद की सहजता ! भीतर के उस अछूते केंद्र का पता उसे भी मिल गया है, वर्षों पूर्व उसकी झलक मिली थी, पर उसमें हर पल स्थित रहने के लिए सजगता बहुत जरूरी है.
शाम के साढ़े चार बजे हैं. मन बुद्धमय हो गया है. उनकी मंजुल मूर्ति तथा सुंदर देशना भीतर तक छू जाती है. उनके उपदेश सरल हैं और अनुभव से उपजे हैं. वे सिद्धांत की बात नहीं कहते, व्यावहारिक ज्ञान देते हैं वे कहते हैं, सन्देह अति विकट शत्रु है, वह मानव को पतन की ले जाता है. ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, अग्नि के समान जलाते हैं और अहिंसा व करुणा आनंद को उपजाते हैं. बुद्ध शीलाचरण की बात करते हैं, फिर ध्यान का मन्त्र सिखाते हैं, जिससे विवेक का जन्म होता है, तथा शील का पालन सहज ही होने लगता है. ध्यान की गहराई में जो ज्ञान मिलता है, वही सच्चा ज्ञान है जिसके प्राप्त होने के बाद शील का पालन प्रयास पूर्वक नहीं करना पड़ता, लेकिन आरम्भ में तो पुरुषार्थ करना होगा, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा. शम, दम, तप, सन्तोष व ईश्वर प्राणिधान का पालन भी करना होगा. आज सुबह उठी तो एक स्वप्न चल रहा था, दुःस्वप्न ही कह सकते हैं अथवा तो पूर्व के किये अशुद्ध कर्मों का फल देने वाला स्वप्न ! बुआ जी को देखा, उनका मुख बिलकुल अलग था. उनकी पुत्री का विवाह हो रहा है. वह रसोईघर में है पर शौच का पालन नहीं किया. अतीत के कितने ही विकर्मों का स्मरण हो आया. वह जगी तो भीतर प्रार्थना चल रही थी. उनका अवचेतन मन नींद में भी सक्रिय रहता है. उठकर टहलने गयी, वर्षा के बाद सब कुछ साफ-सुथरा था, मौसम शीतल था. सद्गुरु को सुना जो कह रहे थे, यदि अपने घर वापस लौटना है तो पहले पूरी तरह थक जाओ, जैसे बुद्ध कहते हैं, अपने भीतर सुख के केंद्र को खोजना है तो जीवन में दुःख है इसे अनुभव करना होगा. भीतर जाकर पता चलता है, परम् आनंद व प्रेम का स्रोत भीतर ही है . आज भी बुद्ध के जीवन की गाथा देखी-सुनी. अब कुछ ही अंक रह गए हैं. मगध, कपिलवस्तु, कौशल आदि राज्यों में ही बुद्ध विहार करते थे, पर उनका धर्म पूरे विश्व में फ़ैल गया जैसे सदगुरू का सन्देश पूरे विश्व में अपनाया जा रहा है. इसी महीने उनका जन्मदिन है, उस दिन वे दोपहर को श्रमदान करेंगे और शाम को गुरुपूजा में सम्मिलित होंगे. जून आज तमिलनाडु जा रहे हैं, वह जो पौधे ले गए थे, नन्हे ने गमलों में लगा दिए हैं.
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बहुत आभार ! तिथि लिखने में कुछ भूल हुई है
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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