Friday, July 20, 2018

रामानुजन् पर किताब



पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा. आज वर्षा थमी है, पिछले दिनों आँधी-तूफ़ान और तेज वर्षा होती रही. आज रविवार है और ऐसा कम ही होता है कि रविवार की सुबह दस बजे तक वे सुबह का सारा काम निपटा चुके हों. जून बाजार जाकर साप्ताहिक खरीदारी भी कर आये हैं. कल दोपहर दो बजे उसे ‘मृणाल ज्योति’ जाना था, जून देर से घर लौटे, भोजन करके उठे तो एक बज कर दस मिनट हो चुके थे. कुछ देर आराम करने के लिए लेटे तो उसकी आँख लग गयी और जब उन्होंने उठाया तो दो बजकर दस मिनट हो गये थे. पहली बार किसी कार्यक्रम में देर से पहुंची, सभी प्रतीक्षा कर रहे थे, सामने बैठाया. कार्यक्रम अच्छा रहा. शाम को महीनों बाद पहले की तरह संध्या की, पहले भजन फिर ध्यान. जब से उसने योग कक्षा आरम्भ की है, यह क्रम टूट ही गया था. सुबह एक योग साधिका अपने पुत्र को लेकर आई थी. पुत्र को नेति क्रिया सीखनी थी व मालिश करना भी, उसके शरीर में जरा भी लोच नहीं है, नीचे बैठ नहीं सकता. वर्ष में एक बार दीपावली के दिन ही तेल लगाते हैं वे लोग, ऐसा माँ ने कहा. 
आज भी दिन भर बादल बरसते रहे. प्रातः भ्रमण भी नहीं हुआ. रात को तेज वर्षा के कारण टीवी का ट्रांसमिशन रुक गया. ग्यारह बजे गृह प्रवेश की पूजा के लिए क्लब के प्रोजेक्ट स्कूल जाना है. स्कूल की नई इमारत में पूजा है. वर्षों पहले नन्हे ने इसी किंडरगार्टन स्कूल में अपनी शिक्षा का आरम्भ किया था. पुस्तकालय में नई किताबें आई हैं, वह दो किताबें लायी है, पहली गूगल के सीईओ के बारे में है तथा दूसरी महान गणितज्ञ रामानुजन के बारे में. रामानुज की पुस्तक बहुत रोचक है. कल केरल में एक दुर्घटना के कारण कितने ही जीवन नष्ट हो गये. कल आतिशबाजी देखने का आनंद उठाने के लिए आये लोगों को आज चिता में शरण लेनी पड़ी है, जीवन कितना विचित्र है.

परसों से तीन दिनों का बीहू का अवकाश प्रारम्भ हो रहा है. सुबह उठने से पहले स्वप्न में देखा, एक श्वेत-श्याम चित्र दीवार पर लटका है. चेहरा थोड़ा जाना-पहचाना है, हँसती हुई तस्वीर है, दांत भी दिख रहे हैं. पूछा कौन है, उत्तर मिला, वह स्वयं ही है. मृत्यु के बाद यह तस्वीर लटकाई गयी है. साइड में एक और भी तस्वीर थी पर देखा ही नहीं उसकी तरफ, किस कदर खुद में ही खोया रहता है हर इन्सान. नींद मृत्यु की निशानी है, यह गुरू माँ से सुना था, पर ‘जगाने के लिए मृत्यु का स्मरण’ कितना अच्छा स्वप्न दिखाया आत्मा ने. उसके पूर्व भी एक स्वप्न चल रहा था. जिसमें एक छोटा सा बच्चा है, जो एक दुकान में होता है, वे दुकानदार से उसे ले लेते हैं. बाहर आकर वह रोने लगता है तो उसे कई बातें याद दिलाते हैं. एक बार पहले भी वह घर आकर रह चुका था. स्वप्नों की दुनिया कितनी विचित्र है.
आज बीहू के अवकाश का दूसरा दिन है. कल नवरात्रि का व्रत किया था, आज कन्या पूजन है. जून ने हलवा बनाया और चने भी उबाल दिए, शेष कार्य उसने किया. कन्याओं के साथ बालक भी आये और कुल पचीस बच्चे हो गये. उन्हें प्रसाद खाते देखकर अच्छा लग रहा था, जैसे भगवान को भोग लग गया हो. पहली बार पूरी ओलिव आयल में बनायीं, बहुत स्वादिष्ट थीं. नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, मालिन ने आकर घर का काम संभाला है. आज एसी में से एक गंध आ रही है, मकैनिक को बुलाना पड़ेगा.

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, यह इश्क़ नहीं आसान - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आदरणीय अनीता जी, ऐसा लगा जैसे सब कुछ अपने साथ घट रहा हो, परिवेश, शब्द , भावनाएं और चित्र .....निद्रा और मृत्यु...कितना कुछ इतनी सरलता से कह दिया
    अद्भुत... कोशिश करुँगी आपके ब्लॉग पर बार बार आ पाऊं

    सादर

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    1. सुस्वागतम व आभार...

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