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Friday, April 5, 2019

बाड़ी में कुम्हड़ा



रात्रि के साढ़े नौ हुए हैं. शाम को योग कक्षा में आठ महिलाएं आईं थीं. उन्होंने गुरूजी की किताब ‘नित्यदिन के ज्ञानसूत्र’ भी पढ़ी. कल शाम को मीटिंग है सो चार बजे ही उन्हें बुलाया है. दोपहर को भी सर्वेंट लाइन से बच्चे व महिलाएं आये, गर्मी के बावजूद उन्होंने पूरे सेशन में भाग लिया. दोपहर को लंच में खीरा खाने के बाद दांत में दर्द शुरू हो गया, लौंग का तेल लगाया निरापद समझ कर, दर्द तो कम हो गया पर स्वाद की कणिकाएं ही जैसे नष्ट हो गयीं. किसी भी वस्तु का स्वाद नहीं आ रहा है, न मीठा, न खट्टा, न ठंडा..अर्थात स्वाद वस्तुओं में नहीं है, उनकी ग्रहण करने की क्षमता में है. सुबह बाजार भी गयी, राखियाँ बनाने का ढेर सारा सामान खरीदा है.   

परसों लाइब्रेरी से दो पुस्तकें लायी, काश्मीर पर आर.एस.दौलत की लिखी किताब पढ़कर वापस की. बरखा दत्त की किताब This Unique Land लायी है. जून के लिए OIL, पिछली किताब भी आयल वेल्स में हुए ब्लो आउट पर थी. BP के साथ यह दुर्घटना घटी थी, जिस पर बनी फिल्म भी जून ने देखी बाद में. आज महिला क्लब की मीटिंग है, हिंदी के लिए उसे ‘भाग लेने का’ पुरस्कार मिलेगा. पिछले तीन वर्ष तो प्रतियोगिता में भाग ही नहीं लिया, क्योंकि कमेटी में थी. आज मुरारीबापू के ओशो पर विचार सुने. ओशो ने तुलसी के बारे में कई बार कुछ कहा है, पर संत लोग किसी को एक बात से जज नहीं करते. वे बीस वर्ष के थे जब पहली बार मुम्बई में ओशो को सुनने गये थे. दूसरी बार पूना में सुना, देखा. लाओत्से के बारे में उन्होंने ओशो से ही जाना. दांत में हल्का सा दर्द अभी भी है. जून कल आ रहे हैं, शायद कल ही वे डेंटिस्ट के पास जा सकें. आज सुबह स्विमिंग के लिए गयी. कल रात तेज वर्षा हुई, पूल में पानी का स्तर बढ़ गया था.

जून सुबह आ गये, दो टॉप लाये हैं. एक तैरने की पोशाक पर पहनने के लिए दूसरा योग अभ्यास के समय पहनने के लिए. आज से योग दर्शन सुनना आरम्भ किया है. योग के तीन अर्थ हैं, एक जोड़ना, दूसरा समाधि, तीसरा संयमन ! योग दर्शन में योग का अर्थ है समाधि ! समाधि का अनुभव ही तो साधक का लक्ष्य है. ‘मोक्ष’ का अर्थ है छोड़ना, ‘अपवर्ग’ का अर्थ भी अलग होने में है, ‘केवल’ का अर्थ भी हटने का तात्पर्य देता है. समाधि का अर्थ है समाधान, समता रहे मन में और बढ़ती रहे. सम्यक रूप से और अधिक से अधिक समता को चित्त में धारण करना ही समाधि है. जो अच्छा हो और पूरा भी हो, ऐसा चित्त समाधि को प्राप्त होता है.

पौने ग्यारह बजे हैं. धोबी अभी-अभी आकर गया है, अपनी मेडिकल रिपोर्ट दिखा रहा था. उसे सुनाई कम देता है, इसलिए बात ज्यादातर एकतरफा ही होती है. पर हर बार कोई न कोई बात उसके पास होती है. नन्हा जब छोटा सा था तब से वह उनके घर आ रहा है. कान की शक्ति कम होने का न उसे अहसास है न ही कोई चिंता, बड़े आराम से जीवन चल रहा है उसका. आज उसने बाड़ी से मिला कुम्हड़ा बनाया है, एक और मिला है हरा और कोमल. कल शाम को पका हुआ कटहल काटा, बेहद मीठा है और स्वादिष्ट भी. जून को इसकी गंध पसंद नहीं है. उसने नैनी के घर रखवा दिया है. परसों संडे क्लास में बच्चों को देगी. आज को ओपरेटिव गयी, जीएसटी का जिक्र हो रहा था, सभी व्यस्त थे, उनका काम बढ़ गया है, कुछ दिनों में सामान्य हो जायेगा. सुबह तरणताल से लौट कर पोहा बनाया, ध्यान कहीं और था, सब्जी जल गयी. सुबह ड्राइवर भी कुछ देर से आया. कल शाम डेंटिस्ट ने कहा, अभी कुछ करना नहीं है, सुबह-शाम ठीक से देखभाल करनी है. कोई कर्म उदय हुआ है ऐसा लगा. राखी की कविता जून प्रिंट करके ले आये हैं, दोपहर को लिफाफे तैयार करेगी. शाम को क्लब में टेक्निकल फोरम में कोई वक्ता आयेंगे.

Friday, July 17, 2015

मुरारी बापू की कथा


ध्यान में अपने बारे में सच्चाई प्रकट होती है. चित्त ही काया बनता जाता है, जैसे ही चित्त पर कोई तरंग उठती है वैसे ही काया पर भी तरंगें उठती हैं. जब मन मन में समा जाता है, कोई विचार नहीं रहत, अनुभूति ही अनुभूति है तो विकारों कि शक्ति खत्म होती जाती है. ध्यान में ही यह सम्भव है. दोपहर के तीन बजने वाले हैं, उसके सिर में, नहीं इस शरीर के सिर में हल्का दर्द है. जून जब गये तो दवा ली थी, पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ. गुरूजी की बात याद आती है कृपा होने के बाद यदि तीर से सिर कटना हो वह मात्र टोपी ही उड़ा कर ले जाता है. वैसे ही उसे दो दिन से लग रहा था कि शरीर अस्वस्थ होगा पर सिर में हल्के दर्द के सिवा अभी तक तो सब ठीक है. दो सखियों को देखने गयी थी, उन्हें बुखार था, अब वे भी स्वस्थ हो रही हैं. कल पता चला छोटे भाई, छोटी भांजी तथा दीदी को भी बुखार हुआ है. शरीर कमजोर होता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तभी रोग धर दबोचते हैं. जून के दाहिने वक्ष में जब से वह आये हैं दर्द रहता है जो यात्रा में शुरू हुआ था, सम्भवतः भारी सामान उठाने के कारण ही उन्हें यह दर्द हुआ है. ईश्वर की चर्चा तभी हो सकती है जब तन व मन दोनों पूरी तरह स्वस्थ हों. आज सद्गुरु को सुना, उन्होंने कहा, यदि ध्यान करने से पूर्व कोई चिंता मन में हो तो उसी विचार को तोड़ते-तोड़ते उसके मूल तक पहुँचना चाहिए. मन ध्यानस्थ होता जाता है. उसे आजकल ध्यानस्थ होने में जरा भी कठिनाई नहीं होती. कृपा उस पर बरस रही है.
उसकी लिखाई को देखकर लगता है कि मन भीतर ही भीतर अशांत था पिछले दिनों. कितने बड़े-बड़े व टेढ़े-मेढ़े अक्षर हैं एक कारण यह भी हो सकता है कि जल्दी में लिखा गया है. पहले की तरह सुबह आराम से बैठकर आजकल नहीं लिख पाती, कोई समय नियत नहीं रह गया है. जबकि होना यह चाहिए था कि समय के साथ-साथ लेख अच्छा होता जाये. आत्मा के स्तर पर जीने का अर्थ है पूर्ण मुक्त होना, सभी तरह के बन्धनों से मुक्त लेकिन मन मुक्त होने नहीं देता, बीच में आ जाता है. जिसकी सत्ता ही नहीं है वह इतना बलवान हो उठता है. ध्यान में भी मनोराज्य चलने लगता है यह कैसी मनोस्थिति है ? प्रारब्ध वश कोई पाप सिर उठा रहा है शायद. उसका यह क्षण एक न मालूम सी उदासी से भरा है. यह पीड़ा अनबूझ है जो कभी-कभी अपने आप ही आ जाती है फिर अपने आप ही चली भी जाती है. वह साक्षी की तरह इसे देखती है, साक्षी होकर जीना कितना कठिन है. साधना का पथ सरल है ऐसा तो सद्गुरु ने नहीं कहा था. सद्गुरु के लिए सभी कुछ कितना सहज है. उसे उन्हीं की शरण में जाना चाहिए. उनके निकट जाते ही परमात्मा की अनुभूति होती है. शांति और सुख के भंडार परमात्मा को याद करने से राहत मिलती है. जो है नहीं पर महसूस होती है वह माया है जो है पर नजर नहीं आता वह भगवान है !
अगस्त मास का प्रथम दिन ! सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठी. ‘क्रिया’ आदि की संगीत का अभ्यास और ध्यान भी. आज ध्यान में एक बार पूरा शरीर गर्म हो गया और अत्यंत तीव्रगति से कम्पन का अनुभव हुआ. देह ठोस नहीं है तरंगे ही तरंगे हैं इसका अनुभव इतना स्पष्ट रूप से कभी नहीं हुआ था. दो घंटे संत मुरारी बापू की कथा सुनी, जो वे नैरोबी में कह रहे हैं, अफ्रीका महाद्वीप में केन्या देश में गुजराती भारतीयों के लिए. कथा गुजराती में कह रहे थे पर समझ में आ रही थी. तुलसी की चौपाइयां तो वैसे भी अवधी में ही थीं. संतश्री कथा इतनी मधुरता से कहते हैं कि कितना भी सुनो मन नहीं भरता है. अद्भुत वक्ता हैं वे और अद्भुत कवि हैं तुलसी, पर सबसे अद्भुत है वह परमात्मा जो सबके भीतर छिपा है और प्रेम का ऐसा जाल बिछाता है कि कोमल हृदय उसमें बंध जाता है. ईश्वर का प्रेम अमूल्य है, अनुपम है, अद्भुत है, उसी के कारण तुलसी अमर काव्य की रचना करते हैं, संत कथावाचक बनते हैं तथा उस जैसे श्रोता जो सुनते-सुनते आसुंओं की गंगा बहाते जाते हैं. उसका हृदय ईश्वर और सद्गुरु के प्रति अगाध प्रेम से भरा है और गद्गद् हो रहा है. ईश्वर की कृपा से ही उसका प्रेम मिलता है, संत कृपा से ईश्वर मिलते हैं सद्गुरु के ज्ञान से संतों के प्रति आदर जगता है.