Wednesday, April 14, 2021

लोनावला की पहाड़ियाँ

 

कल सुबह उन्हें एक विवाह में सम्मिलित होने के लिए यात्रा पर निकलना है. अमित शाह ने संसद में नागरिक संशोधन  सुधार बिल प्रस्तुत किया है, कई राज्यों में विशेषतः असम में इसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. आज सुबह नैनी काम पर नहीं आयी, किसी अन्य महिला ने फोन करके बताया, उसे बुखार है. दोपहर को वह आ गयी, कहने लगी पति ने उससे झगड़ा किया, नशा करके आया था. उसे चोट लगी थी. पिछड़ा हुआ राज्य हो या विकसित, महिलाओं की स्थिति सभी जगह एक सी है. बेहोशी में आदमी वहशी हो जाता है. देश भर में महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ रही है. हिंसा की प्रवृत्ति मानव में दबी होती है पर आज के वातावरण में खुली छूट मिल गयी है, हाथ में मोबाइल आ गया है, जिस पर सब कुछ देखा-सुना जा रहा है, जो नहीं देखा जाना चाहिए वह भी. आज कौन सुरक्षित है, भय का वातावरण बन गया है सभी ओर. समाज पतन की ओर जा रहा है. शायद अँधियारा जितना गहरा होगा उजाला तभी प्रकट होगा. 


आज सुबह पांच बजे ही वे एयरपोर्ट के लिए निकले थे. फ्लाइट लेट थी, नाश्ता भी वहीं किया. समाचार सुने, कर्नाटक में बीजेपी ने बारह सीट जीत ली हैं, पंद्रह पर उपचुनाव हुआ था. मुंबई में छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डे पर पहुंचे तो तापमान अधिक था. जो ड्राइवर उन्हें लेने आया था उसने कार पांचवें फ्लोर पर पार्क की हुई थी. लिफ्ट से वहां पहुँचे तो देखा अनेकों गाड़ियाँ वहां पार्क की हुई थीं. नवी मुंबई को पार करके वे ‘पूना एक्सप्रेस वे’ पर आ गए, जिसके बारे में कई बार सुना था. पहले गंतव्य  लोनावला पहुँचने से पहले खन्ड़ाला की पहाड़ियां दिखीं, पर वे वहां रुके नहीं. पहला पड़ाव था, वैक्स म्यूजियम, जहां कई और भी आकर्षण थे, सभी एक से बढ़कर एक. उनके लिए नए-नए अनुभव थे सभी. ९-डी में अनुभव भयभीत करने वाला था. 


अभी-अभी वे क्लब हाउस से रात्रि भोजन करके आये हैं, ‘देराजो’ नाम था उस रेस्तरां का. उससे पहले लाइब्रेरी में एक किताब पढ़ी, ‘द विज़डम ऑफ़ लाओत्से बाय लिन युतांग’. किताब बहुत अच्छी है, पढ़ने के लिए वह कमरे में ले आयी है. हिल्टन का यह रिजॉर्ट काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है, दूर-दूर तक छोटे-छोटे विला बने हैं. नन्हे को जब उनकी मुंबई यात्रा का पता चला था तो उसने एक दिन लोनावला में बिताने के लिए इसे बुक कर दिया था। वे रिसेप्शन से छोटी कैब में बैठकर कमरे तक आये, हाथ-मुँह धोकर ‘योग साधना’ के लिए क्लब हाउस गए. पूल के किनारे एक तरफ एक रेस्तरां है दूसरी तरफ एक बड़े चबूतरे जैसा  स्थान. तीन अतिथि और बैठे थे वहां होटल के, योग टीचर प्राणायाम करवा रहे थे. सूर्यास्त का सुंदर दृश्य निहारा, सामने पहाड़ था जिसकी परछाई पूल के पानी में पड़ रही थी. 


आज सुबह भी वे जल्दी उठ गए थे, रिज़ॉर्ट की तरफ से ट्रैकिंग पर गए. जंगल के बीच से चढ़ाई करते हुए ऊँचाई पर स्थित एक पुराने मंदिर तक जाना एक नया अनुभव था. लगभग साढ़े दस बजे वे वहाँ से रवाना हुए. रास्ते में नारायणी धाम में रुके जो अति विशाल एक नया मंदिर है, कई गुलाब के फूलों के बगीचों से सजा यह स्थान बेहद आकर्षक है, वहाँ कोई विवाह समारोह चल रहा था, इसलिए और भी सजाया गया था. उसके बाद खंडाला में कुछ मिनट रुके, जहाँ से नीचे पहाड़ों पर बना एक्सप्रेस वे दिखाई देता है. लगभग ढाई बजे विवाह स्थल पर पहुँचे। मेहँदी का कार्यक्रम चल रहा था, संगीत का शोर बहुत था और हृदय पर आघात कर रहा था. भोजन के बाद वे एक घन्टा पार्टी में रहे, फिर कमरे में आ गए. 



अभी कुछ देर पहले वे निकट स्थित राजीव गाँधी उद्यान में टहलकर आये हैं, नीचे सड़क पर कूड़े का ढेर लगा था. शादियों का सीजन है, कल ही दो विवाह हुए, उसके बाद जो भी कचरा इकठ्ठा हुआ होगा शाद वही था. पार्क की हालत भी खस्ता थी, लोग काफी थी, कहीं योग साधना चल रही थी, कहीं जिम, दो लोग पेड़ से उलटे लटके थे, शायद कोई साधना रही होगी।  कहीं महिलाएं आपस में बातें कर रही थीं. वृद्ध बेंच पर बैठ कर आराम फरमा रहे थे. घास बेतरतीब थी, जो भी सरंचना पहले सुंदर रही होगी, टूटी-फूटी थी. प्लास्टिक की बोतलें, कागज जहां-तहाँ बिखरे थे. जो पार्क बेहद आकर्षक बन सकता था, उदासीन व अपने में ही गुम लोगों के कारण उदास लग रहा था. उल्हासनगर जरा भी नहीं बदला है. बीस वर्ष पहले वे यहाँ आए थे, तब भी हालात ऐसे ही थे. जून नीचे से अख़बार लेकर आये हैं, जिसमें असम में हुई हिंसा की खबरें हैं. नागरिक संशोधन बिल संसद में पास हो गया है, उसी के खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं. सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है, लोगों को समझना होगा, वे व्यर्थ ही इतनी तीव्र प्रतिक्रिया दे रहे हैं.  कल रात साढ़े बारह बजे होटल लौट आये थे. अंगूठी पहनाने का कार्यक्रम अभी हुआ ही नहीं था, डांस आदि हो रहे थे. उन्होंने जल्दी खाना खाया, साढ़े ग्यारह बजे जल्दी नहीं कहा जायेगा, पर यहाँ पर शादी में होने वाली पार्टियाँ रात भर चलती हैं. सुबह तीन-चार बजे  तक चली होगी यह पार्टी भी. 


राष्ट्रपति ने नागरिकता संशोधन बिल को पास कर दिया है, अब यह कानून बन गया है. गोहाटी व डिब्रूगढ़ में कर्फ्यू लगा हुआ है, हिंसा की वारदातों के बाद यह जरूरी हो गया था. महिलाओं पर हिंसा की सबसे भयानक वारदात जो कुछ वर्ष पहले हुई थी, उसका फैसला आने वाला है. इस समय साढ़े आठ बजे हैं, वे नहा-धोकर तैयार हैं। सुबह पाँच बजे अपने आप ही नींद खुल गई, उसके पूर्व स्वप्न में स्वयं को राम का एक भजन गाते सुना, फिर एक अन्य भजन और एक ज्योति दिखी। सबके भीतर एक ज्योति है जो बिन बाती और बिन तेल के जल रही है। मन कितने सुंदर रूप धर लेता है, जब क्षण होता है। साक्षी भाव में टिका मन ही मुक्त है। विवाह दिन में होना है, शाम को रिसेप्शन पार्टी है। कल उन्हें वापस घर जाना है। 


20 comments:

  1. बड़ी मोहक शैली है आपकी चेतन और अवचेतन के बीच झूलती हुई!

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    1. स्वागत व आभार सुंदर प्रतिक्रिया हेतु !

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  2. एक बहुत ही शानदार सिलसिला... विवाह समारोहों के उपरांत पार्कों या विवाह-स्थलों की दुर्दशा सचमुच असहनीय होती है! समझ में नहीं आता हम कब वातावरण का सम्मान करना सीखेंगे! मगर मोबाइल सभ्यता के काल में इससे अधिक की आशा भी व्यर्थ है!

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    1. सही कह रहे हैं आप, साफ-सफाई के प्रति हम भारतीय घर में जितने सचेत हैं घर से बाहर उतने ही लापरवाह, सरकार चाहे कितने ही अभियान चलाये यदि लोगों में गंदगी को देखकर उसे अनदेखा करने की आदत नहीं जाएगी तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा। इस ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति बनाए रखें, स्वागत है !

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. बहुत सुंदर विचारणीय आलेख।

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  5. बहुत सुंदर शैली में सार्थक दृश्यचित्र...🌹🙏🌹

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    1. स्वागत व आभार शरद जी !

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  6. मुग्ध करता सृजन सराहनीय शैली आदरणीय दी।
    सादर

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    1. आपका स्वागत है अनीता जी !

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  7. आप उल्हासनगर कब आए थे दीदी ? मैं भी वहीं रहती हूँ। ये सच कहा आपने कि उल्हासनगर बीस वर्षो में बिल्कुल नहीं बदला। गैरकानूनी इमारतों ने स्थिति को और बदतर कर दिया है। लोगों में स्व अनुशासन भी नहीं है,बहुत से पढ़े लिखे लोग भी अनपढ़ों सा व्यवहार करते हैं। अभी मुझे तो यहीं रहना होगा क्योंकि मेरा स्कूल भी यहीं है।

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    1. मीनाजी, हम लोग लगभग डेढ़ साल पहले गए थे, आप अवश्य अपने विद्यार्थियों की सोच में परिवर्तन लाने के लिए सुंदर भावनाएं भरती होंगी। अल्प प्रयास भी एक दिन असर दिखाता है.

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  8. विचारणीय लेख आदरणीय अनीता जी,सादर नमन आपको

    मीना जी ने बिलकुल ठीक कहा पढ़े-लिखे और अनपढ़ों में अंतर् करना मुश्किल हो गया है।
    इन दिनों बस भेष-भूषा ही अलग है मानसिकता में कोई फर्क नहीं दिखता

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    1. सूचनाओं का भंडार कर लेना ही यदि पढ़ना लिखना हो तो वाकई कोई अंतर नहीं है, मानवीय मूल्यों का सम्मान जिस मन में हो वही वास्तव में शिक्षित कहलाने योग्य है फिर चाहे वह अनपढ़ ही क्यों न हो

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  9. चिंतन परक लेख,मुद्दे उठाता।
    सार्थक।
    लेखन शैली पाठक को बांधती सी।

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  10. स्वागत व आभार !

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