Wednesday, January 6, 2021

विदाई समारोह

 

पिछले तीन दिन व्यस्तता में बीते. डायरी लिखने का न समय था न ख्याल ही आया. इस समय रात्रि के नौ बजने वाले हैं जून अमेरिका में रहने वाले अपने कालेज के समय के एक पुराने मित्र से बात कर रहे हैं. जिस कम्पनी में वह रिसर्च का काम करते थे, वहां अनुसंधान विभाग बन्द हो गया है. अब उन्हें दूसरी जगह जाना है. विदाई समारोह में भाग लेने आज जून दफ्तर गए थे. समारोह अच्छा रहा, उन्हें कई उपहार भी मिले हैं, अभी खोलकर नहीं देखे हैं. सभी ने उनके लिए अच्छे शब्द कहे सिवाय एक के, जिन्हें शिकायत है कि जून उन्हें समय पर दफ्तर आने के लिए टोका क्यों करते थे. दुनिया में शत्रुता-मित्रता उसी तरह आती-जाती है जैसे दिन-रात और सर्दी-गर्मी. उन्हें साक्षी भाव से उसका वहन करना है. कल से गणेश पूजा का उत्सव आरम्भ हो गया है. वे तिनसुकिया गए और सभी के लिए पूजा के उपहार लाये. 


आज सुबह वे उस घर की तरफ गए, जहाँ वर्षों पहले पहली बार रहे थे, मात्र छह महीनों के लिए फिर उस घर की तरफ जहाँ नन्हे का जन्म हुआ था, बाहर से ही उसकी तस्वीर उतारी.इस घर में छह वर्ष रहे. शाम को एक अन्य घर की तस्वीर लेनी है जहाँ तेईस वर्ष रहे, और जिसमें अभी रह रहे हैं वह चौथा घर है. आज कपड़ों की आलमारी खाली की. ढेर सारे ऐसे वस्त्र निकले हैं जिन्हें अब पहनना नहीं है, कुछ गर्म कपड़े जो अब बंगलूरू में नहीं चाहिए. सभी को ठीक से तह करके अलग-अलग जगह बाँट देने हैं. बहुत सारी किताबें भी हैं जिन्हें वितरित करना है. कल शिक्षक दिवस है, मृणाल ज्योति में अंतिम बार इसमें भाग लेने का अवसर मिलेगा. 


शिक्षक दिवस पर सुंदर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. एक दूसरे स्कूल में भी उसे बुलाया था जहां योग सिखाने  जाती थी, उन्होंने दो उपहार दिए  हैं, एक विद्यार्थियों की तरफ से और एक स्कूल की तरफ से. उन्हें भी खोला नहीं है. बैठक में फूलों के ढेर और कई अनखुले उपहारों का ढेर लग गया है. लगता है जैसे अब किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह गयी है. उम्र के इस पड़ाव पर आकर जैसे एक तृप्ति की भावना प्रबल हो जाती है. मन की अपार शांति और सुख के सामने वस्तुएं  खिलौने जैसी ही जान पड़ती हैं. शाम को योग कक्षा में भी साधिकाओं ने शिक्षक दिवस मनाया. फूलों के गुलदस्ते और पीतल का एक सुंदर दीपदान उपहार में दिया. अगले हफ्ते से योग कक्षा स्कूल के हॉल में होगी. 


आज सुबह साढ़े आठ बजे वे मोरान के लिए रवाना हुए. कुछ देर पूर्व ही लौटे हैं. मोरान  अंध विद्यालय में श्री विक्टर बनर्जी और उनकी पत्नी श्रीमती माया बनर्जी से मुलाकात हुई. प्रिंसिपल वार्गीश और प्रशासनिक अधिकारी जोशी जी से भी मुलाकात हुई. हर क्लास में जाकर बच्चों को चॉकलेट दीं, प्रिंसिपल स्वयं ले गए. माहौल बहुत स्वच्छ और अच्छा था. मोरान गेस्ट हाउस में दोपहर का भोजन करने के बाद डिब्रूगढ़ में एक फर्नीचर की दुकान पर गए, बैम्बू का एक झूला  पसन्द आया जो असम की एक कलात्मक स्मृति के रूप में वे बैंगलोर ले जाने वाले हैं. 


रात्रि के सवा आठ बजे हैं. प्रधानमंत्री का अपनी सरकार के सौ दिन पूरे होने पर जोशीला भाषण दिखाया जा रहा  है, जो उन्होंने रोहतक में दोपहर को दिया था. इसरो के प्रमुख सिवान को सांत्वना देता हुआ उनका वीडियो काफी देखा जा रहा है. वह हर स्थिति में अपनी भूमिका सहजता से निभाते हैं. आज सुबह वह एक नई दिशा में गए सूर्योदय की कई तस्वीरें उतारीं। प्रातः भ्रमण अब ज्यादा आनंददायक हो गया है, क्योंकि समय का कोई बंधन नहीं रह गया है. माली से कुछ पौधे प्लास्टिक के गमलों में लगवाये जिन्हें वे अपने साथ ले जायेंगे. दस दिनों तक यात्रा के दौरान उनमें से कितने बचेंगे कहना कठिन है. मात्र सवा महीना रह गया है उन्हें जाने में. अगले सप्ताह शिलांग जाना है. मेघालय में  डौकी नामका एक स्थान है, जहाँ एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव है तथा एक जीवित वृक्ष का पुल है, वहां भी जायेंगे. यह उनकी मेघालय की अंतिम यात्रा होगी.  कल शाम मंझले भाई ने बिटिया के विवाह का समाचार दिया जो दो महीने बाद होने वाला है. उन्होंने पिताजी से बात की, यदि उनका स्वास्थ्य ठीक रहा तो वे भी विवाह में आएंगे.


और अब उस पुरानी डायरी का पन्ना - 


तितली के दिन, फूलों के दिन 

गुड़ियों के दिन, झूलों के दिन 

उम्र पा गए, प्रौढ़ हो गए 

आटे सनी हथेली में 

बच्चों के कोलाहल में 

जाने कैसे खोये, छूटे 

चिठ्ठी के दिन, भूलों के दिन 


नंगे पाँव सघन अमराई 

बूंदाबांदी वाले दिन 

रिबन लगाने, उड़ने-फिरने 

झिलमिल सपनों वाले दिन !


अब बारिश में छत पर 

भीगाभागी जैसे कथा हुई 

पाहुन बन बैठे पोखर में 

पाँव भिगोने वाले दिन 

इमली की कच्ची फलियों से 

भरी हुई फ्राकों के दिन 

सीपी, मनकों, कौड़ी 

टूटी चूड़ी की थाकों के दिन !


अम्मा संझा बाती करती 

भौजी बैठक धोती थी 

बाबा की खटिया पर 

मुनुआ राजा की धाकों के दिन 

वो दिन मनुहारों के, झूलों पर 

झूले और चले गए 

वो सोने से मण्डित दुनिया 

ये नक्शों, खाकों के दिन !


10 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  2. रूहानी अहसास दिलाती डायरी की पंक्तियाँ। हमारे असम प्रवास की भी यादें ताजा हो जाती है, आपकी डायरी पढ़कर।

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    1. अच्छा लगा जानकर कि अभी भी असम में रह चुके हैं

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  3. आपकी डायरी के इस पन्ने में बहुत कुछ अपने से जुड़ा पाती हूँ इत्तेफ़ाक़ से मैं कुछ समय असम में रही हूँ और अब बैंगलोर में हूँ ।

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    1. मीना जी, आप बंगलूरू में कहाँ रहती हैं ? हम कनकपुरा रोड पर रहते हैं

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