आज सुबह वे निकट की सोसायटी में टहलने गए, शायद अंतिम बार, अगली बार यहाँ आने पर उनका ठिकाना नए घर में होगा. नाश्ते के बाद ही यहाँ आ गए. बैठक में बैठे-बैठे ही बाहर की हलचल पता चलती रही है. इक्का-दुक्का कारें ही जाती हैं, क्योंकि उनका घर मुख्य सड़क पर है. दायीं ओर एक गोदाम है जो कुछ वर्षों बाद तोड़ दिया जायेगा. क्लब हॉउस में काम चल रहा है, शायद कुछ वर्ष लगें. आजकल जीवन की नदी एक सपाट, समतल भूमि पर बहती प्रतीत हो रही है. शहर से दूर इस शांत इलाके में रहना, जो आश्रम के नजदीक है, भला लग रहा है. अब शाम के पौने चार बजे हैं, रात्रि वे यहीं बिताने वाले हैं. मौसम सुहावना हो गया है. आकाश में बादल गरज रहे हैं, यानि वर्षा किसी भी क्षण हो सकती है. आज भी दिन भर कोई न कोई आता ही रहा. दोपहर के भोजन के पश्चात आधा घन्टा विश्राम करने गए पर लेटते ही घण्टी बजी. नन्हे ने तेल की बॉटल रखने के लिए सफेद पत्थर की एक ट्रे मंगवाई थी. किचन के श्वेत स्लैब पर रखी हुई अच्छी लग रही है. जून फोन पर उस अधिकारी से बात कर रहे हैं जो दफ्तर में उनका काम देख रहे हैं. कविता के ग्रुप में इस बार का शब्द है ‘गति’, पिछले कई दिनों से कोई कविता नहीं लिखी है.
आज गृह प्रवेश की पूजा है और दोपहर को प्रीति भोज. पहली बार नए घर में सोने पर नींद तो आयी, पर स्वप्न भी आते रहे. कल दिन भर अकारण ही मन दुविधा में था, शायद कोई कर्म उदित हुआ है. सासु माँ का स्मरण हो आया, जाने-अनजाने उन्हें उनके कारण कभी जो भी दुःख हुआ होगा, उसका भी स्मरण हो आया. सुबह साढ़े तीन बजे एक स्वप्न देखकर एक बार नींद खुली, किसी उत्सव का दृश्य देखा, कुक परांठे बना रहा है, बुआजी कहती हैं, उन्हें सौंफ का पराठाँ खाना है. दीदी व माँ भी हैं जो सभी मेहमानों की देखभाल कर रही हैं. मन दिन में भी स्वप्न रचता है और रात्रि में भी. करवट बदल कर पुनः सो गयी. एक घन्टे बाद उठकर देखा, आकाश गुलाबी था, कमरे से बाहर निकलते ही सूर्योदय की तस्वीर उतारी. बाद में निकट गांव में स्थित मन्दिर तक टहलने गए. फूलों की मालाएं खरीदीं. घर के द्वार पर सुगन्धित फूल लगाए, सारा घर बेल की सुवास से भर गया है. मौसम अभी तक तो ठीक है, दिन में तेज गर्मी होने वाली है. नन्हा और सोनू अभी तक नहीं आये हैं. उन्होंने इस घर की साज-सज्जा में बहुत श्रम किया है. पूरे घर में आटोमेशन से बिजली व पंखे चलते हैं. संगीत भी ओके गूगल कहकर बजा सकते हैं, जगह-जगह स्पीकर लगा दिए हैं. कहीं भी काम करते रहें तो संगीत या कुछ भी सुन सकते हैं. कुछ देर पूर्व क्लब की भूतपूर्व प्रेजिडेंट का स्मरण हुआ, तत्क्षण उनका फोन भी आ गया. उन्हें भी घर की तस्वीरें भेजी हैं. अपने घर मन रहने का अनुभव कैसा होता है, अब कुछ-कुछ अहसास हो रहा है. आज से एक्ज़िट पोल शुरू हो गए हैं, बीजेपी जीत रही है.
उसने अतीत के झरोखे से झाँका, उस दिन डायरी के पन्ने की सूक्ति थी - झूठ इंसान को जलील कर देता है - महात्मा गाँधी . पढ़कर लगा, उसके उस झूठ के क्या परिणाम होंगे, कौन से झूठ के, यह नहीं लिखा, बचपन से उस दिन तक एक ही झूठ तो नहीं बोला होगा. छोटे थे वे लोग तो गाते थे, ‘झूठ बोलना पाप् है, नदी किनारे सांप है’. फूल लायी थी उस दिन चमेली के पीले सुवासित फूल, जिनकी माला बनाकर वह गले में पहन लेती थी, भीनी-भीनी सी खुशबू देर तक साथ रहती थी. बाहर से रेडियो की आवाज आ रही थी, दरवाजा ठीक से बन्द किया तो कम हो गयी. कल ‘विचार बिंदु’ में बापू के विचार सुने. कितने अच्छे थे बापू और वह ? उन्होंने कहा था, हँसी मन की गिरह खोल देती है, अपने ही नहीं दूसरों के मन की भी. हँसी उसकी सहेली है, यह उसने कहा था. पर उस वक्त उसे क्या हो जाता है, काश उस वक्त वह आइना देख पाती, पत्थर भी उससे सजीव लगता होगा. और फिर उसे याद आयी वह बात जो बरसों से भूली हुई थी, यानि परसों उसका इम्तहान है !
सोच एक दायरे में घूमती है बस और वह चक्कर लगाने लगती है गोल गोल ... न उधर न इधर कहीं कोई उत्थान नहीं, कभी कोई बात चुभ जाये या कोई बात न भी हो आँसूं पता नहीं कहाँ से आते हैं, आते चले जाते हैं ! फिर उसने सोचा, पिताजी का बिछौना लगा दे.
सुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
DeleteNice article, good information and write about more articles about it.
ReplyDeleteKeep it up
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