जून को छड़ी मिल गयी है,
उनके एक सहकर्मी गोहाटी जा रहे थे, उसने उनके साथ भेज दी थी, एक प्रेरणात्मक पत्र
भी भेजा उसने, उन्हें अच्छा लगा पढ़कर. छड़ी की सहायता से वह चल पा रहे हैं. घर आने
के बाद वह शीघ्र ही ठीक होने लगेंगे. इन्सान को कुछ सिखाने के लिए ही विकट
परिस्थितियाँ जीवन में आती हैं. अहंकार का नाश होता है यदि कोई सजग होकर देखे तो
और व्यर्थ की भाग-दौड़ से भी बच जाता है. आत्मा को संतुष्ट होने के लिए क्या चाहिए,
केवल अपने भीतर डुबकी लगानी है और संतुष्टता उनका जन्मसिद्ध अधिकार ही है. आज
वर्षा हो रही है, सम्भवतः इतवार की योग कक्षा में बच्चे कम संख्या में ही आ पायेंगे.
आज सुबह फिर एक विचित्र
स्वप्न देखा. जून ट्रेन के एक डिब्बे में हैं. खिड़की पर जाली वाली लकड़ी का दरवाजा
है, जिसमें से अंदर देखा जा सकता है. वह देखती है सुंदर लाल वस्त्र पहने छोटा सा
बच्चा उनकी गोद में है फिर वह उसे सीट पर बिठाकर उठने लगते हैं और तब मन में एक
विचार बार-बार कौंधता ही जाता है. उनकी इच्छा से ही भीतर इच्छा का जन्म होता है तो
उससे मुक्त होना है. मुक्ति का मन्त्र जैसे भीतर बज रहा हो. तब स्वर्ग, नर्क, राम
राज्य और रावण राज्य सभी कुछ स्पष्ट होने लगता है. उनके मन के विकार ही नर्क के
कारण हैं तथा मन की शुद्धता ही स्वर्ग का कारण है. जीवन कितना सुंदर हो सकता है
यदि विकारों से मुक्त हो और स्वर्ग मरने के बाद नहीं इसी जीवन में अनुभव किया जा
सकता है. कुछ देर पहले जून व नन्हे से बात हुई. उन्हें अपना फोन भी मिल गया है.
उससे पूर्व बगीचे में पौधे लगवाये, अभी एक बार और नर्सरी जाना होगा, कुछ पौधे कम पड़
गये हैं. सुबह बंगाली सखी का फोन आया, वह सहानुभूति जता रही थी. उसे लगता है,
सकारात्मक सोच रखते हुए प्रेरणा ही देनी चाहिए, पर इसके लिए भीतर आत्मशक्ति का
जागरण होना चाहिए. आज सुबह का नाश्ता नैनी ने ही बनाया, शाम को भी उसे कह सकती है,
वैसे स्वयं भी कुछ और काम तो नहीं है, सिवाय ‘ध्यान’ और लिखने-पढ़ने के !
पिछले चार दिन डायरी नहीं
खोली. सोमवार को नन्हा जून को लेकर आ गया और आज शुक्र की सुबह वापस चला गया. उसने
एक आदर्श पुत्र की भूमिका बखूबी निभाई. जून पहले से बेहतर हैं. आज तो नेट पर दफ्तर
का काम भी कर रहे हैं. कल शाम उनका चश्मा भी बनकर आ गया है. सोमवार से उनके दफ्तर
के लोग एक-एक कर मिलने आ चुके हैं. अगले हफ्ते वह ऑफिस जाने का विचार रखते हैं यदि
सब कुछ ठीकठाक रहा तो.
इतवार की शाम, मौसम सुहावना
है, बाहर चौदहवीं का चन्द्रमा आकाश में खिला है और नीचे बगीचे में रात की रानी. कल
‘टुबड़ी’ है अर्थात गुरूपर्व या गुरू नानक जयंती. कल बाल दिवस भी है जो उसने बच्चों
की दोपहर की कक्षा में आज ही मनाया. इसी शनिवार को उन्हें बंगलूरू की यात्रा पर
निकलना है, जहाँ से आगे दुबई भी जाना है. आज पैकिंग का कार्य भी आरम्भ किया. कल ही
दुबई ले जाने वाला सूटकेस तैयार किया था. इस बार छुट्टी थोड़ी लम्बी है. आज ही के
दिन अगले माह वे वापस आयेंगे. छोटी भांजी भी बंगलूरु पहुंच रही है, और उससे एक दिन
पूर्व बड़ा भांजा भी. नन्हे के घर में रौनक होने वाली है. उससे बात हुई तो बताया कि
शायद वह दुबई नहीं जा पायेगा, भविष्य ही बतायेगा, क्या होता है. जून का पैर पहले
से काफी ठीक है. परसों से वे नियमित ऑफिस जायेंगे और उससे पूर्व कल एक बार कुछ देर
के लिए जाकर देखेंगे, कि कितनी परेशानी होती है. कुछ देर पहले बड़ी बुआ जी का फोन
आया, वह भी जून का हालचाल ले रही थीं. छोटी ननद को चिकनगुनिया हो गया है, वह अपने
बैंक से चार सप्ताह की छुट्टी पर है. बड़ी ननद और ननदोई आए थे उसके यहाँ, आज वापस
जा रहे हैं. आज दो हजार का नया नोट भी देखा. काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक होने से
बहुत लोगों को परेशानी हो रही है, किन्तु इसका परिणाम अवश्य ही अच्छा होने वाला
है. बगीचे में आज काफी काम हुआ, फूलों की पौध अब लग चुकी है, देखभाल की जरूरत है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3163 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद