Friday, March 23, 2018

छाया की माया



कल सुबह हफ्तों बाद कुछ कविताएँ लिखीं, यदि उन्हें कविता कहा जा सकता है तो, पर वे सहज स्फूर्त थीं. प्रातःकाल के दृश्यों को देखकर कुछ द्रवित होकर बहने लगा था. कल सुबह मृणाल ज्योति भी गयी. उससे पहले महिला क्लब की तरफ से स्कूल के छात्रावास में देने के लिए स्टील के तीस गिलास और दस जग खरीदे. जाते समय और वापसी में भी वाहनों की लम्बी कतारें मिली थीं सड़क पर. कम्पनी में कार आदि वाहन चलाने के लिए टेंडर भरे जा रहे हैं. हजारों की संख्या में लोग आये हैं जबकि आवश्यकता है, सौ-दो सौ वाहनों की. जाने किसकी किस्मत खुल जाये. आज भी वैसी ही भीड़ थी जब वह क्लब की प्रेसिडेंट के साथ प्रेस गयी, जहाँ वार्षिक उत्सव के लिए क्लब की पत्रिका प्रकाशित होने वाली है. उस दिन तो वह नहीं रहेगी सो उससे पहले जितना सम्भव हो काम कर देना चाहती है. चित्र एकत्र करने हैं, विभिन्न प्रोजेक्ट्स के चित्र भी चाहियें और उनकी संचालिकाओं के भी. आज सम्भवतः उसका फोन भी मिल जायेगा, उसमें भी कुछ तस्वीरें हो सकती हैं. इस समय शाम के चार बजे हैं, यानि फ्रूट टाइम और महाभारत देखने का समय, पिछले कुछ दिनों से वे एक एपिसोड देखते हैं इस समय. बाहर माली गमलों को रंग रहा है.

‘मैं’ से आच्छादित है ‘तू’, जब ‘मैं’ खो जाता है तब ‘तू’ प्रकट होता है और तब पता चलता है ‘तू’ ही ‘वह’ है. अस्तित्त्व ही सब कुछ है जब यह पता चलता है तो अब वह जीती जागती चेतना के रूप में प्रकट हो जाता है. अस्तित्त्व कोई जड़ पदार्थ नहीं है, चिदानन्द है, चैतन्य है, और भीतर से यह ज्ञान होता है कि सब कुछ वह एक है. पिछले दिनों उसे अपने ‘मैं’ का बखूबी पता चला, महिला क्लब की ट्रेजरर के व्यवहार से जो भीतर हलचल हुई, जून को बताया, एक अन्य सदस्या को बताया, वह अहंकार के कारण ही था. अभी भीतर काफी कल्मष है,  भय भी है. उस दिन रात्रि के समय लौटते हुए अपनी दो दो परछाई देखकर लगा कोई पीछे है. भीतर का चोर भी अभी तक बना हुआ है, तभी कल रात्रि किसी आवाज के कारण नींद खुल गयी जब भीतर भय की हल्की छाया दिखी. जून आज आने वाले हैं. ठंड अब बढ़ गयी है. रात को जो स्वप्न आते हैं वे भी भीतर चलते आवेगों का प्रभाव हो सकते हैं. पुराने जन्मों की स्मृतियाँ और बीती हुई बातें भी स्वप्न बनकर आती हैं, पर जब जागृत में मन सजग रहना सीख जायेगा तभी तो स्वप्न में भी रह पायेगा !

मौसम पिछले तीन चार दिनों से बहुत ठंडा चल रहा है, वर्षा भी हुई और शीत पवन भी बही. सुबह जब वे भ्रमण के लिए निकले, आकाश में तारे खिले थे और सड़क पर सन्नाटा था. वापसी में तीन-चार व्यक्ति दिखे, जो उनकी तरह प्रातः भ्रमण के लिए आए थे. फिर सुबह का क्रम आरम्भ हो गया, जून के जाने के बाद कम्प्यूटर खोला, कोई एक बार फेसबुक के सामने बैठ जाये तो समय कहाँ भाग जाता है पता ही नहीं चलता. उसके ब्लॉग में उस वर्ष की कहानी चल रही है जब सासु माँ साथ में रह रही थीं. अब अपने नये जीवन में जाने कहाँ होंगी वह, पर जहाँ भी हों वहाँ उन्हें हर ख़ुशी मिले, उसने मन ही मन प्रार्थना की. मोबाइल नहीं मिला है अभी तक, पर इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, अच्छा ही है, कुछ समय बच जाता है. शाम की योग कक्षा ठीक चल रही है, अपने लिए भी एक क्रम बन गया है और जो महिलाएं सीखने आती हैं, उनके लिए भी लाभप्रद है. फोन पर बात हुई, एक बहन व एक भाई के मध्य सब कुछ सामान्य नहीं है पर यही तो सामान्य है, संसार इसी का नाम है. कल शाम फिर प्रेस गये वे उत्सव के निमन्त्रण पत्र का आर्डर देने.


3 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आपकी रचना लिंक की गई इसका अर्थ है कि आपकी रचना 'रचनाधर्मिता' के उन सभी मानदण्डों को पूर्ण करती है जिससे साहित्यसमाज और पल्लवित व पुष्पित हो रहा है। अतः आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    1. बहुत बहुत आभार ध्रुव जी !

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  2. स्वागत व आभार लोकेश जी !

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