जिंदल नेचर क्योर
आज सुबह भी वर्षा हो रही थी। छत पर अंधेरा था, बल्ब जलाकर प्राणायाम किया। हवा शीतल थी और ब्रह्म मुहूर्त का प्रभाव भी मन को शांति प्रदान कर रहा था। उजाला होने पर वे बाहर निकले। मन अब शून्य में टिकने लगा है। उसे शांति ही रूचती है। ज़्यादा बोलना भी अच्छा नहीं लगता। आत्मा, गुरु और परमात्मा तीनों एक चैतन्य सत्ता हैं, यह बात अनुभव में आती है । एक कविता भी प्रकाशित की शब्दों की सीमा पर, मौन जितना प्रभावशाली होता है, शब्द उतने नहीं हैं। कल पड़ोस वाले घर के दुमंज़िले की छत पड़ेगी। पड़ोसन अपने माता-पिता के साथ आकर उनकी छत से इसे देखना चाहती है। आज शाम से लगातार वर्षा हो रही है। नन्हा और सोनू माँ-पापा को लाने एयरपोर्ट गये हैं। पड़ोसी परिवार आया था, पूरण पोली, पेड़े, और मैसूर पाक भी लाए थे वे। पापा जी से बात की, आज उन्होंने जुग सुरैया का एक लेख टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पढ़ा, कविता क्या है ? उसी के बारे में बताया।मौन पर लिखी उसकी कविता पर कमेंट्स आये हैं। जिसने भीतर के मौन को महसूस नहीं किया है, उसके लिए इसे पाना असंभव ही जान पड़ेगा। नन्हे ने एक नया बोर्ड गेम भेजा है, पिन-बॉल नाम है उसका। बचपन में वे खेला करते थे। आज सुबह तीन दिनों के बाद वर्षा नहीं हो रही थी। पूरे चालीस मिनट वह तेज गति से चली और दस मिनट दौड़ लगायी।जून को दौड़ना पसंद नहीं है, पर वजन कम करने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा। वापस आकर योग-साधना।आज नाश्ता नहीं बनाना था। कल समधिन जी के लाए दही-बड़े और हलवा ही पर्याप्त था। दोपहर को नैनी नहीं आयी, शायद उसने भी वैक्सीन लगवायी है। पापा जी से बात हुई, भक्ति और ज्ञान की बात। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है।उन्हें समधी जी द्वारा भेजी चाय के बारे में बताया, तो वह खुश हुए। छोटा भाई ड्यूटी पर वापस गुजरात चला गया, अब डेढ़ महीने बाद आयेगा। वह बड़ी ननद के घर भी जाएगा। शाम को वे पहली बार सोसाइटी में स्थित एक आवास में गये, जिनके अमरूद के बगीचे से ढेर सारे अमरूद ख़रीदे और पपीते भी।हरसिंगार पर एक नयी कविता लिखी, वर्षों पहले एक लिखी थी। जून ने नन्हे के लिए पैडिक्योर मशीन भेजी है। कल उसका ‘फूटरेस्ट’ भी बनकर आ गया।जून ने आज गर्म पानी का टैंक साफ़ करवाया। आज गुरु पूर्णिमा है। सुबह गुरुजी का एओएल शिक्षकों के साथ वार्तालाप सुना। बहुत अच्छे सवाल-जवाब थे।शाम को भी एक कार्यक्रम था। पहले गुरुजी ने गुरुपूर्णिमा का महत्व बताया। दक्षिणामूर्ति का वर्णन किया। संगीत व नृत्य के एक कार्यक्रम की प्रस्तुति हुई, जिसमें ३५० बच्चे तथा बड़े शामिल थे। नृत्य भिन्न-भिन्न स्थानों पर किया गया था, फिर उसे एक जगह प्रस्तुत किया गया। अंत में सुरीले भजन गाये गये। दूर से आश्रम स्थित विशालाक्षी मंडप का शिखर देखा, जब वे रात्रि भ्रमण के लिए गये। शाम को मृणाल ज्योति की एक शिक्षिका से शिक्षक दिवस पर उन्हें उपहार भेजने के सिलसिले में बात हुई। ‘इस दिन तृप्ति की एक अज्ञात राशि का अनुभव होगा’। आज सुबह उठते ही सबसे पहले यह विचार नूना से किसी ने कहा। रात को एक स्वप्न देखा, किसी उपकरण को बनाने की प्रक्रिया में जून सहायता करते हैं, पर उनका शुक्रिया अदा करने की बजाय वह कहती है कि यह काम वह पहले भी कर चुकी है। यह सत्य भी था, पर जब वह इसका अनुमोदन नहीं करते तो वह ज़ोर देकर पुन: कहती है। स्वयं को महत्व देने के इस संस्कार से छुटकारा पाना होगा। यही तो अहंकार है। उनके कर्म स्वयं उनकी कहानी कहें, तब तो ठीक है पर अपने शब्दों में अपना महत्व रखना ही अहंकार है। कर्ताभाव से मुक्त हुए बिना सहज कर्म नहीं होते, ऐसे कर्म जो अस्तित्त्व उनसे करवाना चाहता है। आदमी स्वयं जो भी करता है, वह सीमित होता है। अज्ञात असीम है। उसे लगा, उसके संस्कार अवश्य ही मिट रहे हैं। परमात्मा और गुरु उसके साथ हैं, यह कहना भी ठीक नहीं है, वही करेंगे अब जो भी इस देह और मन से होना है। आज का इतवार कुछ अलग था। सुबह टहल कर आते समय रॉक गार्डन में ही चट्टान पर बैठकर प्राणायाम किया। खुली हवा, शांत और शीतल वातावरण में केवल मोर व पंछियों की आवाज़ें आ रही थीं। वापस आकर जून साइकिल चलाने गये और उसने माली से काम करवाया। नाश्ते के बाद जून ने कहा, असम से एक परिचित डाक्टर आये हैं, दोपहर को भोजन पर बुलाया है। वह जिंदल नेचर केयर में स्वास्थ्य कारणों से तीसरी बार आये हैं। लंच के बाद उन्होंने बताया, यहाँ आकर उनका वजन घटता है, पर कुछ समय बाद भोजन व जीवन शैली के कारण फिर बढ़ जाता है। मज़ाक़ में यह भी कहा, यहाँ आकर वे इस बात का पैसा देते हैं कि उन्हें कम खिलाया जाये। वह असमिया पड़ोसी से मिलने भी गये। शाम को वे उन्हें आश्रम ले गये।
दिनभर की बातों पर बहुत सुंदर सादगीपूर्ण लेख
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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