Wednesday, August 13, 2025

संयम की साधना

संयम की साधना



आज ‘संयम’ का दूसरा दिन है। कल की तुलना में ध्यान सरलता से लगा और देर तक भी। भीतर जैसे कोई सिखा रहा था, योग की साधना आरंभ करने से पूर्व यम-नियम का ज्ञान आवश्यक  है। यम अर्थात वे मूल्य, जो समाज में जीने का तरीक़ा सिखाते हैं। जब तक मन में हिंसा की प्रवृत्ति किसी भी रूप में है, नकारात्मकता बनी रहेगी। हिंसा के प्रति आकर्षण ही है जो मनुष्य को हृदयहीन बनाता है. योग में स्थित होने के लिए अहिंसा पहला मूल्य है. दूसरों के दुख को देखकर उदासीन बने रहना भी हिंसा है. अन्यों के दुख को देखकर बुद्ध के मन में करुणा का जन्म होता है, वह करुणा तभी उपजती है जब अहंकार शून्य होकर कोई अपने को परिवर्तित कर लेता है. ऊर्जा एक ही है चाहे कोई उसे अहंकार के रूप में उपयोग करे अथवा अस्तित्त्व के प्रति स्वयं के समर्पण के रूप में. जब तक साधक को अपने लक्ष्य का ज्ञान नहीं हो पाता, वह आगे कैसे बढ़ सकता है?


साधक का साध्य परमात्मा है और यदि वह स्वयं को अन्यों से श्रेष्ठ मानता है, तो वह हिंसा कर ही रहा है। अन्यों को हेय दृष्टि से देखने पर उन्हें दुख होगा। साधक मन में ईश्वर को धारण करता है, यह भाव अहंकार बढ़ाता है। मन को परमात्मा के प्रति समर्पित करना है, यह भाव विनम्र बनाता है। पूर्ण समर्पण ही उसके योग्य बनाता है। अन्य की संपत्ति देखकर उसे पाने की इच्छा मन में जगी तो लोभ मिटा नहीं, अस्तेय सधा नहीं।ज़रूरत से अधिक वस्तुओं का संग्रह भी व्यर्थ है और ब्रह्म में विचरण नहीं किया तो मन व्यर्थ की चेष्टाओं में ही लगेगा। इसी प्रकार भीतर संतोष बना रहे तो मन सहज ही प्रसन्न रहेगा। भीतर-बाहर की स्वच्छता रहे, तभी यह संभव है।


विपरीत परिस्थतियों में मन की समता बनी रहे, इसके लिए ईश्वर पर अटूट श्रद्धा और आत्म निरीक्षण की कला भी आनी चाहिए। इसके बाद आता है आसन का अभ्यास, जिसमें बैठकर प्राणायाम करना है। सभी इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर मन में धारण करना, मन को बुद्धि में और बुद्धि को आत्मा में स्थित करके आत्मा को परमात्मा में लीन कर देना ही ध्यान है। जब  दीर्घ काल तक यह सहज ही होने लगे, तो यही समाधि है।समाधि का अभ्यास जब दृढ़ हो जाता है तो जागृत अवस्था में हर समय भीतर एक स्थिरता का अनुभव होता है। मन को टिकने के लिए एक आधार, एक केंद्र मिल जाता है। मन एकाग्र रहता है, ऊर्जा व्यर्थ नहीं जाती और मन सहज ही प्रसन्न रहता है। जब सुने हुए और देखे हुए के प्रति कोई आकर्षण शेष नहीं रहता, तब वैराग्य घटता है।आज गर्मी ज़्यादा है, किंतु दिन भर आभास ही नहीं हुआ। रात्रि भ्रमण के लिए निकले तो हवा बंद थी। आज सुबह देखा, पैशन फ़्रूट की बेल नीचे गिर गयी है। पड़ोस में बनने वाले मज़दूरों ने जो हरे रंग की शीट लगाई थी वह भी गिर गई है। शायद कल वे उसे ठीक करेंगे। 


आज स्वसंचालित कोर्स का तीसरा दिन है। आज सुबह का ध्यान इतना गहरा नहीं था पर दोपहर बाद का बहुत रसपूर्ण।वर्षों बाद बालकृष्ण की छवि का ध्यान किया, सुबह जो वाक्य भीतर सुना  था वह सही सिद्ध हुआ। परमात्मा को सब कुछ पहले से ही ज्ञात होता है। शाम को भी कुछ देर भाव-जगत में विचरण किया। वेदान्त का ध्यान कितना सपाट होता है, शून्य का अनुभव, बस स्वयं के होने का: पर कोई साथ हो, जो राह दिखाने वाला हो अथवा तो जिस पर दिल न्योछावर किया जा सके तो साधना में प्राण आ जाते हैं। मन कैसा ठहरा हुआ है। आज गुरुजी के ज्ञान के अनमोल वचनों का आधार लेकर कुछ लिखा, यह भी तो उनके ज्ञान का प्रचार-प्रसार ही होगा। वही सिखाने वाला है और वही सीखने वाला भी ! वहाँ दो होकर भी दो नहीं हैं !  

   

आज सुबह समय पर साधना आरंभ की। दोपहर तक सब समयानुसार हुआ, पर तीन बजे के बाद गुरुजी को लिखे पत्रों की डायरी पढ़ने के लिए उठा ली, सारा समय उसी को पढ़ने में बीत गया। लगभग बारह वर्षों तक अपनी साधना संबंधी समस्याएँ नूना उन्हें पत्र में लिखती थी, समाधान भी मिल जाता था।२०१७ के बाद कोई पत्र नहीं लिखा। नन्हे के विवाह में पुन: पूर्व संस्कारों का उदय हुआ था, कुछ दिनों तक स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। उसके बाद बैंगलोर आने का स्वप्न था मन में। यहाँ आकर गुरुजी के दर्शन होने लगे, सेवा कार्य भी शुरू हुआ। कोरोना काल में आश्रम जाना ही बंद हो गया।कवि सम्मेलन में भी उनसे मुलाक़ात हुई, पर अब उनसे दूरी नहीं लगती सो पत्र लिखने का ख़्याल भी नहीं अता। अपना आप, गुरु और परमात्मा तीनों एक ही हैं, यह भाव दृढ़ होता जाता है।शाम छह बजे के बाद से मौन खुल गया है, पर सिर में जैसे भारीपन लग रहा ही, शायद शब्दों का असर हो रहा है। बोलने में काफ़ी ऊर्जा ख़र्च होती है।     

  




Sunday, August 10, 2025

अंतर आकाश


अंतर आकाश



कभी-कभी अतीत में झांकना जैसे एक खिड़की से झांकना है। जीवन को सुंदर बनाने की दिशा में उठाये गये वे छोटे-छोटे कदम थे, जो यहाँ तक ले आये हैं। जब हर घड़ी परमात्मा का स्मरण सहज ही बना रहता है। हर श्वास उसी की देन है। हर शै में वही है। उसके सिवा कोई और हो ही कैसे सकता है? भीतर एक अपूर्व शांति का साम्राज्य है, जिसे न कोई ले सकता है, न ही दे सकता है: वह ‘है’ ! शाम को मंझले भाई-भाभी से बहुत दिनों के बाद बात हुई। भाभी का जन्मदिन आने वाला है, उसके लिए कविता लिखनी है। शाम को पापाजी से बात हुई, उन्हें चिंता है कि भक्तिभाव में ज़्यादा नहीं डूबना चाहिए, नहीं तो संसार से विरक्ति हो जाएगी। मनुष्य का मन भी कितना जकड़ा हुआ है, उम्र के आख़िरी पड़ाव पर आकर भी विरक्ति की बात से उसे भय लगता है। 


आज सुबह टहलने गये तो आसमान में पूर्णिमा का चाँद बादलों के पीछे छिपा हुआ था।नीले बादलों से झांकता हुआ पीला चाँद बहुत सुंदर लग रहा था। रोज़ की तरह नीम की टहनी से कुछ कोमल पत्तियाँ जून ने तोड़ कर दी, पित्त कम होता है नीम की पत्ती चबाने से। वापस आकर धौति क्रिया भी की और आसान आदि। गुरुजी का एक पुराना वीडियो देखा, बहुत ही अच्छा लगा। एडवांस कोर्स में सुना था इसे।जून आज बगीचे के लिए मिट्टी व खाद लाए हैं। दोपहर को छोटी बहन से बात हुई, बहनोई की दूसरी आँख का ऑपरेशन अगले महीने होगा। शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग के संयम कोर्स की सूचना मिली। उसने सोचा है, मंगल से शुक्र चार दिनों तक स्वयं ही प्रतिदिन मौन रहकर आठ घंटे की साधना करेगी। जून भी मान गये हैं। बहुत अच्छा लगेगा। 


आज शाम से ही तेज वर्षा हो रही थी, जब से वे बोटेनिका से लौटे। वापस आकर कुछ किताबों में से एक-एक पन्ना पढ़ा, परमात्मा को अपने क़रीब महसूस किया। नन्हे से बात हुई, कल सुबह वह सोनू के साथ आएगा। आज पहली बार बगीचे से पपीता तोड़ा, कल पराँठे बनायेंगे। 


आज नाश्ते के बाद सब लोग अगारा झील देखने गये, अत्यंत सुंदर दृश्य थे। थोड़ी सी चढ़ाई चढ़कर झील के किनारे बने ऊँचे बंद पर टहलते रहे। दोपहर को बच्चे वापस चले गये। शाम को बोटेनिका से आगे सोमनहल्ली की तरफ़ कच्चे रास्ते पर आगे बढ़ते गये। वापसी में एक परिचित दंपत्ति कृष्णा व उनकी डाक्टर  पत्नी मिल गयीं ।उनके साथ थोड़ा और आगे जंगल में चले गये, लौटते समय वर्षा होने लगी, पहले बूँदाबाँदी फिर तेज वर्षा, घर आते-आते तक सभी पूरी तरह भीग गये थे। जून ने ग्रीन टी बनायी।आज झील और जंगल की कई तस्वीरें भी उतारीं। 


आज बहुत दिनों बाद आसमान में टिमटिमाते चमचमाते तारे देखे, कल भी तापमान ३२ डिग्री रहेगा। नूना कल से अगले चार दिनों तक ध्यान व मौन की साधना शुरू कर रही है। यह इस तरह का पहला प्रयास है, पर आगे भी जारी रहेगा। सुबह ६-८।३० तक योग आसन, प्राणायाम, क्रिया तथा ध्यान । ८।३० से १०  तक नाश्ता व बगीचे में काम। १०-१२/३० तक जप साधना, स्वाध्याय व लेखन। १२/३० - ३ बजे तक भोजन, विश्राम व लेखन, ३-६ तक ध्यान, भजन, गायन, श्लोक पाठ।६-९तक सांध्य भ्रमण, रात्रि भोजन, डायरी लेखन, रात्रि भ्रमण। इन चार दिनों में मोबाइल तथा टीवी से दूरी रहेगी। स्वयं को जानने के लिए स्वयं के साथ समय बिताना बहुत ज़रूरी है।  


आज चार दिनों के मौन का प्रथम दिन है। दिन भर में कुल मिलकर पाँच-छह शब्द बोले होंगे। बिना बोले भी काम चल जाता है। शब्दों के पीछे जो भाव हैं, वे इशारे से भी बखूबी समझाए जा सकते हैं। आज अपेक्षाकृत मौसम गर्म है। बहुत दिनों बाद सूर्यास्त के भी दर्शन भी हुए, बादलों के पीछे ही सही। गुरुजी की दो पुस्तकें निकालीं, सोर्स ऑफ़ लाइफ तथा द स्पेस विदिन, दोनों में अमूल्य ज्ञान है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य का अर्थ बहुत सरलता से समझाया गया है। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान आदि नियमों का भी। ध्यान की बारीकियाँ पढ़कर ध्यान भी गहरा हुआ। आज रात की निद्रा भी अवश्य विश्राम पूर्ण होगी। कुछ पुरानी कविताएँ भी पढ़ीं। सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक का समय अति सरलता से बीत गया। सुबह कुछ देर बाग़वानी की कुछ देर सफ़ाई। अभी सोने में आधा घंटा शेष है, कुछ लिखा जा सकता है।                                                                                                    


Monday, August 4, 2025

योग दिवस

आज भी नूना ने एओएल का एक अनुवाद कार्य किया। योग के महत्व पर एक बहुत अच्छा लेख था किन्हीं कमलेश का, नाम से पता नहीं चलता वह लेखक है या लेखिका। इस इतवार को नन्हा और सोनू दोपहर डेढ़ बजे तक रह सकते हैं, कर्फ़्यू में २ बजे तक ढील दी जाएगी। सोमवार से शाम पाँच बजे तक बाज़ार खुला रहेगा। विशेषज्ञ कह रहे हैं, कोरोना की तीसरी लहर निकट भविष्य में आ सकती है। आज सुबह भी छत पर धुआँ था, जून ने पड़ोसी को लिखा, उनके मज़दूर लकड़ी पर खाना बनाते हैं, उसी का धुआँ आता है। उनका जवाब आया, क्षमा माँगी है और मज़दूरों को जगह बदलने को भी कहा है। इस समय भी कमरे में हल्की गंध है। जबकि शाम को सारे दरवाज़े, खिड़कियाँ बंद कर दिये थे।आज सुबह वे थित्ताहल्ली गये थे, एक नया स्थान देखा। फलवाले मुनिकुमार की दुकान के पास एक छोटी सी लड़की पेड़ से टँगे झूले पर झूल रही थी, बाजार के शोर से बेख़बर वह अपनी मस्ती में खोयी थी।


आज का पूरा दिन ऊर्जा और उत्साह से भरा था। सुबह ठंडी हवा और घने बादलों के सान्निध्य में टहल कर आये।वापस आकर कार से पुन: गये, बगीचे की क्यारियों के चारों ओर लगाने के लिए पत्थर लाए, जो कल सुबह सड़क किनारे पड़े देखे थे। शायद ख़ाली पड़े प्लॉट्स में सफ़ाई के लिए ट्रैक्टर चलाते समय ज़मीन से निकले होंगे। उनका छोटा सा लॉन अब पहले से भी सुंदर लग रहा है। शाम को योग दिवस के लिए सूर्य नमस्कार का वीडियो बनाया।पापाजी से बात हुई, उन्होंने उसकी कविताएँ पढ़ीं और कहा, अधिकतर लोग अध्यात्म में रुचि नहीं लेते।               


आज पितृ दिवस है। सुबह साढ़े आठ बजे सोनू, नन्हा और उसका एक मित्र आ गये थे। जून के लिए जूते और प्रसाधन सामग्री लाए हैं, नूना के लिए भी एक लोशन है। नाश्ते में जून ने पनियप्पम बनाये। उसके बाद एक नया बोर्ड गेम खेला, पैंडेमिक, अच्छा खेल है।पापा जी से बात की, उन्हें पितृ दिवस पर उनके लिए लिखी कविताओं का संग्रह भेजा। शाम को छोटे भाई का फ़ोन आया, वह लखनऊ में होटल से गेस्टहाउस में शिफ्ट हो गया है, इस महीने के अंत तक वहीं रहेगा। 


आज योग दिवस है, सुबह डीडी पर मोदी जी का प्रभावशाली भाषण सुना, योगासन किए। शाम को भी प्राणायाम किया। पापाजी से योग का महत्व पर चर्चा हुई। एक सखी से बात हुई, उसकी नयी नवेली बहू ने भी उसके साथ योग किया, बताते हुए वह बहुत खुश थी। बड़े भाई, दीदी-जीजाजी को भी योग दिवस की बधाई दी, यानी कुल मिलाकर अच्छा रहा योग दिवस।


आज सुबह उठने में पंद्रह मिनट की देरी हुई, उसकी वजह से पंद्रह मिनट कम पाठ किया। नाश्ते के बाद जून ड्राइव पर ले गये। कल से उसने सोचा था, अस्तित्त्व जो कराये हो जाने देना चाहिए, कोई आनाकानी नहीं की। वापस आते आते सवा ग्यारह हो गये। यानी लिखने के लिए सुबह जो एक घंटा मिलता है, वह नहीं मिला। दोपहर को जून के एक व्यवहार से मन उदास हो गया, जिसका असर शाम तक रहा। आख़िर ध्यान के समय उनसे कहना ही पड़ा, परमात्मा ने ही कहलवाया। अब जो कुछ भी उसके साथ हो रहा है, या होगा, सब कुछ उस मालिक की मर्ज़ी से हो होगा। आज पापाजी से बात हुई, उन्होंने कहा, कविता बहुत उच्च स्तर की थी, वह दो पंछियों वाली, जो एक ही वृक्ष पर रहते हैं; एक साक्षी है, दूसरा जीवन के रस को भोगने को इच्छुक। एक आत्मा दूसरा परमात्मा। शाम को असमिया सखी का फ़ोन आया, सुबह साढ़े छह बजे योग नहीं कर पाएगी, आज सुबह ही उसने कहा था, वीडियो कॉल पर उसके साथ किया करेगी।अपने लिए समय निकालना कितना कठिन होता है कुछ लोगों के लिए। 


रात को स्वप्न में गुरुजी को देखा, वह उनके घर की पूजा में आये हैं पर वह तैयारी में लगी रहने के कारण पूजा में नहीं बैठ पायी। फिर कुछ देर बाद आवाज़ आयी, आप पूजा कर रही हैं? देखा, तो  दूसरे कमरे में बैठकर वह उसकी खिड़की से आवाज़ दे रहे थे; यानि वह भी पूजा में नहीं बैठे थे। कह रहे थे, वहाँ पूजाघर में बहुत उमस थी।कल बहुत गर्मी थी। कैसा विचित्र सा था स्वप्न!


आजकल बिजली आंखमिचौली खेलती रहती है दिन में कई बार जाती है, फिर जेनसेट से काम चलाना होता है, आ जाती है कुछ देर में। इस समय भी नदारद है। पंखा एक पर चल रहा है, एसी बंद हो गया है। खिड़की-दरवाज़ा सब बंद है, सो गर्मी हो गई है। पता नहीं कब आ जाएगी। सुबह समय से उठे थे, कल जो पत्थर एकत्र किए थे, आज कुछ और लाये, गुड़हल व रात की रानी के पौधों के चारों ओर रख दिये हैं। आज जून दशहरी, लंगड़ा और यहाँ के लोकल आम भी ले आये हैं। उन्हें लीची भी मिल गई। टीवीएफ़ पर ‘पंचायत’ देखा, अच्छा अभिनय किया है नायक ने। पापा जी आजकल ‘अथातो भक्ति जिज्ञासा’ पढ़ रहे हैं, ओशो के दिये हुए प्रवचनों पर आधारित पुस्तक है। शाम को टहलते समय मदार के फूलों व फलों की तस्वीरें उतारीं। दीदी-जीजाजी का फ़ोन आया, उन्हें जून का भेजा मोबाइल स्टैंड मिल गया है, अब उस पर वीडियो बनायेंगे। कन्नड़ भाषा का अभ्यास छूत गया है। ‘साईं’  के सारे एपिसोड समाप्त हो जाने के बाद पुन: आरंभ करेगी। सोने से पूर्व पुस्तक पढ़ने का क्रम भी आजकल छूट गया है।