Monday, March 11, 2024

पंचदशी

आज भी सरकार और किसानों के मध्य वार्ता चल रही है। पिछले साल जून में तीन नये कृषि क़ानूनों के विरुद्ध शुरू हुआ था यह आंदोलन, जिसमें बाद में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर धरना शुरू कर दिया; शायद स्वतंत्रता के बाद से किसानों और सरकार के बीच सबसे बड़ा आंदोलन है। अब पंद्रह जनवरी को फिर से वार्ता होगी। आज उसने स्टॉक मार्केट पर एक पुस्तक पढ़नी शुरू की है। सेविंग तथा इन्वेसमेंट के बारे में पढ़ा। ​​​​इन सब विषयों के बारे में वह पूरी तरह से अनभिज्ञ है। दीदी-जीजा जी का भेजा एक उपहार मिला, पीतल जैसा आभास देता बत्तख़ों का एक जोड़ा है, उनके विवाह की वर्षगाँठ पर। आज बहुत दिनों के बाद एक पुरानी सखी का फ़ोन आया, वे लोग अगले वर्ष सेवा निवृत्ति के बाद बैंगलोर में बसना चाहते हैं। कारण पूछा तो बताया, दिल्ली का मौसम और प्रदूषण, साथ ही यहाँ के लोगों का अक्खड़पन, उसे मन ही मन हँसी भी आयी और कुछ पुरानी बातें याद हो आयीं, जब वे सब असम में रहा करते थे। आज शाम को साइकिल चलाते समय वह शायद सजग नहीं थी, एक छोटी लड़की का एक पहिये वाला स्कूटर सामने आ गया, लड़की घबरा गई, एक तरफ़ झुक गई, महक नाम है उसका, सामने वाली लाइन में रहती है। उसके साथ एक सहेली भी थी, कहने लगी, वे लोग हिंदी हैं, शायद उसका अर्थ था, वे हिन्दी बोलते हैं।उसने देखा है, ग़लत हिन्दी बोलने पर भी हिन्दी भाषी जरा भी नहीं टोकते, बल्कि ख़ुद भी उन्हीं के लहजे में बोलने लगते हैं। कन्नड़ भाषी अपनी भाषा को लेकर बहुत अधिक सजग हैं।मोबाइल पर उसने आज से‘पंचदशी’(पंद्रह) सुनना आरंभ किया है।पंचदशी स्वामी विद्यारण्य की अद्वैत सिद्धांत पर लिखी एक प्रसिद्ध कृति है। इसमें पंद्रह भाग हैं। जो तीन भागों में बाँटे गये हैं। इनमें सत्, चित्  और आनंद की व्याख्या की गई है।किंतु वह जानती है, ध्यान भी गहरा करना होगा यदि अध्यात्म में वांछित प्रगति करनी है। उस अनंत परमात्मा की अनंत शक्तियाँ हैं। जो कहता है उसे जान लिया, वह घोर अंधकार में घिर जाता है। परमात्मा तो बेअंत है, उसे जानने का एक ही अर्थ है, अधिक से अधिक उसके सान्निध्य में रहना, उसमें डूबना और त्याह ध्यान में ही संभव है। 


रात्रि के नौ बजे हैं । कल रात लगभग एक बजे अचानक नींद खुल गई।चेहरे पर पसीना था, शायद कमरा काफ़ी गर्म हो गया था।उठकर खिड़कियाँ व दरवाज़े खोले, कुछ देर बैठने से हवा का एक झोंका जैसे आकर छू गया, रात्रि की निस्तब्धता में कहीं से एक पंछी की आवाज़ सुनायी दी। दोपहर को उस सखी का फ़ोन फिर से आया।वे लोग अब मकान ख़रीदना छोड़कर किराए के मकान में रहने की सोच रहे हैं।उनके लिए घर देखना शुरू किया है। ईश्वर का विधान मानवों की समझ से बाहर है। वह बिछुड़े हुओं को कब कैसे मिलायेगा कोई नहीं जानता।अभी नन्हे और सोनू से बात हुई। सुबह वह उठा तो सिरहाने रखी दवा का नाम बिना पढ़े, आँख की दवा समझ कर डाल ली थी दिन भर परेशान रहा। डाक्टर ने दूसरी दवा दी है, कल तक अवश्य ठीक हो जाएगा। आज पापा जी से बात हुई, वह लाओत्से की एक पुस्तक पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा-उस पुस्तक के अनुसार, यदि कोई ये तीन बातें अपना ले तो सुखी रहेगा। प्रथम है, दिल में सारी कायनात के लिए अनायास ही प्रेम, दूसरी है किसी भी वस्तु या बात में अति पर न जाना और तीसरी कभी भी सबसे आगे रहने का प्रयास न करना। लाओत्से विनम्रता का पाठ ही तो पढ़ा रहे हैं, पीछे रहने में जिसे किसी हीनता का अनुभव न हो, वही समता में रहा सकता है और जो सबसे प्रेम कर सकता है, उसका मन भी डोलता नहीं। 


आज सुबह नींद चार बजे ही खुल गयी थी। कल रात ‘पंचदशी’ सुनकर सोयी थी। सुबह उठते ही एक सूत्र मन में आया; जो जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति को देखता है, वह ‘मैं’ हूँ । योग वशिष्ठ में पढ़ा था, वास्तव में ब्रह्म में कुछ हुआ ही नहीं, सब स्वप्नवत् ही है। मन ठहर गया; सुबह-सुबह ही एक कविता लिखी, फिर कुछ देर का मौन, उसके बाद एक रचना उतरी। आर्ट ऑफ़ लिविंग के अनुवाद संयोजक को भेजी कि गुरुजी को पढ़ने के लिए भेजे, उसने कहा नकुल भैया से कहकर भिजवायेगा। गुरुजी का संदेश कल भी आया, आज भी एओएल के ऐप ‘सत्व’ में उनकी ज्ञान सूक्ति के माध्यम से।आज नन्हा, सोनू व बड़े भैया की बिटिया आये थे, जिसने निफ़्ट से पढ़ाई की है। दोपहर को उसके मनपसंद राजमा-चावल बनाये। नन्हे की आँख अभी तक ठीक पूरी तरह से नहीं हुई है। शाम को सब मिलकर पड़ोस में बन रहे आलीशान विशाल मकान को देखने गये, मकानमलिक भी आ गये थे।


जनवरी आधा भी नहीं बीता है, मौसम अभी से गर्म होने लगा है। आज गर्म वस्त्रों को धूप दिखाकर आलमारी में रख दिया, यहाँ उनकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। शाम को एक और घर देखने गये, तीन कमरों का मकान अच्छा है मार्च में वे लोग आयेंगे, ऐसा कहा है।आज नन्हे ने एक दोसा तवा भिजवाया, संजीव कपूर की कंपनी का है, ग्रेनाइट का बना हुआ। कल उसका उद्घाटन करेंगे, उसने मन में सोचा ही था कि पहले आलू पराँठा बनायेंगे, ठीक उसी वक्त जून ने भी बिलकुल यही बात कही। विचार यात्रा करते हैं, यह सिद्ध हो गया। 



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