Wednesday, March 24, 2021

रागी की रोटी

 

आज का दिन भी सद्गुरू की वाणी के साथ प्रारंभ हुआ। गूढ ज्ञान को वह सरल शब्दों में समझाते हैं, बिल्कुल अपना मानकर। गुरू कितना महान होता है, यह कोई-कोई ही जान सकता है। शाम को वे आश्रम गए, सत्संग में भाग लिया। वहाँ भीड़ बहुत थी पर कई लोग इधर-उधर टहल रहे थे, कुछ खरीदारी कर रहे थे। ज्ञान के ग्राहक सब नहीं हो सकते, प्रेम के तो और भी कम ! जीवन का भेद जो जान लेता है वही गुरू की महिमा को जान सकता है। गुरू जीवन से परिचय कराता है ! परमात्मा ही जीवन है और परमात्मा ही गुरु के रूप में प्रकट होता है। उसने गुरू को कोटि-कोटि नमन किया ! रात्रि भोजन भी वहीं अन्नपूर्णा में ग्रहण किया, शुद्ध, सात्विक भोजन ! सुबह भांजा आ गया था, वह भी साथ गया। रास्ते में पौधों के लिए खाद व कुछ फल खरीदे। नन्हे ने फूलों की पौध लगाने के लिए एक किट भिजवाया, बीज डाल दिए हैं, आठ-दस दिनों में निकल आएंगे। बागवानी का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। आज पड़ोसिन ने भी एक पौधा दिया। दोपहर को एक कविता जैसा कुछ लिखा। अपने आप ही मात्रा आदि ठीक ठाक हो गई। एक अन्य लेखिका की कविता पढ़ी।  


आज पुन: आश्रम गए। वहाँ प्रवेश करते ही मन हल्का हो जाता है। गुरूजी नहीं थे आज, संभवत: अगली बार मिलें। सत्संग चल रहा था। एक स्वामी जी भजन गा रहे थे, सभी तन्मय होकर साथ दे रहे थे। कुछ विदेशी महिलाओं ने नृत्य करना भी आरंभ कर दिया। उसने दो भजनों का वीडियो बनाया, कल व्हाट्सएप पर योग साधिकाओं के ग्रुप में भेजेगी। आज लौटते समय इडली बनाने के लिए बड़ा कुकर खरीदा। आश्रम जाने से पूर्व योग कक्षा में कुछ नए आसन किए। एक घंटा कैसा बीत जाता है पता ही नहीं चलता। कल योग कक्षा में त्राटक ध्यान  किया, अच्छा लगा। उनके साथ एक और महिला आती हैं, वह भी पूरे मनोयोग से आसन करती हैं। आज घर बैठे ही साइकिल की सर्विसिंग करने वाला मकैनिक आ गया। जीवन की धारा मंथर गति से बह रही है। 


पिछले दो दिन रात को सोने में देर हुई, सो लिखने का समय नहीं मिला। आजकल सोने से पूर्व ही डायरी खोलती है वह। दिन भर का लेखा-जोखा लेकर मन जैसे खुल जाता है, खाली हो जाता है और रात्रि की नींद पहले की सी गहरी और विश्राम पूर्ण होती है। यह तमस की अधिकता है या मन का विश्राम में टिकने की कला सीख लेना, जो हो, सभी कुछ स्वीकार करना है। कल नन्हे व सोनू  के लिए साई-भाजी, ढोकला और खीर बनाकर ले गए थे, गुलदाउदी व गुलाब के दो पौधे भी। उनके विवाह की दूसरी सालगिरह थी। अपने काम में दोनों इतने व्यस्त हैं कि उन्हें भविष्य के बारे में या अपने बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता, परिवार बढ़ाने की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वक्त को जो मंजूर होगा, वही होगा। अगले हफ्ते वह अपने एक मित्र की बैचलर पार्टी में जा रहा है, उसके बाद उसके विवाह में मध्य प्रदेश। 


पिछले दो दिन भी डायरी नहीं खोली। आजकल दिन, तिथि, महीने, समय आदि सब पहले की तरह याद नहीं रहते, शायद ध्यान हर समय उसी ‘एक’ की तरफ रहता है इसलिए ! आज का दिन कितने नए-नए अनुभवों से भरा हुआ है। सुबह वे टहलने गए, जून अक्सर यहाँ की तीन मुख्य समांतर सड़कों की बात करते हैं, उसने कहा, एक बार एक-एक करके वे उनपर जाएंगे ताकि ठीक से उसे रास्तों का ज्ञान हो जाए, जवाब में उन्होंने कहा, उसे दिशा बोध ही नहीं है। यह आलोचना वह पहले भी कर चुके हैं पर आज मन ने विद्रोह कर दिया, क्रोध किया, बाद में कुछ ही देर में सब शांत हो गया। क्रोध करते समय भीतर कोई देख रहा था कि अब क्या हो रहा है। जून शांत रहे, उनके धैर्य की परीक्षा हो गई। नाश्ते में यहाँ आकर पहली  बार ओट्स उपमा बनायी। अखबार पढ़ते समय जून ने कहा, दीदी-जीजा जी से बात नहीं हुई यात्रा से  वापस आकर, उसने फोन मिलाया तो वे कुछ नाराज लगे। उनका ही एक वाक्य याद आया, ‘जब जब जो-जो होता है, तब तब तब वह वह होना है, फिर किस बात का रोना है ? रात्रि भोजन के लिए वे यहीं की एक निवासी के यहाँ से ‘रागी’ की रोटी लाए, बहुत स्वादिष्ट थी, साथ में टमाटर वाली नारियल की चटनी भी उतनी ही स्वादु थी। महाराष्ट्र में तिकड़ी सरकार बन गई, कब तक चलेगी, कोई नहीं जानता। जीवन विविधरंगी है, शाम को आकाश के नीले रंग कैमरे में कैद किये। 


उस पुरानी डायरी में कुछ सुंदर वाक्य पढ़े -


थोड़ी सी  दर्शनिकता मनुष्य को नास्तिकता की ओर ले जाती है, गंभीर दर्शनिकता धर्म की ओर ले जाती है। 


सार्थक होती हैं वे जिंदगियाँ , जो दरिद्रता, कठिनाइयों और संघर्षों के बीच पलती हैं। ठोकरें और थपेड़े खाते हुए जो लोग मुसीबतों के पहाड़ों को तोड़कर अंतत: एक ऊंचाई पर पहुँच जाते हैं, दूसरों के लिए वे एक मशाल का काम देते हैं। 


हमें कोई देखता हो तो हम बुरा व्यवहार नहीं कर सकते। जब हम मन को अलग होकर देखते हैं तो मन कभी बुरा व्यवहार नहीं करता। 


मन से लड़ना नहीं, किन्तु मन को शुभ भावना से देखना चाहिए। 


9 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-03-2021 को चर्चा – 4,016 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. "मन से लड़ना नहीं, किन्तु मन को शुभ भावना से देखना चाहिए।" बहुत सुन्दर विचार । चिंतनपरक दृष्टिकोण लिए बहुत सुन्दर सृजनात्मकता ।

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    1. स्वागत व आभार मीना जी !

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    1. स्वागत व आभार शास्त्री जी !

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  4. बहुत दिनों बाद यहाँ आया... बहुत से पुराने लोग मिले और सबसे अलग वही शीतल बयार... लगा पुरानी सखि से मिलना हो गया युगों के बाद!!
    थोड़ी सी दार्शनिकता मनुष्य को नास्तिकता की ओर ले जाती है... बहुत ही गहरी बात है। हमने देखा है कि कई लोग दो चार पुस्तकें पढ़कर स्वयम को ज्ञानी समझने की भूल कर बैठते हैं और कुतर्क उन्हें नास्तिक ही नहीं, धर्मविरोधी भी बना देता है!
    मेरे लिये मानसिक संताप का एक लम्बा सिलसिला समाप्त हुआ! चेष्टा करूँगा नियमित रहूँ! प्रणाम स्वीकारें!!

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    1. बहुत अच्छा लग रहा है आपकी पहले की तरह सारगर्भित टिप्पणी देखकर, स्वागत व आभार !

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  5. बहुत ही सुंदर बस बहुत सुंदर।
    सादर

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