Wednesday, December 2, 2020

महादेवी वर्मा की कविताएं

 

रात्रि के आठ बजकर बीस मिनट हुए हैं. जून से अभी-अभी बात हुई, कूर्ग में उनका कार्यक्रम अभी चल रहा है. उन्होंने वहां की एक तस्वीर भेजी है, बहुत सुंदर स्थान है. नन्हे ने बताया, नए घर में फ्रिज ठीक से काम नहीं कर रहा था, बदल कर नया आ गया है. मौसम आज दिनभर वर्षा का ही रहा, दोपहर को मूसलाधार वर्षा हुई, बगीचे में पानी भर गया था. बच्चों के साथ कागज की नाव चलाई. किचन गार्डन की सारी क्यारियां लगभग डूब ही गयी थी. दो छोटी लड़कियाँ पीछे की सर्वेंट लाइन में नयी आयी हैं, कहने लगीं उन्हें भी योग सीखना है । शाम को भजन संध्या थी, एक साधिका खुद की बनाई लौकी की बर्फी लायी थी. दोपहर को एक सखी का फोन आया, उसकी हफ्ते में दो दिन रात्रि की ड्यूटी लगती है, दिल के मरीज आते हैं, रात भर काफी व्यस्त रहना होता है. उसे भारत आना भी है पर विदेश की सुविधाएं भी नहीं छोड़नी, अब दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं ! भारत में उनकी जायदाद है पर एक बार जो विदेश चला जाता है, घर वापसी कठिन होती जाती है. 

आज सुबह ‘पिता’  एक कविता लिखी, बचपन की जो स्मृतियाँ मन पर अंकित थीं, उन्हीं को शब्दों में उतार दिया, दीदी ने लिखा, बचपन याद आ गया. दोपहर को ‘माँ’ एक छोटा सा लेख लिखा, अपने-आप ही शब्द जैसे कम्प्यूटर की स्क्रीन पर उतरते जा रहे थे. भीतर एक शांति का अहसास हुआ, जैसे कोई भार हल्का हुआ हो. पापा जी ने कहा, जीवन बहुत बड़ा होता है, उसे कुछ शब्दों में कहना आसान नहीं है, वह उसके लेख के बारे में कह रहे थे, उन्हें भी कई बातें याद हो आयी होंगी. शाम को गुरूजी को सुना वह जर्मनी में थे सम्भवतः। बताया, अरस या अलस एक ही बात है, आलस्य जिसके जीवन में है, उसके जीवन में रस नहीं है. जब भी उन्हें दुख होता है, वे अपने पद से नीचे आ जाते हैं. कर्म जो उन्होंने बांधे थे राग-द्वेष के कारण, उन्हीं के कारण सुख-दुःख आते हैं. सुबह टहलने जाने से पूर्व बगीचे में जामुन बीने, इतने सारे थे कि सब उठाने में घँटों लग जाएँ, इस साल पेड़ों ने दिल खोल के सौगात दी है. परिचित परिवारों में सभी को बांट दिए हैं, धोबी, दूधवाले सभी को. बच्चे तो दिन भर पेड़ के नीचे से हटते ही नहीं हैं. कल सुबह माली ने अपने मित्र को पेड़ पर चढ़ा दिया और डालियों को हिलाकर वे जामुन नीचे गिराने लगे, कच्चे, पक्के, डालियाँ सभी कुछ,  उसने जाकर मना किया तब वह नीचे उतरा. उन्हें बस तीन महीने और यहाँ रहना है, फिर यह बाग़-बगीचे एक स्वप्न की तरह हो जायेंगे उनके लिए. जून ने वही से फ़ोन करके माली को  काम करने को कहा, उन्हें फ़िक्र है कि मेहमानों के आने से पूर्व बगीचा पूरी तरह से दर्शनीय हो. 


‘गुरु चरणन में दीन दुहाई’ आज सुबह नींद खुलने से पूर्व भीतर यह पंक्ति आयी, जाने कहाँ से आयी यह पंक्ति ! स्वयं को मधुर स्वर में गाते हुए सुना इस पंक्ति को. एक पुस्तक में किसी साधक के अनुभव पढ़े, जिसे भीतर से प्रेरणा हो रही थी कि जो कुछ भी मन में है, उसे बाहर ले आये. जो भी कामना, इच्छा अधूरी है उसे बाहर लाकर स्पष्ट देख ले, यह जन्म अंतिम जन्म है, ऐसा सोचकर कुछ भी ऐसा न रहे जिसके लिए उसे पुनः जन्म-मरण के फेर में आना पड़े. जब साधक खुद के भीतर ही उस शांति व समता को अनुभव कर लेता है, जो किसी भी स्थिति में खंडित नहीं होती तो सत्य को आँख में आँख डालकर देखने में कैसा भय ? उसने अपने भीतर देखा, स्वास्थ्य ठीक रहे यह प्रथम इच्छा है. संसार के किसी काम आ सके, कुछ कर सके समाज के लिए, यह दूसरी इच्छा है. परमात्मा के साथ एक होकर रहे, वाणी में स्थिरता हो, कभी किसी को दुःख न पहुँचे उसके व्यवहार से या वाणी से, ये तीसरी और चौथी इच्छाएं हैं. इतनी सारी इच्छाएं हैं भीतर, इसलिए कभी-कभी मन में हलचल होती है क्षण भर के लिए, पर सदा के लिए मुक्त होने का आनंद लेना हो तो इन सारी कामनाओं को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देना ही उचित है, और मन को सदा खाली रखना होगा.  


कालेज के उन दिनों में महादेवी वर्मा की कितनी ही कविताएं डायरी में उतारा करती थी. 


कैसे कहती हो सपना है 

अलि ! उस मूक मिलन की बात 

भरे हुए अब तक फूलों में 

मेरे आंसू उनके हास ! 


किस भांति कहूँ कैसे थे 

वे जग से परिचय के दिन 

मिश्री सा घुल जाता था 

मन छूते ही आंसू कण 


अपनेपन की छाया तब 

देखी न मुकुट मानस ने 

उसमें प्रतिबिम्बित सबके 

सुख-दुःख लगते थे अपने 


किसने अनजाने आकर 

वह चुरा लिया भोलापन 

उस विस्मृति के सपने से 

चौंकाया छूकर जीवन ! 


6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. एक समय मैं भी सभी प्रसिद्ध कवियों की कविताएँ डायरी में उतारा करती थी। फिर न जाने कैसे वह डायरी और एक अन्य डायरी जिसमें मेरी लिखी कविताएँ थीं, खो गई। उनका खोना क्या हुआ, मैंने लिखना ही छोड़ दिया। बाईस सालों के बाद ब्लॉग पर पुनः लेखन शुरू हुआ।
    आपके लेखन से महादेवी जी की बहुत कविताएँ स्मरण हो आई हैं !

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    1. बहुत बहुत स्वागत है मीना जी, खुशी हुई जानकार कि आपको पुन: महादेवी वर्मा की कविताएं याद आ गईं।

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  3. सुन्दर आलेख - - महादेवी वर्मा की कविताएं बहुत ही नाज़ुक शब्दों से बुनी हुई सी लगती हैं, हालांकि मैं विज्ञान का छात्र था लेकिन बहुत सारे हिंदी व बांग्ला साहित्यकारों को पढ़ा है उनमें से महदेवी वर्मा मेरी प्रिय कवयित्री रहीं हैं, आपका लेखन बहुत ही प्रभावशाली है - - नमन सह।

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  4. वाह, मैं भी विज्ञान की छात्रा रही हूँ,पर महादेवी वर्मा की कविताएँ बहुत भाती हैं,अगली पोस्ट में एक और कविता पढ़ सकते हैं

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