श्रमिक दिवस
आज मई दिवस है। पिछले वर्ष लिखी एक कविता फ़ेसबुक पर प्रकाशित की। शाम को पापाजी ने कहा, उन्होंने पढ़ी यह कविता और मज़दूर क्रांति की बात उन्हें याद आ गई। कार्ल मार्क्स को याद किया, जिसने कहा था, दुनिया के मज़दूरों एक हो जाओ। वार्तालाप में उन्होंने मज़दूरों के योगदान को सराहा, कि उनके बिना मानव के लिए निर्माण का कोई भी काम संभव नहीं है। कल जून के एक पुराने सहकर्मी के निधन का समाचार मिला, उन्हें कई वर्षों से किडनी का रोग था। जीवन और मृत्यु के आगे मानव का कोई ज़ोर नहीं चलता। चिकित्सा शास्त्र की इतनी प्रगति के बावजूद भी लोग असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं, तब भाग्य को मानने के अलावा कोई विकल्प नज़र नहीं आता।जीते जी कोई मृत्यु को प्राप्त न हो इतना तो उसके हाथ में है, यानी उसके उत्साह की, उसके प्रेम की और उसके आनंद की मृत्यु न हो ! जून के एक अन्य पुराने मित्र की पत्नी को कोरोना की वजह से शायद अस्पताल में जाना पड़ सकता है। नन्हे से बात हुई, अब वे लोग बेहतर हैं। उनके नीचे वाले फ़्लैट में एक वृद्धि व्यक्ति की मृत्यु हो गई। दीदी ने फ़ोन पर बताया, उनकी पहचान की तीन महिलाएँ और एक पुरुष भी कोरोना की भेंट चढ़ गये हैं। नैनी ने बताया, सोसाइटी में कोरोना से एक व्यक्ति चला गया है, उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। अख़बार में पढ़ा, कितने ही बच्चों के दोनों माता-पिता में से एक की मृत्यु हो गई।न जाने कितने जीवन अभी काल के गाल में समाने वाले हैं। महामारी का यह भीषण रूप अति भयानक है।
आज सुबह वह उठी तो मन शांत था, शायद रात्रि स्वप्न में कोई अनुभव घटा हो। जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरिया चारों का अनुभव मानव करता है।सुबह टहल कर आये तो दिन निकल आया था, आजकल सूर्य के दर्शन नहीं हो रहे हैं, बदली बनी रहती है। प्राणायाम करते-करते कभी आँखें खोलकर देखें तो सामने बादलों से झांकता सूर्य दिखाई देता है पर झट ही छुप जाता है। सुबह पड़ोसन से बात हुई, उन्होंने भी कहा, सोसाइटी में दो व्यक्ति जा चुके हैं और ग्यारह घरों में मरीज़ हैं।शाम को पापाजी से बात हुई, वह आशा और विश्वास से भरे थे। उनका ज्ञान बहुत गहरा है, उन्हें अब मृत्यु से जरा भी भय नहीं है। ओशो की लाओत्से पर लिखी किताब वह कई बार पढ़ चुके हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी जीत गई है और वे बीजेपी कार्यकर्ताओं को हिंसा का शिकार बना रहे हैं। सत्ता परिवर्तन का एक अच्छा अवसर पाकर भी वहाँ की जनता ने मोदी जी को नकार दिया। शाम को जून के मित्र का फ़ोन आया।उसकी पत्नी जिसे कुक के कारण कोरोना हुआ, अब ठीक हो रही है, ऑक्सीजन लेवल ९० हो गया है। अस्पताल से लौटते समय वह उसे पार्क होटल में खाना खिलाने ले गये। उसे आश्चर्य हुआ, कोरोना मरीज़ होते हुए इस तरह होटल जाना ठीक तो नहीं है न, यदि बाद में जाँच हुई तो सजा भी हो सकती है।
आज का दिन भी कोरोना की खबरों के साथ शुरू हुआ। दोपहर को नन्हे ने बताया, कर्नाटक में अगस्त तक तो हालात सुधरने वाले नहीं हैं। उसके बाद तीसरी लहर आने की आशंका भी है। शायद पूरे प्रदेश में कड़ा लॉक डाउन लगाना पड़ेगा।समाचारों में बिहार के अस्पताल की दुदशा देखकर मन को बहुत पीड़ा हुई। ८०० करोड़ का एक अस्पताल बिना किसी सुविधा के भगवान भरोसे चल रहा है। अस्पतालों में भ्रष्टाचार भी बहुत बढ़ रहा है।नन्हे ने कहा, सीटी स्कैन के लिए उन्हें प्रति व्यक्ति १२००० लगे जबकि रेट २५०० का है। आज सुबह उन्हें उठने में थोड़ी देर हुई, टहल कर आये तो छत पर धूप बढ़ गई थी। टीवी के सामने कार्पेट पर बैठकर मुरारी बापू को सुनाते हुए योगासन किए। उन्होंने श्री कृष्ण के जीवन के अंतिम दिनों के बारे में बताया। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की पत्नी लक्ष्मणा थी, जो दुर्योधन की पुत्री थी, यह जानकर भी आश्चर्य हुआ।आज ब्लॉग पर तीन पोस्ट प्रकाशित कीं, कोई सहृदय पाठक या पाठिका मिल जाये तो लिखना सफल हो जाता है।
आज सुबह साढ़े तीन बजे अपने-आप ही नींद खुल गई थी। ध्यान करने बैठी, परमात्मा के सिवा कोई आश्रय नहीं है, यह तो सुना था पर आजकल तो यह बात शत-प्रतिशत सही सिद्ध हो रही है। जगत जिस तरह एक वायरस से जूझ रहा है, कहाँ, कौन संक्रमित होगा और उसकी जान को कितना ख़तरा होगा, कुछ भी कहा नहीं जा सकता। ऐसे में परमात्मा के नाम का स्मरण ही मन को मुक्त रखता है। शाम को पापा जी से बात हुई। वह ठीक हैं, कभी-कभी उम्र के तक़ाज़े के अनुसार उनका शरीर कमजोरी की शिकायत करता है, पर एक नियमित दिनचर्या हैं उनकी। हर दिन दो पेज लिखने का वर्षों का क्रम है, जिसे पूरा करते हैं। अख़बार पढ़ना, संगीत सुनना और आजकल मोबाइल पर वीडियो देखना। नन्हे का फ़ोन आया, उनके डॉक्टर्स दिन में दस हज़ार कॉल्स ले रहे हैं आजकल, वे लोग सभी तरह के डॉक्टर्स को कोरोना के बारे में सलाह देने को कह रहे हैं। आज बैंगलुरु में साढ़े तीन लाख सक्रिय मामले हैं, पूरे देश में ३६ लाख, यह आँकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना अधिक है। आज असमिया सखी का फ़ोन आया, अमेरिका में रहने वाली उसकी नन्ही पोती स्कूल जाने लगी है, कक्षा में चार ही विद्यार्थी हैं। कोरोना प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जाता है। पश्चिम बंगाल में हिंसा ख़त्म नहीं हो रही है।
No comments:
Post a Comment