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Friday, December 1, 2023

क्वार्ड बाइक का रोमांच

रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं, सब तरफ़ सन्नाटा है, केवल पंखे की हल्की सी आवाज़ आ रही है। दिन भर शोर सुनने की आदत हो गई है, उनके घर के दायें-बायें दोनों तरफ़ के घरों में काम चल रहा है। धूल व शोर से बचने के लिए वे दिन भर खिड़कियाँ बंद करके रहते हैं, पर इस समय खुली हैं।अचानक फ़ोन की घंटी बजी, एक विज़िटर को अप्रूव किया, अमेजन डिलीवरी है शायद, नन्हे ने कुछ भेजा होगा। घर बैठे ही ख़रीदारी करने की जो सुविधा मिली है आजकल, सभी उसका पूरा लाभ उठा रहे हैं। पहले ही उसके लिए रंग और कैनवास की तीन कॉपी मंगाकर रख दी हैं नन्हे ने । वे अभी कुछ देर पहले टहल कर आये हैं। हवा ठंडी थी, दिसम्बर का मध्य आ चुका है, पर यहाँ अभी तक चाहे एक नंबर पर ही सही, पंखा चलता है। उससे पहले डिनर में सूप और मुकरु लिए। दोपहर को लेखन का कुछ कार्य किया, छोटे भांजे के लिए एक कविता भी लिखी। पिटुनिया के दो पौधे मुरझा गये थे, उन्हें बदला, पीछे वाले बगीचे में भी काम करवाया, उन्हें दवा-पानी दिया। पौधे भी बच्चों की तरह होते हैं, ध्यान न दें तो पनप नहीं पाते। सुबह धनिया और पालक के बीज बोए, शायद एक हफ़्ते में अंकुर निकल आयेंगे।आज एक पुरानी परिचिता को फ़ोन लगाया, देर तक बातें हुईं, और अचानक शाम को एक अन्य परिचिता का फ़ोन अपने आप आ गया। वे जो देते हैं, वह लौटकर उनके पास ही आता है, यह सही है, उसे ऐसा लगा। 


आख़िर आज कामवाली आयी, घर की सफ़ाई भली प्रकार से हुई।दोपहर को मुख्य घटनाओं का ज़िक्र करते हुए उसने जाते हुए वर्ष का लेखा-जोखा लिखा। योग वसिष्ठ का अध्ययन पुन: आरम्भ किया है। यह दुनिया एक स्वप्न ज़्यादा  कुछ नहीं है, ऐसा ही तो होना भी चाहिए। यह एक खेल है, एक लीला है, आनंद का प्रस्फुरण है, तरंगों का उठना-गिरना है, रस है जो अबाध बह रहा है। इसमें ज़्यादा फँसने की ज़रूरत नहीं है। अघोरा, घोरा और घोरतारा शक्तियों का खेल, शब्दों का एक मायाजाल, जिनसे वे व्यर्थ ही प्रभावित होते रहते हैं। शब्द जहां से निकलते हैं, वहाँ पहुँच जाओ तो चैन ही चैन है।  


आज का इतवार काफ़ी अलग रहा। सुबह टहलने गये तो वॉकिंग मैडिटेशन किया, पता ही नहीं चला, पचास मिनट कैसे बीत गये। वापस आकर कुछ पंक्तियाँ लिखीं, कल टाइप करेगी। बच्चे दस बजे के बाद आये। दोपहर के बाद नन्हा क्वार्ड बाइक चलाने ले गया। काफ़ी रोमांचक अनुभव था। जून ने थोड़ी दूर तक ही चलायी। वह और नन्हा एक गाँव में गये, ऊँची-नीची कच्ची सड़क पर लगभग आधा घंटा चलायी।ढेर सारी तस्वीरें खींची। एक कार्यक्रम में टीवी पर सुना, कल राजकपूर का जन्मदिन है और शैलेंद्र की पुण्यतिथि। दोनों ने कई फ़िल्मों में साथ काम किया था। शाम को छोटी बहन से बात हुई, उसकी दोनों बेटियाँ क्रिसमस की छुट्टियों में घर आयी हैं। छोटी स्टैटिसटिक्स में एमएसी कर रही है, बड़ी जॉब कर रही है, संगीत भी सीख रही है और वह एक सप्ताह के लिए भारत भी आना चाहती है।देश से दूर रहकर देश की ज़्यादा याद आती है। यहाँ भी क्रिसमस की चमक नज़र आने लगी है। सामने वाली लाइन में दो घरों में लाइट और स्टार लग गये हैं। शाम को रोज़ की तरह सूडोकू हल किया, अब अभ्यास होने के कारण अधिक समय नहीं लगता, पहले दस से बीस मिनट उसमें लग जाते थे। एक सखी का फ़ोन आया, उसके बेटे की कोर्ट मैरिज हो गई है, सामाजिक विवाह अगले वर्ष होगा। वक्त बदलता है तो प्रथाएँ भी बदल जाती हैं। किसानों के आंदोलन का आज बीसवाँ दिन है, सरकार का कहना है वह बात करने के लिए तैयार है, यदि वे सुझाव लेकर आयें।