सुबह के दस बजे हैं. नन्हा काम पर चला गया है. जल्दी में टिफिन नहीं ले गया. सोनू डन्जो से भेज देगी, ऐसा उसने कहा. यह एक नयी सेवा यहाँ आरम्भ हुई है, किसी का भी कोई भी सामान कहीं से भी कहीं पहुँचाना हो ऐप पर डाल देने से उनका आदमी ले जाता है और पहुँचा देता है. बाजार से कुछ मंगवाना हो तो वह भी सम्भव है. सभी के लिए उपयोगी है. आज शुक्र है, इतवार को फर्नीचर और सोमवार को पर्दे लग जाने के बाद सम्भवतः अगले हफ्ते वे नए घर में रहने जा सकते हैं. एओल के एक टीचर को गृहप्रवेश की पूजा के लिए आमन्त्रित करे ऐसा उसने सोचा है. मृणाल ज्योति की वार्षिक सभा के लिए उसे संदेश लिखना था, जून ने सहायता की, शाम को सोनू भी देखेगी, कल तक वह भेज देगी. उसके दाएं गाल में एक छाला हो गया है, ऐप से डॉक्टर से बात की, उसने रक्त जाँच की रिपोर्ट भी देखी, सब कुछ घर बैठे ही. कैल्शियम व विटामिन डी कम है. दवा भी लिख दी उसने जो घर बैठे आ भी जाएगी. नन्हे की कम्पनी काफी काम कर रही है समाज हित में. उड़ीसा, पश्चिम बंगाल व आंध्र प्रदेश में फनी तूफान कहर ढा रहा है. दस लाख लोगों को समुद्र तट से विस्थापित किया गया है. लगभग दो सौ किमी प्रति घण्टा की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं. देश में अभी चुनाव चल रहे हैं, विपत्ति तो बिन बुलाये ही आ जाती है. जैसे उसे स्वास्थ्य संबन्धी इतनी समस्याओं का एक साथ सामना करना पड़ रहा है. आज भी सुबह निकट की सोसायटी में टहलने गए व मंदिर के निकट प्राणायाम किया. दोपहर को नैनी नहीं आयी तो उसने बर्तन धोये और जून ने झाड़ू लगाया. अच्छा लगा कुछ काम करके, बाद में नैनी आयी तो उसे थोड़ा आराम हो गया. इस समय कुक खाना बना रहा है, उसने ढेर सारे पानी में चावल उबाले और बाद में पानी फेंक दिया, उसे कम पानी में चावल पकाने नहीं आते.
सुबह के नौ बजे हैं, आधे घण्टे में वे बाहर निकलेंगे. पहले हॉस्पिटल जहाँ जून को अपनी रिपोर्ट दिखानी है. फिर नए घर, जहाँ आज भी शायद ही कोई काम होगा. मजदूरों से काम करवाना इतना सरल नहीं है. घर के बाहर बहुत सारा कचरा सीमेंट, लकड़ी आदि पड़ा है और सामने के लॉन में भी, जिसे साफ करवाना बहुत जरूरी है. बड़ा शहर हो या छोटी जगह, लोगों की मानसिकता नहीं बदलती, किसी भी काम को टालते रहना आम बात है. किन्तु उसे जगत जैसा है वैसा ही स्वीकारना है, व्यर्थ की माथा-पच्ची करने से कोई लाभ नहीं है. उन्हें अभी लगभग छह माह का समय असम में और बिताना है, इसके बाद अपने घर को चलाने की जिम्मेदारी उठानी है. बड़े घर के रखरखाव में कितना समय और ऊर्जा व्यय करनी होगी, भगवान ही जानता है. कल नन्हे ने नेटफ्लिक्स पर ‘तीन’ फिल्म लगाई, अमिताभ बच्चन का अभिनय शानदार है.
उस दिन उस पुरानी डायरी के पन्ने पर गाँधी जी की लिखी सूक्ति थी- ‘झूठ इंसान को जलील कर देता है.' उसने लिखा, और वह कितनी बार झूठ बोल जाती है कभी स्वयं से कभी जग से. एक दिन पूर्व हमनाम देहली से आयी एक नई मित्र मिली, वह भी लिखती है. उसकी कुछ पंक्तियाँ पढ़ते हुए उसे अपना लेखन याद आ गया. आश्चर्यजनक रूप से समानता है उन दोनों के वाक्यों में. सम्भवतः प्रत्येक नवहस्ताक्षर की यही स्थिति होती हो, फिर भी यह मानना पड़ेगा कि वह इतनी दूर रहकर और नूना यहां रहकर किसी एक अदृश्य भावपुंज के आवरण से कभी न कभी अवश्य आवरित हुए होंगे. जेबी कृपलानी का कल देहांत हो गया. गांधी युग का एक और स्तम्भ ढह गया ऐसा नेता लोग कह रहे हैं किन्तु यह सही नहीं है ! ऐसा उसने लिखा तो पर कारण नहीं लिखा, जाने क्या रहा होगा मन में !
पद्मा सचदेव की एक कविता उसने अगले पन्ने पर लिखी है. बहुत प्यारी है.
गुलमोहर से कहा मैंने आज मेरा नेग तो दो
अपने फूलों से चुरा कर एक कलछी आग तो दो
एक कलछी रूप तो दो एक कलछी रंग तो दो
इक जरा सी रौनक इक जरा सा संग तो दो
जिंदगी की गठरी में आग बुझती जा रही है
धीरे धीरे जीने की अब साध चुकती जा रही है
चांदनी को कहा मैंने एक चम्मच खांड तो दो
तेरे घर बिखरी पड़ी है एक चुटकी ठंड तो दो
इक जरा सी चांदनी इक जरा सी लौ तो दो
कसम से मैं ढाप कर रखूंगी हरदम दो तो दो
जिंदगी की आँखों में आँधी सी छ रही है
चमक कर फिर खुलने की आदत मरती जा रही है
सागर को कहा मैंने एक चुल्लू पानी तो दो
सबके घर में आती है पानी की कमी ए दोस्त
आँखों में जब गंगा जमुना थी तो तेरी जरूरत न थी
तुम्हारा घर जो भरा हुआ है मेरे घर भी कोई कमी न थी
जिंदगी की साँझ है दरिया चुकता जा रहा है
ओट में होते होते लुकता-छिपता जा रहा है
हसरतों को कहा मैंने दहलीज के बाहर जाओ
पर्वत की चोटी हो जाओ या सिल की पत्थर हो जाओ
जवान होकर बेटियाँ ससुराल भी तो जाती हैं
छाती पर सिल की तरह वो भी न रह पाती हैं
जगह जगह आक का इक पौधा उगता आ रहा है
फूलों के बीज ये दिन रात चुगता जा रहा है
गुलमोहर से कहा मैंने आज मेरा नेग तो दो
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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