Monday, August 31, 2020

एओल आश्रम

 आज सुबह ही वे नए घर आ गए थे. जून को दफ्तर का कुछ काम था, वह देर तक फोन पर ही रहे. नन्हा अपना दफ्तर का काम करता रहा, मजदूर अपना काम और वह योग वशिष्ठ पढ़ती रही और मोदी जी के पुराने भाषण सुने. उनका अति मोहक व्यक्तित्व था और अब भी है. उनका जैसा प्रतिभावान व्यक्ति कोई लाखों में एक होता है. शाम को वे पड़ोसी के यहाँ गए, बहुत मिलनसार हैं. जून को चाय पिलाई, उनके पुत्र ने आश्रम तक लिफ्ट दी. इस समय रात्रि के दस बजे हैं, वे एओल आश्रम में हैं. उसका कमरा नम्बर तीन सौ दो है और जून का एक सौ चौदह, पहले उन्हें कोई और कमरा  मिला था, फिर बदला और अंत में अब यह खाली कमरा  मिला है, शायद अब तक कोई आ गया हो. उसके कमरे में अभी तक और कोई नहीं है. उन्होंने सामूहिक भोजनालय में रात्रि भोजन किया, टमाटर सूप, दाल-चावल, रोटी तथा सब्जी, प्रसाद रूप में हजारों लोगों के लिए बना यह भोजन स्वादिष्ट होता है. सैकड़ों लोग इसे बनाने में अपनी सेवा देते होंगे. आश्रम में गुरूजी के जन्मदिन के उपलक्ष में कई कोर्स चल रहे हैं. बच्चों के लिए भी कोर्स है और सबके साथ वृद्धजनों के लिये भगवद गीता के प्रवचन का भी. प्लेट्स धोने का तरीका अच्छा नहीं लगा, लेकिन हजारों प्लेट्स को धोने का काम कितना कठिन होता होगा, अवश्य ही कोई साफ-सुथरा तरीका अपनाना होगा. पानी में हाथ डालकर प्लेट्स निकालते समय कैसा लगता होगा, सेवा भाव अपनी जगह है पर... जब वे अन्नपूर्णा जा रहे थे गुरूजी अपनी कार से रवाना हुए, लोगों ने उन्हें हाथ हिलाया, उन्होंने भी हाथ हिलाया. सत्संग के समय बड़े से स्क्रीन पर उनका निर्देशित ध्यान किया. कल सुबह दस बजे से कार्यक्रम है. अभी-अभी एक अन्य महिला इस कमरे में आ गयी हैं. हिंदी भाषी हैं. उनका नाम व हालचाल पूछा, उन्हें एसी उनतीस डिग्री  पर रखना है पर पंखा फुल पर, पसन्द अपनी-अपनी... नन्हे से बात की वह घर पहुँच गया है.  


रात्रि के सवा नौ बजे हैं, आश्रम के बसवा अतिथिगृह में उनका दूसरा दिन है. सुबह गुरूजी का प्रवचन सुना, गर्मी बहुत थी. टिन की छत वाला मण्टप काफी गर्म हो गया था. भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय का आधा भाग आज समाप्त हुआ, शेष भाग कल लिया जायेगा. कल प्रश्न भी पूछे जायेंगे. सुनकर कोई प्रश्न यदि सहज, स्वाभाविक रूप से उठता है मन में, तो उसका समाधान उसे भी पूछना चाहिए.  शाम के सत्संग में भी उन्होंने भाग लिया. गुरूजी ने कई प्रश्नों के उत्तर सरल शब्दों में  दिए. वे कुछ देर से पहुँचे सो बैठने के लिए कुर्सियां तब तक भर चुकी थीं. नीचे बैठना पड़ा, जून की पीठ में दर्द हो गया. उसे लगता है वह थोड़ी सी भी कठिनाई सहन करना नहीं चाहते, अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना नहीं चाहते. खैर.. सबकी अपनी-अपनी क्षमता होती है. सत्संग आरम्भ होने से पूर्व आश्रम की कैंटीन में हॉट चॉकलेट पी सीढ़ियों पर बैठकर, जैसे प्रातः भ्रमण व प्राणायाम के बाद कॉफी पी थी. अभी तीसरी महिला कमरे में नहीं आयी हैं, वह पंजाब से आयी हैं पूरे पन्द्रह दिनों के लिए. दोपहर तीन बजे वे नए घर गए, जो कार से यहाँ से दस मिनट की दूरी पर है. आज काफी काम हो गया. पूजा कक्ष में एक लकड़ी का एक सुंदर वृक्ष लगवाया, उसके पीछे प्रकाश भी है. डाइनिंग रूम में छोटी बहन की दी कुकू घड़ी लगायी, जिसमें हर घण्टे पर चिड़िया बाहर आकर बोलती है. धीरे-धीरे घर सामानों से भरता जा रहा है. 


उसने अतीत के पृष्ठ खंगाले, “ मिल गयी शांति  ! वह सोचती है उसने अच्छा किया पर उसने बुरा किया, बहुत बुरा ! जो जिसमें खुश रहे उसे वैसे ही रहने देना है. किसी के जाने से वह खुश रहेगी या उदास यह उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना यह कि उनके साथ वह कैसे रहती है. कोई कैसा भी हो उसके प्रति द्वेष भाव रखता हो या प्रेम का भाव, अपना ही तो है. फिर क्यों नहीं चुप रहती ! चुप रहना सबसे अच्छा है यदि उसके पास मधुर बोल नहीं हैं तो कड़वे बोल क्यों बिखेरती-फिरती है. ऐसे कड़वे बोल जो उसके होंठों से निकलते हैं जब उसका बदन काँप जाता है, उसके सिर में दर्द हो जाता है. 

वह सिर्फ अपने लिए जीते हैं ! दूसरों की जिंदगी में दखल देना उन्हें पसन्द नहीं, पर वे दूसरे कौन हैं ? उनका अपना परिवार ही तो. कितनी आसानी से उन्होंने कहा कि वे तो घर में मेहमान की तरह रहते हैं. ओह ! ईश्वर ! क्या फिर रिश्ते-नाते स्नेह आदि सब असत्य हैं ? 


नहीं ! नहीं ! नहीं ! यह यदि  असत्य है तो जीवन क्या है ? जीवन एक खोखली अनुभूति नहीं है फिर ! 

उस वक्त उम्र कच्ची थी, सो मेहमान की तरह रहने का अर्थ समझ में नहीं आया था. जीवन की समझ नहीं थी, आज पढ़कर हँसी आ रही है, अज्ञान के हाथों किस तरह छला जाता है मानव. 


Thursday, August 27, 2020

आर्थर मिलर का नाटक


रात्रि के आठ बजने वाले हैं, कुछ देर पूर्व ही वे इस घर लौटे हैं. आज भी वहाँ नैनी से सफाई करवाई. नन्हे ने काफी सामान भी भेजा, सभी को उनके यथोचित स्थान पर रखा, घर काफी सुंदर लग रहा था, छोटी बहन से वीडियो कॉल पर बात की, घर दिखाया. दीदी शायद व्यस्त थीं. वापस आकर कपड़े समेटे व किचन के बर्तन, कुक खाना बना रहा है. बिल्लियों को एक बरामदे से दूसरे में शिफ्ट किया. कल शाम को इस समय गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा होने लगी थी, यह बरामद गमलों में पानी भर जाने से बाहर आयी मिट्टी से गंदा हो गया था, आज मौसम ठीक है. कल नन्हे की कम्पनी का स्थापना दिवस था, उन्होंने खाने का इंतजाम आउटडोर में किया था पर मौसम का मिजाज बदल जाने से उन्हें सारा कार्यक्रम बदलना पड़ा. कल आश्रम में गुरूजी को कन्नड़ में बोलते सुना, अच्छा लगा, कई शब्द संस्कृत व हिंदी के भी हैं. कल पिताजी ने तस्वीरें देखीं और बधाई दी. 


शाम के साढ़े आठ बजे हैं, असम में होते तो रात्रि के. सुबह दस बजे वे घर से निकले थे,  पौने दस बजे तक सुबह के सारे काम हो चुके थे और आज तो व्हाट्सऐप व फेसबुक की गलियों का एक-एक  चक्कर भी लग गया था. पहले पर्दों के शो रूम में गए वहाँ से एक बजे नए  घर पहुँचे, साथ लाया लन्च खाया. रास्ते में ढेर सारे भुट्टे कल दिखे थे, आज भुट्टे के खेत दिखे. जंगल व गांव के बीच से जाता हुआ रास्ता बहुत अच्छा है. दीदी का फोन आज आया, जून ने उन्हें घर दिखाया. दोपहर को सोलर पैनल का सिस्टम सेट हो गया, फिर जाली के दरवाजों की नाप लेने कारीगर आये, उसके बाद सफाई कर्मचारी. घर के दायीं तरफ का कचरा अब उठा लिया गया है तथा पिछली गली में जाने वाला शॉर्ट कट रास्ता भी बन्द कर दिया है. अब आते-जाते लोगों की ताक-झांक नहीं होगी. नन्हे का कहना है कि कुछ दिनों में लोग फिर खोल लेंगे, पर उसे लगता है कुछ दिन बन्द रहने से लोगों को दूसरे रास्ते की आदत पड़ जाएगी. आज एशियन पेण्ट वाले भी आये, सीढ़ी के पास की दीवार पर ग्रे रंग करना है, कल पूरा हो जायेगा. कूरियर से चाय बनाने वाली इलेक्ट्रिकल केतली आयी और मॉप के साथ ट्विन बकेट भी, नन्हे को घर में काम आने वाले सभी सामानों की जानकारी है. अक्टूबर में उनके आने तक वह पूरा घर सेट कर ही देगा. वह स्वतन्त्र विचारधारा रखता है, किसी की भी टोका-टाकी उसे पसन्द नहीं है. हर आत्मा की पहली मांग है पूर्ण स्वतन्त्रता ! इस समय वह फोन पर इंटरव्यू ले रहा है. सोनू आज देर से आने वाली है. कुक खाना बनाकर चला गया है. आज उससे एक गास्केट जल गया, जो दूसरे कुकर के तले पर चिपका था. कल उन्हें चार दिनों तक आश्रम में रहने के लायक सामान लेकर जाना है और सम्भव हुआ तो उसके बाद नए घर में ही रुक जायेंगे. 


बरसों पहले की बात ....कल रात नाटक सुनकर सोयी थी. स्वप्न में नाटक देखा पर नाटक के पात्र वास्तविक बन गए थे और उस सेल्समैन ने किताबें सचमुच दी थीं बस में बैठे यात्रियों को ! उसे भी एक किताब दी थी, कोई धार्मिक पुस्तक थी. उस नाटक के अंतिम डायलॉग सुने जो सेल्समैन और उसका विरोधी बोलते हैं.  उसके पहले क्या कारण था कि उसे किताबें मुफ्त बांटनी पड़ी थीं. एक कोर्ट सीन था, अदालत फैसला देती है कि उसे ऐसा करना होगा और उस बुद्धू लड़की को भी देखा जिसे वह सबसे पहले किताबें देता है. स्टेज पर किताबें ही किताबें हो गयी थीं, नाटक के बाद वह सचमुच किताब घर लायी थी. आर्थर मिलर का नाटक ‘डेथ ऑफ़ अ सेल्समैन’ कितना प्रभावशाली रहा. उसे उस सेल्समैन पर तरस आता है, मोटा, बुद्धू दीखता था पर वह कितना महत्वाकांक्षी था और लिंडा तो देवी थी.  वह कहाँ गलत हो गयी कि... शायद वह अपने पति से अत्यधिक प्रेम करती थी, अपने पुत्रों से भी अधिक. क्यों उसे इसकी जरूरत थी पर वह होटल और बस्टिन में वह लड़की. हैप्पी तो जानता था तभी वह अपने पिता का आदर नहीं करता था, प्यार जरूर करता था. वह सेल्समैन झूठ ही खाता था, झूठ ही ओढ़ता था, झूठ ही पहनता था, तभी वह कभी सफल नहीं हो पाया. वह स्वप्न के महल खड़े करता था फिर काल्पनिक बातों को सत्य बताता था. लिंडा इसे समझती नहीं थी, वह भी उस पर दया करती थी और वह भी तो उसे कितना मानता था.  


Tuesday, August 25, 2020

ओला और उबर

 

साढ़े ग्यारह बजे हैं दोपहर के या कहें सुबह के. आज धूप काफी तेज है. प्रातः भ्रमण के बाद लौट रहे थे तो उस सोसाइटी के वही सज्जन मिले जिन्होंने एक बार उन्हें पार्क में योग अभ्यास करते देखकर कहा था, यहां की सड़कें सभी के लिए खोल दी गयी हैं पर पार्क नहीं. आज मुस्कुरा कर अभिवादन किया. वापस आकर नाश्ता बनाया, इतवार को कुक नहीं आता है. सोनू को अपने सहेली की बेटी के नामकरण पर जाना है, वह लौटेगी तब वे सब नए घर जायेंगे. ‘तीन’ का शेष भाग आज देखा. आज स्वास्थ्य काफी ठीक लग रहा है. कैल्शियम, विटामिन्स आदि सभी डॉक्टर ने लिख दिए थे. आयु बढ़ रही है. नए घर में काफी काम रहेगा, साथ ही आश्रम भी जाना होगा, स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा. चिंता और तनाव से मन को मुक्त रखना होगा.

रात्रि के आठ बजे हैं. आज योग वसिष्ठ में प्रह्लाद की कहानी पढ़ी. दीर्घतपा की कहानी भी, जो वर्षों पहले सुनी थी. आत्मा में टिकना जिसने सीख लिया वह अपने ही मन की उहापोह से बच जाता है. एक ही तत्व से यह सारा जगत बना है, यह गुरू-वाक्य जब अपना अनुभव बन जाता है तब मन में न राग बचता है न द्वेष, कुछ पाने और और कुछ छोड़ने की आकांक्षा भी तब नहीं रहती, एक गहन विश्रांति में मन टिक जाता है. कल दोपहर बाद वे नए घर गए थे, सफाई का काम चल रहा था. कई मजदूर लगे थे, महिलाएं भी थीं. शाम को नन्हा व भांजा डिपार्टमेंटल स्टोर से चाय का सामान ले आये, वहां पहली बार चाय बनाई. सबने बैठकर पी, कुछ तस्वीरें उतारीं, भेजीं, सभी की बधाई मिली. पिताजी को फोन करके कहा, यहां आने का मन बनाएं पर उन्होंने असमर्थता दिखाई. जून को इसी माह देहरादून जाना है वहां से उनसे मिलने भी जायेंगे. सुबह बड़े भाई का फोन आया, दोपहर को बड़ी ननद का, दोनों को गृह प्रवेश में आने का निमन्त्रण दिया. आज सुबह वहां जाने के लिए न ओला मिल रही थी न ऊबर, काफी प्रतीक्षा के बाद कार आयी. नया घर सेट करने में कितना श्रम होता है. दोपहर जून को काफी काम करवाने पड़े. अभी वापस आकर विश्राम करने लगे, सो शाम का योग आदि कुछ भी नहीं हुआ आज. सोनू ने दोपहर का लन्च पैक कर दिया था जो उन्होंने बारी-बारी से खाया. कुक अब रात का भोजन बना रहा है. वहाँ काम कुछ आगे बढ़ा है, इलेक्ट्रिशियन आया था, एक बार उसे और आना होगा. कार जो कल बन्द हो गयी थी और वे उसे वहीं छोड़कर आ गए थे, अभी भी वहीं है. आज मकैनिक नहीं गया, सम्भवतः कल जायेगा, कल ही होम एप्लाइंसेस भी इंसटाल होंगे.


ग्यारह बजे हैं. आधा घन्टा पूर्व वे यहां पहुंचे हैं. पड़ोसी से बात हुई. एक नैनी जाती हुई दिखी और अपने आप ही रुक गयी. शाम को चार बजे आएगी. असमिया पड़ोसी की बहू स्थानीय है, उसने हिंदी में समझाया, यहां भाषा की समस्या उन्हें होने वाली है. भाषा सीखनी पड़ेगी, अच्छा है, आज से ही शुरू कर दे. बढ़ बजे पर्दे आने वाले हैं, उसके बाद फ्रिज व डिश वाशर लगाने वाला आएगा. शाम को वे वापस जायेंगे, इस घर से उस घर. अभी-अभी कन्नड़ सिखने का एक ऐप डाउनलोड किया. पहले दिन का पाठ सीखा जिसमें मैं, हम, तुम, मेरा, हमारा, तुम्हारा  आदि के लिए नानू, नाबू, नीनू, नन्ना, नम्मा, निन्ना हैं. मेरे लिए, हमारे लिए, तुम्हारे लिए आदि के लिए नानाडू, नामाडू, निनागे हैं. 


और अब उस अतीत के आईने में देखा, लिखा था...वह पागल होती जा रही थी, ऐसा उसे लगा. उसने सोचा कि जो जो बातें उसके साथ घटित हों उन्हें डायरी में लिखती जाये ताकि उसे पढ़कर उसकी केस हिस्ट्री से किसी डॉक्टर को कुछ ज्ञान मिल सके फिर उसने आइना देखा और लगा उसकी आँखें हँस रही हैं और यूँ लगा कि वह जिन्दा है, जिन्दी जीती जागती ! और वह खिलखिला कर हँस पड़ी, पागल कहाँ है वह ! 


उस दिन वह बेहद खुश थी, एक पत्र आया था साहस और उम्मीद भरा पत्र, समझदारी और अच्छी सलाहों से भर पत्र, अपनेपन और हास्य से भरा पत्र. वह हमनाम सखी भी मिली उसे रस्ते में, वे बातें करते घूमते रहे मधुबन में ठंडी घास पर नंगे पाँव. उन्होंने निष्कर्ष निकाला, जो स्नेह का प्रति उत्तर स्नेह से देना नहीं जानती वह कैसे कविता की अधिकारिणी बन सकती है. उस दिन सुबह दादी के यहां भी गयी थी और मासी के यहां भी. उसके पेन की निब जो खराब हो गयी थी बदलवाई, और सोचा अब किसी को नहीं देगी, इसके साथ भी एक स्मृति जुड़ी है, उसकी हर वस्तु की तरह या हर पेन की तरह. एक जानकारी भी मिली थी उस दिन, अभी कुछ दिनों पहले तक क्वार्क्स सबसे छोटे कण माने जाते थे किसी तत्व के लेकिन एक महीने पहले किये गए रिसर्च के अनुसार अब प्रियोन्स सबसे छोटे कण हैं. 


Wednesday, August 19, 2020

पद्मा सचदेव की कविता

 

सुबह के दस बजे हैं. नन्हा काम पर चला गया है. जल्दी में टिफिन नहीं ले गया. सोनू डन्जो से भेज देगी, ऐसा उसने कहा. यह एक नयी सेवा यहाँ आरम्भ हुई है, किसी का भी कोई भी सामान कहीं से भी कहीं पहुँचाना हो ऐप पर डाल देने से उनका आदमी ले जाता है और पहुँचा देता है. बाजार से कुछ मंगवाना हो तो वह भी सम्भव है. सभी के लिए उपयोगी है. आज शुक्र है, इतवार को फर्नीचर और सोमवार को पर्दे लग जाने के बाद सम्भवतः अगले हफ्ते वे नए घर में रहने जा सकते हैं. एओल के एक टीचर को गृहप्रवेश की पूजा के लिए आमन्त्रित करे ऐसा उसने सोचा है. मृणाल ज्योति की  वार्षिक सभा के लिए उसे संदेश लिखना था, जून ने सहायता की, शाम को सोनू भी देखेगी, कल तक वह भेज देगी. उसके दाएं गाल में एक छाला हो गया है,  ऐप से डॉक्टर से बात की, उसने रक्त जाँच की रिपोर्ट भी देखी, सब कुछ घर बैठे ही. कैल्शियम व विटामिन डी कम है. दवा भी लिख दी उसने जो घर बैठे आ भी जाएगी. नन्हे की कम्पनी काफी काम कर रही है समाज हित में. उड़ीसा, पश्चिम बंगाल व आंध्र प्रदेश में फनी तूफान कहर ढा रहा है. दस लाख लोगों को समुद्र तट से विस्थापित किया  गया है. लगभग दो सौ किमी प्रति घण्टा की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं. देश में अभी चुनाव चल रहे हैं, विपत्ति तो बिन बुलाये ही आ जाती है. जैसे उसे स्वास्थ्य संबन्धी इतनी समस्याओं का एक साथ सामना करना पड़ रहा है. आज भी सुबह निकट की सोसायटी में टहलने गए व मंदिर के निकट प्राणायाम किया. दोपहर को नैनी नहीं आयी तो उसने बर्तन धोये और जून ने  झाड़ू लगाया.  अच्छा लगा कुछ काम करके, बाद में नैनी आयी तो उसे थोड़ा आराम हो गया. इस समय कुक खाना बना रहा है, उसने ढेर सारे पानी में चावल उबाले और बाद में पानी फेंक दिया, उसे कम पानी में चावल पकाने नहीं आते. 


सुबह के नौ बजे हैं, आधे घण्टे में वे बाहर निकलेंगे. पहले हॉस्पिटल जहाँ जून को अपनी रिपोर्ट दिखानी है. फिर नए घर, जहाँ आज भी शायद ही कोई काम होगा. मजदूरों से काम करवाना इतना सरल नहीं है. घर के बाहर बहुत सारा कचरा सीमेंट, लकड़ी आदि पड़ा है  और सामने के लॉन में भी, जिसे साफ करवाना बहुत जरूरी है. बड़ा शहर हो या छोटी जगह, लोगों की मानसिकता नहीं बदलती, किसी भी काम को टालते रहना आम बात है. किन्तु उसे जगत जैसा है वैसा ही स्वीकारना है, व्यर्थ की माथा-पच्ची करने से कोई लाभ नहीं है. उन्हें अभी लगभग छह माह का समय असम में और बिताना है, इसके बाद अपने घर को चलाने की जिम्मेदारी उठानी है. बड़े घर के रखरखाव में कितना समय और ऊर्जा व्यय करनी होगी, भगवान ही जानता है. कल नन्हे ने नेटफ्लिक्स पर ‘तीन’ फिल्म लगाई, अमिताभ बच्चन का अभिनय शानदार है. 


उस दिन उस पुरानी डायरी के पन्ने पर गाँधी जी की लिखी सूक्ति थी- ‘झूठ इंसान को जलील कर  देता है.'  उसने लिखा, और वह कितनी बार झूठ बोल जाती है कभी स्वयं से कभी जग से. एक दिन पूर्व हमनाम देहली से आयी एक नई मित्र मिली, वह भी लिखती है. उसकी कुछ पंक्तियाँ पढ़ते हुए उसे अपना लेखन याद आ गया. आश्चर्यजनक रूप से समानता है उन दोनों के वाक्यों में. सम्भवतः प्रत्येक नवहस्ताक्षर की यही स्थिति होती हो, फिर भी यह मानना पड़ेगा कि वह इतनी दूर रहकर और नूना यहां रहकर किसी एक अदृश्य भावपुंज के आवरण से कभी न कभी अवश्य आवरित हुए होंगे. जेबी कृपलानी का कल देहांत हो गया. गांधी युग का एक और स्तम्भ ढह गया ऐसा नेता लोग कह रहे हैं किन्तु यह सही नहीं है ! ऐसा उसने लिखा तो पर कारण नहीं लिखा, जाने क्या रहा होगा मन में ! 

पद्मा सचदेव की एक कविता उसने अगले पन्ने पर लिखी है. बहुत प्यारी है. 


गुलमोहर से कहा मैंने आज मेरा नेग तो दो 

अपने फूलों से चुरा कर एक कलछी आग तो दो 


एक कलछी रूप तो दो एक कलछी रंग तो दो 

इक जरा सी रौनक  इक जरा सा संग तो दो 


जिंदगी की गठरी में आग बुझती जा रही है 

धीरे धीरे जीने की अब साध चुकती जा रही है 


चांदनी को कहा मैंने एक चम्मच खांड तो दो 

तेरे घर बिखरी पड़ी है एक चुटकी ठंड तो दो 

इक जरा सी चांदनी इक जरा सी लौ तो दो 

कसम से मैं ढाप कर रखूंगी हरदम दो तो दो 


जिंदगी की आँखों में आँधी सी छ रही है 

चमक कर फिर खुलने की आदत मरती जा रही है 


सागर को कहा मैंने एक चुल्लू पानी तो दो 

सबके घर में आती है पानी की कमी ए दोस्त 

आँखों में जब गंगा जमुना थी तो तेरी जरूरत न थी 

तुम्हारा घर जो भरा हुआ है मेरे घर भी कोई कमी न थी 


जिंदगी की साँझ है दरिया चुकता जा रहा है 

ओट में होते होते लुकता-छिपता जा रहा है 


हसरतों को कहा मैंने दहलीज के बाहर जाओ 

पर्वत की चोटी हो जाओ या सिल की पत्थर हो जाओ 


जवान होकर बेटियाँ ससुराल भी तो जाती हैं 

छाती पर सिल की तरह वो भी न रह पाती हैं 


जगह जगह आक का इक पौधा उगता आ रहा है 

फूलों के बीज ये दिन रात चुगता जा रहा है 


गुलमोहर से कहा मैंने आज मेरा नेग तो दो 


Tuesday, August 18, 2020

साहित्य का उद्देश्य

 

पिछले आधे घण्टे से नूना ‘प्लैनेट अर्थ’ देख रही थी. वालरस की विचित्र दुनिया और रंगीन पक्षियों के अद्भुत नृत्य ! प्रकृति की विविधता और सौंदर्य अनूठा है पर माया की इस नगरी का कोई अंत नहीं है. कोई कितना भी देखे और कितना भी सराहे, इसमें न कोई सार है न कोई अंत. नेत्र थक जायेंगे और मन भी पर न तो जीवन में कोई ऐसा आनंद झलकेगा जिसका कोई अंत न हो और जो पूर्णता का अनुभव कराने वाला हो, वह तो मायापति से मिलकर ही पाया जा सकता है. आज भी सुबह कल की तरह थी, वापस लौटे तो रक्तजांच के लिए रक्त का नमूना लेने एक व्यक्ति आकर बैठा था. कैल्शियम की जाँच होगी और कुछ दूसरे टेस्ट भी. रिपोर्ट ईमेल में आ जाएगी. जून ने भी कल डॉक्टर को दिखाया, आज घर बैठे टेस्ट हो गए. बड़े शहर में रहने का यह बड़ा फायदा है. दोपहर को वे नए घर जायेंगे, पेंटिंग का कार्य सम्भवतः पूरा हो चूका होगा. नन्हा दफ्तर जा चुका है, उसका कालेज का  मित्र जो पास ही रहता है और जिसका भोजन यहीं बनता है, अभी तक आया नहीं है. उसकी चाय दो घण्टे से बनी हुई है, आकर गर्म करेगा और नाश्ता भी. 


सत्व, रज और तम की साम्यावस्था होने पर ही वे गुणातीत होते हैं. पहले तमस को रजस में बदलना होगा, फिर रजस को सत्व में. बढ़ा  हुआ  तमस मन को  क्रोधित और ईर्ष्यालु बनाता है. रजस  व्यर्थ के कामों लगाता है. जब यह ऊर्जा सत्व में परिवर्तित हो जाती है तो भीतर समता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है. साम्यावस्था में दीर्घ काल तक टिके रहने के बाद ही साधक गुणातीत अवस्था का अनुभव करता है. आज सदगुरू को सुना, तमस की अवस्था में भी भीतर एक शांति का अनुभव होता है पर वह जड़ता का प्रतीक है. बाहर का जीवन गतिमय हो और भीतर शांति हो वही गुणातीत की निशानी है. आज दिन भर व्यस्तता बनी रही. 


रात्रि के आठ बजे हैं, आज भी कल की तरह वे दिन भर व्यस्त रहे. घर में काम काफी आगे बढ़ गया है. आज योग कक्ष में वॉल पेपर भी लग गया. ऊपर की बैठक  तथा मुख्य शयन कक्ष में भी. कमरे अच्छे लगने लगे हैं, अभी पर्दे नहीं लगे हैं  और न ही फर्नीचर आया है. कल सम्भवतः गहन सफाई होगी. आज यहाँ आये छठा दिन है, समय जैसे भाग रहा है. आजकल योग वशिष्ठ पढ़ रही है और सुन भी रही है. अनुभवानन्द जी कहते हैं, परमात्मा सद है इसका अर्थ है वह सत व असत दोनों से परे है, वह चिद है यानि चितिशक्ति उसके पास है जिसका विस्तार आनंद के रूप में होता  है. आनंद -  इच्छा, क्रिया व ज्ञान इन तीन शक्तियों के रूप में प्रकट होता है. ज्ञान यदि शुद्ध है तो इच्छा भी शुद्ध होगी और उसकी पूर्ति हेतु क्रिया भी श्रेष्ठ होगी. जैसा ज्ञान, वैसी इच्छा, वैसा कर्म ! यदि कोई सांख्य मार्ग का साधक है तो वह स्वयं को शुद्ध, बुद्ध, मुक्त आत्मा के रूप में अनुभव करता है. कर्म के मार्ग का साधक धीरे-धीरे अंतःकरण को शुद्ध करता है, इसी तरह उपासना मार्ग का साधक भी अपने भीतर परम का अनुभव करता है. ज्ञान प्राप्त करने का साधन अंत:चतुष्टय तथा ज्ञानेन्द्रियाँ हैं. इच्छा आत्मा का सहज स्वभाव है, सुख-दुःख, इच्छा-द्वेष, प्रयत्न-ज्ञान आत्मा के गुण हैं.  


‘’वह विज्ञान की छात्रा रही है किन्तु उसका रुझान साहित्य की ओर है यदि वह साहित्य की छात्रा रही होती तो सम्भवतः इसका विपरीत हुआ होता अथवा नहीं भी. शब्दों से उसे प्यार है, शब्दों का जादू उस पर चलता है. कभी रुलाते कभी हँसाते शब्द ! मानव ने जब प्रथम बार शब्दों का प्रयोग किया होगा तो वह क्षण कितना महान होगा ! फ़िराक गोरखपुरी साहित्य को उद्देश्यपूर्ण होना आवश्यक नहीं समझते. वह समझती है चाहे साहित्य हो या अन्य कोई कला विकास तो वह करती ही है, चाहे मानसिक विकास ही, लेकिन लक्ष्य तक पहुँचाने का उत्तरदायित्व वह नहीं ले सकती. चरैवेति-चरैवेति का संदेश वह अवश्य देती है. परन्तु साहित्य बिना किसी उद्देश्य के लिखा जाता है यह बात कभी भी मान्य नहीं हो सकती.  रचनाकार यदि स्वयं का उत्थान चाहता है तो यह भी एक उद्देश्य हुआ, या सन्तुष्टि अथवा प्रसन्नता ही. उसकी इच्छा है कि वह भी कुछ लिखे. लिखना और पढ़ना ये दो कार्य ही उसे पसन्द हैं और वह आसानी से इन्हें कर सकती है पर वह कितनी-कितनी देर यूँही बैठी रह जाती है. कितना समय नष्ट करती है, कल से नियमित रहेगी हर कार्य वक्त पर’’. कालेज के अंतिम वर्ष में उसने यह सब लिखा था, उसे स्वयं ही पढ़कर आश्चर्य हुआ ! 



Sunday, August 16, 2020

गुलमोहर के फूल

 

दस बजने वाले हैं सुबह के. मौसम आज गर्म है. प्रातः भ्रमण के लिए गए तो हवा बंद थी, उमस भरा वातावरण. कल उन्हें यात्रा के लिए निकलना है, एक लंबी यात्रा. एक महीने के लिए वे घर से दूर रहेंगे, अपने नए घर को तैयार करने के लिए. पिछले कई दिनों से लेखन कार्य थम गया है, कम्प्यूटर में कुछ खराबी आ गयी थी, कल बनकर आया पर हिंदी टाइपिंग नहीं हो पा रही है. जून के घर आने पर ही सम्भव होगा. तकनीकी कार्यों में रूचि न लेने का ही यह नुकसान है. पैकिंग थोड़ी बहुत हो गयी है, शेष जाने तक चलती ही रहेगी. 

रात्रि के सवा ग्यारह बज चुके हैं. वे सवा तीन घन्टे पहले बंगलूरू पहुँच गए थे. सुबह से ही तैयारी में लगे थे. लॉन में ही कुछ देर टहले, फिर लघु योग साधना की. रुकते, उड़ते लगभग बारह घण्टों की  यात्रा आरामदेह थी, निर्विघ्न संपन्न हुई. एयरपोर्ट से घर आने में दो घण्टे का समय लगता है,  कार में तेज नींद आ रही थी. घर पर नन्हा और सोनू प्रतीक्षा कर रहे थे. भोजन तैयार था, पर आधा घन्टा कुशलता समाचार का आदान-प्रदान करने के बाद भोजन किया. अब नींद गायब हो गयी है. कल नए घर जाना है, जहाँ रँगाई का काम चल रहा है. 


दूसरा दिन बीतने को है. सुबह पांच बजे नींद खुल गयी. कुछ दूर पर स्थित एक बड़ी कालोनी में टहलने गए और वही पार्क में एक छोटे से मन्दिर के निकट बैठकर यू-ट्यूब  पर गुरूजी के सद्वचन सुनते हुए ही प्राणायाम किया. एक चबूतरे पर तीन काले पत्थरों पर नाग तथा शिव की आकृतियां खुदी हैं. नन्हे ने नाश्ता मंगाया. उन्होंने शुरुआत फलों से की, फिर दोसे का नाश्ता. नए घर में गए, वापसी में लन्च भी बाहर किया. वापस आकर मृणाल ज्योति का कुछ काम था, अब चार-पाँच महीने ही शेष हैं उसे इस संस्था के साथ काम करने का अवसर मिलेगा. रास्तों में गुलमोहर के पेड़ों पर लाल फूलों की बहार देखी. यहाँ के मौसम के अनुसार वृक्षों अर फूल जल्दी आते हैं, असम में देर से. 


दोपहर के साढ़े तीन बजे हैं. नन्हे का घर पांचवी मंजिल पर है. नीचे तरणताल से बच्चों के तैरने की आवाजें पिछले दो-तीन घण्टों से आ रही हैं. धूप तेज है, दोनों बिल्लियां बाहर बालकनी में आराम कर रही हैं. अभी-अभी छोटी बहन से बात की, बताया अस्पताल में पिछले दिनों उसने काफी लंबी-लंबी ड्यूटी की. इसी वर्ष वह बेटियों से मिलने कनाडा जाएगी. कल रात को नींद में ध्यान व स्थिरता का अनोखा अनुभव हुआ. उसके बाद जो भी शब्द मन में आया रहा था, वह स्पष्ट दिख रहा था. लाल शब्द लाल रंग में लिखा हुआ तथा कोई पशु-पक्षी उसी प्रकार से रचा जा रहा था. मन के भीतर सृष्टि रचने की कितनी क्षमता है. योग वसिष्ठ में ब्रह्म की सत्यता को विलक्षण ढंग से सिद्ध किया गया है. इन्द्रियों का सार मन, मन का सार बुद्धि, बुद्धि का सार चिदवलिका तथा चिदवलिका का सार शुद्ध सत है यानि शुद्ध चैतन्य से ही सब प्रकटा है. जैसे सागर से फेन, लहर, बुदबुदे व बर्फ पैदा होते हैं पर वे सागर के सिवा कुछ भी नहीं नहीं है. जगत अकारण है इसलिए वस्तुओं व घटनाओं के कारण को खोजने में कोई सार नहीं है.


और अब कालेज के अंतिम वर्ष की बात, उस दिन पिताजी ने दो पार्कर के पेन दिए थे, उसने कहा, ये तो बहुत महंगे हैं तो वह बोले कि वह महंगी नहीं है क्या ? सुनकर उसे बेहद ख़ुशी हुई. वह पिताजी से कैसे कहे कि यह बात.. यह बात.. उसे हमेशा याद दिलाएगी कि वह उससे प्रेम करते हैं और वह बहुत अच्छे हैं. वह सदा उनका आदर करेगी और उनका सम्मान ऊँचा करने का प्रयत्न ! थैंक यू .. मैनी मैनी थैंक्स. 


मन उदात्त भावों से भरा है. हल्की -हल्की मधुर बांसुरी की धुन मन के किन्हीं कोनों में सुनाई दे रही है. सोवियत नारी में वह नन्हे बच्चों की कहानी कितनी अद्भुत है, ऐसी कहानियां तो उसे जिंदगी का अहसास दिलाती हैं कि कहीं दूर, उनसे दूर किसी देश में बच्चे वैसा सोच जाते हैं जैसा सिर्फ उनके मन में होता है. .. और आरोग्य में वह लेख, युवावस्था, विचारों के बहाव का, साथ ही दृढ़ता का नाम है. खुदबखुद चेहरे पर छायी रहने वाली रौशनी का नाम है और दूसरों से प्यार करने, उन्हें दुःख न देने का. साथ ही दुनिया को एक रंगीन तोहफा समझना ! बेशकीमती तोहफा ! 


Wednesday, August 12, 2020

जामुन का वृक्ष



शाम के सवा चार बजे हैं. आज दोपहर उन्हें आगामी बंगलूरू यात्रा के लिए पैकिंग करनी थी पर नन्हे का फोन आया, अभी घर तैयार होने में दो हफ्ते लगेंगे. उसने कहा, फ़िलहाल वे अपनी यात्रा स्थगित करके आगे की टिकट ले लें. जून ने कॉल सेंटर में बात की, आधे पैसे कट जायेंगे जो हजारों में हैं, वे सोच रहे हैं कि जैसा कार्यक्रम है, वैसा ही रहने देते हैं. कुछ समय बैंगलोर आश्रम में बिताएंगे, गुरूजी भी वहीं हैं, सो भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय पर उनका प्रवचन भी सुन लेंगे और उनके जन्मदिन के उत्सव में भी भाग ले सकेंगे. आज सुबह गुलाबी पुष्पों के वृक्षों की तस्वीरें पुनः उतारीं। इस समय बाहर से कोकिल के कूकने की आवाज आ रही है. योग कक्षा में एक साधिका ने कहा, कल सुबह वह अपनी कालेज में पढ़ रही बेटी को लेकर आसन सीखने आएगी. अब उनका यहाँ से जाने का वक्त आ रहा है तो सीखने के लिए सभी के मन में योग के प्रति रूचि बढ़ रही है. दोपहर को बगीचे से तोड़े कटहल की सब्जी बनाई, अब जामुन के वृक्ष में भी फूल आ गए हैं, पूरा वृक्ष बौर से भर गया है. नैनी आज दाल के बने मीठे तले हुए पीठे लायी, उसका प्रेम ही है इसके पीछे, पर उन्होंने अब तले हुए पदार्थ खाना छोड़ दिया है. उन दोनों का वजन कुछ घटा है. 



जून ने अगले माह आश्रम में होने वाले कार्यक्रम में रजिस्ट्रेशन करा लिया है. हो सकता है उसे गुरूजी के जन्मदिन पर कविता पढ़ने का अवसर भी मिले. सुबह क्लब की एक सदस्य से मिलने गयी, बहुत भावुक है और संवेदनशील भी. दो बड़ी सर्जरी करा चुकी है. अच्छा लगा उसकी बातें सुनकर. कल तीसरे चरण का चुनाव है, अगले महीने आज के दिन तक सारे चरण पूरे हो चुके होंगे. राहुल गाँधी ने मोदी जी के खिलाफ जो अभद्र टिप्पणी की थी, उसके लिए खेद प्रकट किया है , उधर साध्वी प्रज्ञा ने भी एक अभद्र बयान दिया है. राजनीति में एक-दूसरे पर दोषारोपण चलता ही रहता है. कल श्रीलंका में सीरियल ब्लास्ट हुए जिसमें चर्च में ईस्टर प्रार्थना करने आये लोगों में दो सौ नब्बे  व्यक्ति मारे गए व पांच सौ घायल हो गए. धर्म के नाम पर हिंसा करने वाले आखिर कब समझेंगे कि दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा करना नहीं सिखाता, पता नहीं धर्म के नाम पर अधर्म कब तक किया जाता रहेगा. 


आज सुबह गुरूजी का लन्दन में दिया एक प्रवचन सुना. कितने सुंदर व सरल शब्दों में उन्होंने पूरा बेसिक कोर्स ही जैसे करवा दिया. ऊर्जा के चार स्रोत, जीवन की सात परतें, ज्ञान की पाँच कुंजियाँ सभी कुछ ! आज दोपहर अक्षय कुमार द्वारा लिया गया प्रधानमंत्री का इंटरव्यू सुना, सबसे अचरज भरी बात लगी जब उन्होंने कहा कि ममता दीदी उन्हें साल में एक-दो कुर्ते भेजती हैं और मिठाई भी. राजनीतिज्ञ जब प्रचार करते हैं तो एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन लगते हैं. 


शाम के साढ़े सात बजे हैं. काशी की सड़कों पर प्रधानमंत्री की चुनावी यात्रा चल रही है. कुछ देर में ही वह दशाश्वमेधघाट पर पहुँच जायेंगे. वाराणसी की जनता उनके स्वागत में सड़कों पर उमड़ आयी है. आज सुबह गुरूजी से नारद भक्ति सूत्र सुना. सुबह-सवेरे गुरूजी के पावन वचन हृदय को सुंदर विचारों से भर देते हैं. दोपहर को घी बनाया, जून ने शाम को दफ्तर से आकर लड्डू बनवाये जो वे नन्हे व सोनू  के लिए ले जाने वाले हैं. कल रात स्वयं को विचार करते देखा, नींद में भी मन किस तरह उधेड़बुन में लगा रहता है, उसे देखकर आश्चर्य होता है, पता नहीं क्या चाहता है ? कोड़ी जी घाट पर पहुँच चुके हैं और आरती के साथ ताली बजाकर आनंद ले रहे हैं. 


और अब उन अतीत के पन्नों से - जितना खाओ उससे दुगना पानी पियो. जितना  पानी पियो उससे दुगना हँसो, जितना हँसो उससे दुगना टहलो. यही स्वास्थ्य का राज है. 

शायद उस दिन कुछ हुआ होगा, तभी लिखा- 


खिला चहकता घर ही भाये  

चुपचुप सा मन को चुभता है 

क्यों यह चुप्पी लगा गया है 

क्यों यह कुछ नहीं कहता है 

रहने वाले सब रहते हैं 

पर होंठ सभी के सिले हुए 

कोई बोले ना ही  चाले 

दिल क्यों नहीं हैं मिले हुए 

घर गूँजे खुशियों से गर तो 

तब ही तो घर कहलाता है 

सूना घर यह बे आवाजें 

यह कहाँ घर कहलाता है 

साथी आओ दीप जला दें 

बोल प्रेम के हम बिखरा दें 

चहक उठे यह घर दोबारा 

जैसे कोई बगिया चहके

मिल जाएँ सबके मन ऐसे 

फूलों में हो खुशबू जैसे  

 


Tuesday, August 4, 2020

हनुमान जयंती


आज ये सुंदर वचन सुने, अच्छे लगे तो लिख लिए. “मित्रता और शत्रुता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जब तक वे दूसरे के प्रति बह रहे हैं, स्वयं से दूर ही जा रहे हैं. चित्त की शुद्धि के लिए आवश्यक है कि वे देह के श्रृंगार और स्वादिष्ट भोजन में अत्यधिक रस न लें. अन्य की मौजूदगी में यदि वे स्वयं को अनुभव करते हैं तो स्वयं की अभी खबर नहीं है. भीतर की ऊर्जा को अनुभव करने के लिए उन्हें मात्र स्वयं को जानना है.” इस समय रात्रि के साढ़े सात बजे हैं. बाहर से टहलकर आये तो गंधराज का एक फूल लाये. आजकल फूलों की बहार है यहाँ, टेसू, रूद्र पलाश और भी न जाने कितने सुंदर फूल ! आज एक योग साधिका अस्वस्थ थी, उसे अस्पताल जाने को कहा है, ईश्वर करे वह जल्दी स्वस्थ हो जाये. सुबह उठने से पूर्व स्वप्न में नैनी के पुत्र का पूर्वजन्म देखा, उसका बचपन का चेहरा, फिर किशोरावस्था का, नीले रंग की कमीज पहने था, वह बहुत बहादुर था उस जन्म में. इसीलिए वह जरा भी नहीं डरता, बारिश में भीगता है. मिट्टी पर लोटता है और मन को दिन भर तक देता है. आज ही सुना कि साधना गहरी होती है तो अपने ही पूर्वजन्म का पता नहीं चलता अपने आस-पास के लोगों के पूर्वजन्म का भी ज्ञान होने लगता है. 

रामदेव जी जयपुर में राज्यवर्धन राठौर के नामांकन कार्यक्रम में लोगों का आवाहन कर रहे हैं कि वे एक बार फिर मोदी जी को जिताएं और देश को ऊँचाइयों तक ले जाने में अपना भी योगदान दें. आज चुनाव का दूसरा चरण है, मोदी जी अपने कामों के द्वारा एक बार पुनः भारी बहुमत से जीतकर आ जायेंगे, ऐसा उसे ही नहीं हर देशभक्त भारतीय को पूर्ण विश्वास है. लगभग एक महीने बाद परिणाम आ जायेंगे. आज एओल के एक शिक्षक का संदेश आया, गुरूजी के जन्मदिन पर कवि सम्मेलन होगा, उसके लिए दो कविताएं भेजनी हैं. वे इस वर्ष बंगलूरू में रहेंगे उस दिन. उसने कवि सम्मेलन के लिए रजिस्ट्रेशन किया. व्हाट्सएप पर एओल कवियों के ग्रुप में शामिल हुई. कविता बाहर-भीतर सब ओर मुखरित हो रही है. आत्मा की छिपी और गूढ़ सौंदर्य राशि का भावना के आलोक में प्रकाशित हो उठना ही कविता है ! 

आज सुबह उठने से पूर्व किसी ने चेताया वह उसकी बात सुनेगी या नहीं ? ये शब्द एक बार नहीं अनेक बार सुने. इतनी तीव्रता से कि जैसे कोई धमका रहा हो. परमात्मा उन्हें प्यार से अनेक इशारों से और फिर दृढ़ता से समझाता है. वह उन्हें अपने जैसा देखना चाहता है, वह उनका सुहृद है, उनका सखा और उनका अपना ! आज हनुमान जयंती है, नैनी ने हनुमान जी की तस्वीर के आगे सुंदर फूल सजाये. पूरी हनुमान चालीसा पढ़ी वर्षों बाद. सत्य के मार्ग पर उन्हें अपार आनंद मिलता है फिर भी वे राग-द्वेष के शिकार हो जाते हैं. शाम को मीटिंग थी, नई अध्यक्ष को क्लब का चार्ज दे दिया. 

अब अतीत की बात.. बरसों पुरानी, कालेज के अंतिम वर्ष की. सुबह नींद नहीं खुली और आज वह स्वतन्त्र है, कल से जल्दी उठ सकती है. बाजार गयी थी, सूट सिल गया, बेहद सुंदर लग रहा है पर पहनने वाला सुंदर हो तब तो बात भी है.  होली का दिन, महीना फागुन का नहीं सावन का लग रहा है, या आषाढ़ का एक दिन !  पानी तेजी से बरस रहा है. ईश्वर भी होली खेलना पसन्द करते हैं. वह इस समय किताबें लेकर बैठी है. तीन बजने वाले हैं, किसी को होली खेलना पसन्द नहीं, पिछले वर्ष भी होली इसी तरह मनायी गयी थी. दरबारा सिंह जी, पंजाब के मुख्य मंत्री का भाषण सुना, उसने इससे पूर्व प्रधान मंत्री या जगजीवन राम के अतिरिक्त किसी का भाषण नहीं सुना. दरबारा सिंह जी बोले और खूब बोले लेकिन अधिकतर बातें ऐसी थीं जो कई बार सुनी हुई थीं. इसके अलावा पंजाब में सिखों के अलग प्रदेश बनाये जाने के बार में, उस विवाद के बारे में उन्होंने कोई बात नहीं की, जिसकी कि कुछ लोग उनसे आशा रखते होंगे जो कि आज के भाषण से सम्बन्धित भी थी. कौमी एकता कमेटी के प्रेसीडेंट की आवाज में जो जोश था, उससे उनके दिल की गहराई में जो बात है, वह वाकई में है, यह जाहिर हुई. वे जहनी तौर पर इस कदर सहमे हुए हैं मुसलमानों से, उन्हें उनसे एक दूरी का अहसास बराबर होता रहता है. जब तक ये आंतरिक जड़ें जो मन में दूर तक धंस गयी हैं समाप्त नहीं होतीं, जब तक सिर्फ यह भाव पैदा नहीं होता कि कोई व्यक्ति इस वजह से कि वह बंगला भाषी है या मुसलमान है या किसी अन्य प्रदेश का है, इस तरह का या उस तरह का है, कौमी एकता दूर की चीज है. प्रश्न सिर्फ भाषा का नहीं है. भाषा का प्रश्न उछाला जाता है नारे बाजी में, दरअसल वे अपने-अपने खानों में इस तरह फिट बैठ गए हैं कि बाहर निकल कर देखना ही नहीं चाहते. कूप मंडूक की तरह अपने इर्दगिर्द नजर डालकर चुप हो जाते हैं, इस पीढ़ी को अपनी पुरानी पीढ़ी से क्या मिला ! कुशिक्षा, असभ्य भाषा, आधुनिकता के नाम पर भोंडापन, फ़िल्में और नारेबाजी. वे अपनी पीढ़ी को क्या देकर जायेंगे इससे भी नीचे की चीजें. आदर्शवाद का जिस तरह मखौल आज उड़ाया जा रहा है, आगे चलकर तो वह सिर्फ कल्पना की वस्तु रह जाएगी.