Tuesday, September 24, 2019

भारत की बात सबके साथ



तीन बजने वाले हैं दोपहर के, आज महिलाओं के योगाभ्यास का दिन है. उन महिलाओं का जो घरों में काम करती हैं और अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हैं. जिन्हें घर के कामों से समय निकालना मुश्किल लगता है पर योग करने में आनंद आता है. 'योग' कितना अनोखा शब्द है, इसके अनेक अर्थ हैं. हर साधक के लिए उसका अपना अर्थ ! परमात्मा से मिलन का नाम भी योग है और खुद को जानने के अभ्यास का नाम भी योग है. वह लिख ही रही थी कि एक महिला आयीं, उन्हें अकेले करने में झिझक हो रही थी, सो सभी बच्चों ने उनका साथ दिया और तभी और भी आ गयीं. एक घंटा साथ मिलकर व्यायाम, आसन, प्राणायाम तथा भजन किये. प्रेसिडेंट का फोन आया, तीन दिन बाद वार्षिक सभा है क्लब की. अभी तक मुख्य नये पदाधिकारीगण का चुनाव नहीं हो पाया है. आज सुबह समय पर उठे वे, पूरे दो सप्ताह बाद इस तेल नगरी की जानी-पहचानी डगर पर टहलने गये. जून के दफ्तर में आज समारोह था, कम्पनी को पहली बार एक पेटेंट मिला है, इसलिए दोपहर का भोजन वहीं था. रात को भी उन्हें बाहर जाना है. दोपहर को काफ़ी भोजन बच गया. बंगलूरू से एक नई तरह का राजमा लाये थे वही बनाया है. आज सुबह से ही बिजली आँख-मिचौनी खेल रही है, नया ट्रांसफार्मर लगा है या नया सबस्टेशन आरम्भ हुआ है इसलिए. जून को चश्मे का एक सुंदर केस मिला था बंगलूरू में, वह उसे दे दिया. घर काफी व्यवस्थित हो गया है. बहुत दिनों बाद स्वामी रामदेव पर आधारित धारावाहिक देखा, अब बालकृष्ण जी भी आ गये हैं इसमें. देश में महिलाओं और लडकियों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं, समाज में इतनी बेचैनी, इतनी असंवेदनशीलता कहाँ से आ रही है. लोगों के मन जैसे अपने नियन्त्रण में नहीं रह गये हैं.

आज का दिन मिला-जुला आरम्भ हुआ पर अंत सुखद है. कल रात्रि जून ग्यारह बजे लौटे. वह साहित्य अमृत पढ़ती रही. महीनों बाद उसका अप्रैल अंक आया था. उसके पूर्व कुछ देर टीवी देखा, उसके भी पूर्व अँधेरे में ध्यान किया, बिजली काफी देर तक गुल रही. योग कक्षा के बाद साधिकाओं को बंगलूरू से लाये सुगंधित द्रव्य के पैकेट उपहार में दिए. शाम को बगीचे में टहलते हुए आयुर्वेद पर एक पुस्तक पढ़ी. भारत की चिकित्सा व्यवस्था कितनी समृद्ध थी प्राचीन काल में. कल रात से नेट  नहीं चल रहा है. एक दिन यदि सुबह-सुबह फोन काम न करे तो..कितनी उलझन महसूस हो रही थी, ज्ञात हुआ कि फेसबुक और व्हाट्स एप किस तरह जीवन के अंग बन गये हैं. सवा नौ बजे मृणाल ज्योति गयी, बच्चों को योग-व्यायाम कराया. लौटकर कुछ देर पुस्तक पढ़ी, मन अपेक्षाकृत स्वीकार कर चुका था कि आज नेट नहीं चलेगा. दोपहर को जून ने कोई शिकायत भरा वाक्य कह दिया तो मन कुम्हला गया. परमात्मा ऐसी परिस्थति जानबूझ कर रचते हैं ताकि साधक को अपने अहंकार का बोध हो सके. मन यदि परेशान होता है तो इसका अर्थ ही है, अहंकार बना हुआ है. अहम् के रहते कोई सहज रह ही नहीं सकता. शाम को क्लब में टेक्निकल फोरम में एक भाषण सुनने जाना है.

कल शाम न्यूरोलोजिस्ट डाक्टर उपाध्याय का भाषण सुनने गये. लौटने में साढ़े नौ बज गये. लौटकर रात्रि भोजन किया, सोने से पूर्व प्रधानमन्त्री का कार्यक्रम देखा, 'भारत की बात सबके साथ'. उनका जोश, जज्बा और बातचीत बहुत प्रभावशाली है. देश को उन पर भरोसा है और देश के पास उनके सिवा कोई विकल्प भी तो नहीं है. साढ़े दस बजे टीवी बंद किया, सोने से पूर्व कुछ देर सद्वचन सुने. रात्रि को स्वप्न में डाक्टर साहब को पुनः बोलते देखा. वह कह रहे थे, दो तरह के लोग होते हैं एक सूर्य की तरह दूसरे चाँद की तरह. जून कह रहे हैं वह चाँद की तरह हैं. कल लौटते समय उपाध्याय जी ने कहा था, जो कुछ उन्होंने कहा है, कोई उसे ठीक से सुने, फिर पुनर्स्मरण करे तो वह धारण कर सकता है. कल भाषण सुना तो ध्यान से था, उसने सोचा अब रिकाल करती है फिर डायरी में रिटेन कर लेगी. उन्होंने वृद्धावस्था में होने वाली सामान्य बिमारियों का जिक्र किया था, जैसे रक्तचाप, शर्करा, भूलने की बीमारी, कंपवात, गठिया आदि. चालीस के बाद से ही व्यक्ति को अपना ध्यान रखना होगा, नियमित व्यायाम, टहलना आवश्यक है और फिर योग को पूरा अपनाना होगा. यम, नियम से समाधि तक, न कि केवल दो भाग-आसन व प्राणायाम ! वृद्धावस्था के लाभ गिनाते हुए कहा, उस समय व्यक्ति अपने समय का मालिक होता है. उसे समाज में सम्मान मिलता है, वह अपने पोते-पोती, नतिनी-नातियों के साथ अच्छा रिश्ता बना सकता है. यह भी बताया की वृद्धावस्था में देह में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं. मस्तिष्क की कोशिकाएं अर्थात न्यूरोन कम होने लगते हैं. आँखों का लेंस धुधंला पड़ जाता है. उन्होंने बताया, वैज्ञानिक अनुसन्धान कर रहे हैं कि कोशिकाएं सदा जीवित रह सकें, कोशिकाओं के मृत होने पर ही देह वृद्ध होने लगती है. अंत में कहा, प्रार्थना और ध्यान का बहुत महत्व है शरीर व मन को स्वस्थ रखने में.

Saturday, September 21, 2019

नंदी हिल पर एक सुबह



आज बैसाखी है. बाहर तेज धूप है. कुछ देर में वे आश्रम जायेंगे, उससे पूर्व बाजार, जहाँ जून को थोड़ा काम है. घर का सामान खरीदने की जिम्मेदारी उन्हीं की है, उन्होंने संभाली हुई है. आज सुबह देर से उठे वे, कारण कल रात देर से सोये. कल शाम डेंटिस्ट के यहाँ पहुँचे तो क्लिनिक पर कोई नहीं था. आठ बजे तक का समय सामने की दुकान पर काफ़ी पीकर व स्नैप सीड पर फोटो ठीक करके बिताया. कल दोपहर को दोनों मित्र परिवार आये थे. उन्हें पुलाव खिलाया, पुरानी यादें ताजा कीं, भविष्य के लिए योजनायें बनायीं और दो घंटे का समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला. असमिया सखी तीन दिन बाद अपने पुत्र के यहाँ जा रही है, जिसके यहाँ सन्तान का जन्म होने वाला है. आज सुबह व कल शाम को ओशो पर बनी एक डॉक्युमेंट्री देखी. उनके आश्रम में क्या चल रहा था, वह उससे अनभिज्ञ तो नहीं रहे होंगे. जीवन विरोधाभासों से भरा है. इंसान जब अपने भीतर के पशु को पूरी तरह से देख लेगा, तभी उसके भीतर नये मानव का जन्म होगा, शायद इसीलिए ऐसा करते रहें हों वे लोग.

आज सुबह वे चार बजे से भी पहले उठे. कल शाम को ही नंदी हिल जाने का कार्यक्रम नन्हे ने बनाया था. नहा-धोकर वे तैयार हुए और पांच बजे उसके मित्र की कार लेकर निकल पड़े. रास्ते में ही लालिमा दिखाई दी, अर्थात सूर्योदय तो हो चुका था. लगभग डेढ़-पौने दो घंटे की यात्रा के बाद सुंदर पर्वत आरंभ हो गये. घुमावदार चढ़ाई पर कार के टायर घिसने लगे और एक गंध हवा में भर गयी. सैकड़ों लोग वहाँ पहुँच चुके थे. मौसम ठंडा था. बादल, धुंध और कोहरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. पेड़ों से गिरती पानी की बूंदों ने सडकों को गीला कर दिया था. हवा ठंडी थी. उन्होंने जैकेट पहन लिए थे और सिर भी ढक लिए थे. ऊपर कई रेस्तरां थे. एक जगह बैठकर चाय पी और एक प्लेट सांबर बड़ा में से सबने आधा-आधा बड़ा खाया, जिसका स्वाद अच्छा था, क्योंकि यह सुबह का पहला भोजन था. जगह-जगह वाचिंग टावर बने थे. जिसपर चढ़कर सूर्योदय तथा नीचे की घाटी का दृश्य देखा जा सकता था. थोड़ी देर बाद वहाँ बन्दर आने लगे, जो आदमियों को देखकर जरा भी नहीं डर रहे थे. कुछ समय बिताकर वे वापस आये तो पता चला कि गाड़ी का एक टायर पंक्चर हो गया है. रास्ते में पंक्चर ठीक कराया, बीस मिनट लगे, वापसी में परांठे की एक प्रसिद्ध दुकान पर नाश्ता किया, आलू, मूली, गोभी और पिज़ा परांठे का नाश्ता !

पौने दो बजे हैं दोपहर के. आज ओशो की फिल्म का अंतिम भाग भी देख लिया. उन जैसे व्यक्ति दुनिया में हलचल मचाने के लिए ही आते हैं. वे सोये हुए लोगों के भीतर क्रांति के जागरण का बीज बोते हैं. कल उन्हें वापस जाना है, पैकिंग लगभग हो गयी है. आज बीहू है, यहाँ हर दिन ही उत्सव है. नन्हा ढेर सारा भोजन ऑन लाइन मंगवा लेता है. सोनू ने केक बनाया है. जून ने आम काटे और कल नंदी हिल से वापसी की यात्रा में लिए काले अंगूर धोकर खिलाये. शाम को नन्हे के एक परिचित के यहाँ जाना है. बनारस के रहने वाले हैं. सुबह उसका एक सहकर्मी परिवार सहित आया था. नीचे बच्चों के तैरने की आवाजें आ रही हैं. सोसाइटी के तरणताल पर दिन भर रौनक लगी रहती है.

आज वे घर वापस लौट आये हैं. सुबह चार बजे से थोड़ा पूर्व ही उठे. साढ़े पांच बजे एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए और साढ़े छह बजे पहुँच गये. कल शाम नन्हा और सोनू ढेर सारा सामान ले आये साथ ले जाने के लिए. अंजीर की बर्फी के रोल स्वादिष्ट थे और रिबन पकौड़ा भी. साढ़े ग्यारह बजे कोलकाता पहुँचे अगली फ्लाईट के लिए. हिन्दू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया पढ़ते हुए समय बीत गया. साढ़े तीन बजे वे घर पहुँच गये. ढेर सारे फूल खिले हैं बगीचे में. सामने वाला गुलाबी फूलों वाला पेड़ फूलों से पूरा भर गया है. घर आकर सफाई आदि करते-कराते सात बज गये. नैनी अपनी देवरानी को ले आई, माली की दोनों पत्नियों को भी बुला लिया, चारों ने मिलकर सफाई की व कपड़े धोये.     

Thursday, September 19, 2019

फूलों की तस्वीर






आज कामवाली नैनी की जगह उसकी भांजी काम करने आयी है, उन्हें भी बाद में एक सहायिका को नियुक्त करना होगा, इतने बड़े घर की देखभाल व सफाई के लिए कोई तो चाहिए होगा. जून नेट फ्लिक्स पर 'तीन' देख रहे हैं, अमिताभ बच्चन की फिल्म है यह. उसे फ़िल्में देखने का जरा भी मन नहीं होता अब, जगत ही नाटक लगने लगे तो किसी और नाटक की जरूरत ही नहीं रहती. यहाँ आने के बाद एक बार भी तैरने नहीं गयी, मौसम सदा ही ठंडा रहता है, भीगा-भीगा सा. लेखन कार्य भी बंद है. अपना घर अपना ही होता है, यह बात उनके मन को कितना संकुचित कर देती है, अपना तो यह सारा जहान है !

दोपहर के बारह बजकर दस मिनट हुए हैं. मौसम हल्का गर्म है, धूप तेज है. शाम को मॉल जाना है. वाशिंग मशीन की एएमसी करके अभी-अभी कर्मचारी गया है. कल रात देर से सोये, नन्हा नये घर के लिए खरीदने वाली वस्तुओं की सूची बना रहा था. सोनू देर से लौटी, उसके बाद साढ़े ग्यारह बजे वे सोने गये. सुबह मन्दिर के बाहर बैठने वाली मालिन से फूल लेने गये, छोटी-छोटी दो मालाएं और गुलाब के ढेर सारे फूल ! वह मर्फी की किताब के साथ कार्नेगी की एक पुस्तक भी पढ़ रही है. जीवन को जब तक कोई दिशा नहीं मिलती, वे नया सीखने में उत्सुक नहीं रहते. आत्मा का स्वभाव है जानना, वह हर पल नयी है और नया सीखना चाहती है. अभी क्रोम बुक नही खोली है, आज की पोस्ट लिखनी है.

आज पूरा एक सप्ताह हो गया उन्हें यहाँ आए हुए. नन्हे व सोनू का घर बहुत सुंदर है, सारी सुख-सुविधाओं से पूर्ण, उनका आपसी व्यवहार भी बहुत अच्छा है, भरोसे और सहयोग से भरा ! शाम को नेत्रालय जाना है, परसों डेंटिस्ट के पास. इंटीरियर डेकोरेटर के पास सप्ताहांत में. आज बड़ी भाभी की तीसरी बरसी है. समय जैसे पंख लगाकर उड़ता है. आज सुबह पांच बजे नींद खुली. सुंदर स्वप्न चल रहा था, मुस्कान थी चेहरे पर जब आँख खुली. फूलों की तस्वीरें उतारीं. कल शाम को एक जगह सुंदर फूल देखे थे, पर आज सुबह नहीं थे, माली ने कटिंग कर दी, पता नहीं कहाँ फेंके होंगे श्वेत व रक्तिम वे पुष्प ! जून ने कल रात ढेर सारा पुलाव बना दिया, नन्हा सुबह टिफिन में वही ले गया है. जाने से पूर्व घर भी ठीक-ठाक कर के जाता है, उसे जरा भी काम नहीं करने देता. उसे अँधेरे से डर लगता है, बचपन में ही यह डर उसके मन में बैठा होगा. उसके खुद के मन में भी कितने भय के संस्कार थे, जिनका सामना करने से वे समाप्त प्रायः हो गये हैं. जून आज सुबह भविष्य के लिए चिंतित थे जब वे वृद्ध हो जायेंगे. यह घड़ी पर्याप्त है जीने के लिए, न कोई भूत सताये न भविष्य  सताये..वर्तमान का यह पल ही पर्याप्त है ! नेट पर एक लेख पढ़ा मछली खाने को लेकर, लेखिका को एक रोग है जो व्यक्ति को कमजोर कर देता है. गेहूँ, चावल, दूध के बने पदार्थ उन्हें नहीं पचते. उसे इतने बड़े विश्व में इस पल अथवा तो ज्यादातर समय किसी से कुछ लेना-देना नहीं होता, वह अपने आप में ही प्रसन्न है ! कोई जवाबदेही न हो किसी के भी प्रति, यही तो सच्ची आजादी है ! यह आजादी जिसने एक बार अनुभव कर ली वह भला क्यों बंधना चाहेगा ! सेवा का बंधन भी नहीं, कर्त्तव्य का बंधन भी नहीं..सदा-सर्वदा मुक्त और अपनी आजादी में जो हो उसे होने देना..जो अस्तित्त्व कराए हो जाने देना !

दस बजे हैं सुबह के, आज असमिया सखी आने वाली है, कई बार पहले भी उसने कहा, अंततः वे लोग यहाँ आ रहे हैं. हो सकता है एक और मित्र परिवार भी आये. आज बहुत दिनों बाद दीदी का ब्लॉग पढ़ा. शाम को बड़े भाई से बात की, कल दोपहर वह परेशान हो गये थे, अकेलेपन का दंश और भाभी की उपस्थिति का अभाव उन्हें चुभ रहा था, पर स्वयं को स्वयं ही समझाकर वह उस स्थिति से बाहर आ पाए. मन का काँटा मन से निकलता है फिर उस कांटे को भी फेंक देना है. मौसम आज अच्छा है, बाहर का भी और मन का भी !