Monday, October 29, 2018

माजुली का सौन्दर्य




सुबह के चार बजे हैं. दो दिन पहले वे काजीरंगा आये थे, एक रिजॉर्ट में ठहरे हैं. जून को कम्पनी की तरफ से ‘तनाव प्रबंधन’ के किसी कार्यक्रम में भाग लेना है, कोर्स में जितने सदस्य भाग लेने वाले थे, उनमें से एक किसी कारणवश नहीं आ पाया, सो भाग्यवश उसे भी स्थान मिल गया है. उसने सोचा, निकट भविष्य में मृणाल ज्योति के कार्यक्रम के आयोजन में उसे इस कोर्स से कुछ सहायता मिल सकती है. आज के वातावरण में कौन तनाव से ग्रस्त नहीं है. आज कार्यक्रम का अंतिम दिन है. अभी कुछ ही देर में वे हाथी पर बैठ कर एक सींग वाला गैंडा देखने जायेंगे. कल उन्होंने स्मृति चिह्न के रूप में लकड़ी का एक बड़ा सा गैंडा खरीदा. तीन वर्षों के बाद जब असम से उन्हें विदा लेनी होगी तब नये घर में यह उन्हें यहाँ बिताये अद्भुत वर्षों की याद दिलाएगा.

काजीरंगा से लौटते हुए कल नाव के द्वारा ब्रह्मपुत्र को पार करके वे ‘माजुली’ गये थे. यह नदी से बना विश्व का सबसे बड़ा द्वीप है. और असम में शंकर देव द्वारा चलाये गये वैष्णव धर्म का केंद्र भी है. तीन सत्र देखे, पहले सत्र में जाकर असीम शांति का अनुभव हुआ. वातावरण में पवित्रता जैसे झर रही थी. एक जगह मुखौटे बनानेवाले कलाकारों से भेंट हुई, उन्होंने अभिनय भी दिखाया. काजीरंगा में किये डेढ़ दिन के कोर्स में भी कई बातें सीखीं. अब उन्हें सिलसिलेवार लिखकर जीवन में उपयोग के लिए तैयार करना है. जून और उसने एक सुंदर समरसता का अनुभव किया इस कार्यक्रम के दौरान. दोपहर के दो बजने को हैं. अभी कुछ देर पूर्व वह बाजार व पोस्ट ऑफिस से आयी है. यहाँ पहली बार रजिस्ट्री करवाई, भाईदूज का टीका भेजा है सभी भाइयों को. पत्र लिखने का अभ्यास छूटता ही जा रहा है, क्या लिखे, कुछ समझ नहीं आ रहा था, जल्दी में पत्र लिखे, समय से पहुंच जायेंगे ऐसी उम्मीद रखनी चाहिए. सुबह उठी तो हृदय शांत था. भीतर चाँद, तारे, आकश, सूर्य सभी के दर्शन हो रहे थे, कितना अद्भुत है भीतर का संसार और परमात्मा ! नहाकर बाहर गयी तो दो छोटी काली तितलियाँ बरामदे तक आकर छूकर चली गयीं, परमात्मा की कृपा असीम है. सुबह लिखा हुआ भी देखा भीतर ‘स्वधर्म’, आत्मा में निवास करना ही उसका स्वधर्म है. योग में स्थित हुआ ही अपने धर्म में स्थित रह सकता है. चार दिन बाद दीपावली का त्यौहार आने वाला है, ढेर सारी तैयारियां करनी हैं.
आज सुबह योग कक्षा के लिए स्कूल गयी, एक नन्ही बालिका ने एक पुष्प दिया, उसका मुखड़ा चमक रहा था और आँखों में कैसा अनोखा भाव था. कक्षा एक का एक छात्र बहुत अच्छी तरह ध्यान करता है. परमात्मा किस रूप में किसको अपनी तरफ खींच लेता है, कोई नहीं जानता. कल स्कूल में विज्ञान प्रदर्शनी है, उसे बुलाया है. आज दीपावली के लिए ढेर सारी खरीदारी की. दो दिन बाद ही घर में भोज है. कल छोटी बहन व उसके शेफ पतिदेव से बात की, उन्होंने दो-तीन नये पकवान बनाने की विधि बताई. सिया के राम के दो एपिसोड देखे, जो यात्रा के दौरान नहीं देख पायी थी. अंतिम विदाई से पूर्व सीता ने लव-कुश तथा राम को भी भोजन कराया ताकि उस भोज की स्मृति उन्हें उसके वियोग के दुःख के समय सांत्वना दे. आज के अंक में वह धरती में समा जाने वाली है. वह अपने पिता से भी मिलकर आती है तथा रानी के वस्त्र पहने भूमि में समाने वाली है. रामकथा की तरह सीता की कथा में भी लेखक अपनी कल्पना से नये रंग भरते रहते हैं. कौन जाने वास्तव में क्या हुआ था ? उसे ब्लॉग पर कुछ प्रकाशित किये कितने दिन हो गये हैं. अभी-अभी आकाश के चित्र फेसबुक पर प्रकाशित किये.
  

Monday, October 15, 2018

लहर और बादल



आठ बजने को हैं. आज भी मौसम ठंडा ही रहा. बदली बनी रही. वे अभी-अभी बाहर टहल कर आये हैं. आकश पर सफेद बादलों के मध्य पूर्णिमा से एक दिन पूर्व का सुंदर चाँद चमक रहा था. कल यहाँ लक्ष्मी पूजा का उत्सव है, उत्तर भारत में दीपावली के दिन यह उत्सव होता है. यहाँ उस दिन काली की पूजा होती है. सुबह वह मृणाल ज्योति गयी, चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी की मीटिंग थी. बच्चों द्वारा रंगे कुछ सुंदर दीए खरीदे. कम्प्यूटर ठीक हो गया है, ब्लॉग पर नई पोस्ट प्रकाशित की. कल सुबह डिब्रूगढ़ डाक्टर के पास जाना है, जून के घुटने में दर्द है.
शनिवार व इतवार कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. इस समय शाम के चार बजे हैं. जून एक दिन के लिए आज देहली गये हैं, देर शाम तक पहुंचेंगे, परसों लौटेंगे. परसों शाम उन्होंने यूरोप के सभी चित्र टीवी की बड़ी स्क्रीन पर दिखाए, भव्य इमारतें और सुंदर बगीचे. कल शाम को वह थोड़ा परेशान हो गये थे जब उसने कहा कि काजीरंगा जाने का समय वह केवल अपने लिए तय कर सकते हैं, अन्यों के लिए नहीं. बाद में उसे समझ में आ गया कि अपने-अपने संस्कारों के वशीभूत होकर वे क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं. उसके बाद उनके मध्य पुनः सकारात्मक ऊर्जा बहने लगी. ऊर्जा का आदान-प्रदान सहज होता रहे, यही तो साधना है. सुबह वे घर में ही कुछ देर टहले, डाक्टर ने उन्हें दो दिन आराम करने को कहा है, आज वह अपना घुटना आराम से मोड़ पा रहे थे. उनकी कम्पनी और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कितना सहायक सिद्ध हुआ है, उसका मन कृतज्ञता से भर गया. कुछ देर पहले मृणाल ज्योति से ईमेल आया, टीचर्स की जानकारी थी. अब वे उनके लिए भली-प्रकार योजना बना सकते हैं. वे इस समय जहाँ खड़े हैं, वहाँ से उन्हें आगे लेकर जाना है. उसने क्लब की एक परिचित सदस्या को, जो असमिया लेखिका भी है, प्रेरणात्मक वक्तृता के लिए कहा है.
आज सुबह वह उठी तो आँखें खुलना ही नहीं चाहती थीं, कुछ देर के लिए ऐसे ही बैठ गयी, बाद में सुदर्शन क्रिया करते समय भी अनोखा अनुभव हुआ. शांति की अनुभूति इतनी स्पष्ट पहले कभी नहीं हुई थी. वह इस देह के भीतर प्रकाश रूप से रहने वाली एक ऊर्जा है जिसके पास तीन शक्तियाँ हैं, मन रूप से इच्छा शक्ति, बुद्धि रूप से ज्ञान शक्ति तथा संस्कार रूप से कर्म करने की शक्ति. यदि ज्ञान शुद्ध होगा, तो इच्छा भी शुद्ध जगेगी, और उसके अनुरूप कर्म भी पवित्र होंगे. उनके पूर्व के संस्कार जब जगते हैं और बुद्धि को ढक लेते हैं तब मन उनके अनुसार ही इच्छा करने लगता है. हर संस्कार भीतर एक संवेदना को जगाता है, उस संवेदना के आधार पर उनका मन विचार करता है. यदि संवेदना सुखद है तो वह उस वस्तु की मांग करने लगता है, यदि दुखद है तो द्वेष भाव जगाकर विपरीत विचार करता है. अपने संस्कारों के प्रति सजग होना होगा तथा नये संस्कार बनाते समय भी जागरूक होना होगा. वे स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं. वह ऊर्जा ही इस देह पुरी का शासन करने वाली देवी है, उसे स्वयं में संतुष्ट रहकर इस जगत में परमात्मा की दिव्य शक्ति को लुटाना है.
आज स्कूल जाने के लिए तैयार हुई पर ‘बंद’ के कारण नहीं जा सकी, बच्चे शायद उसकी प्रतीक्षा करते होंगे, सोचकर एक पल के लिए मन कैसा तो हो गया पर ज्ञान की एक पंक्ति पढ़ते ही स्मृति आ गयी और शांति का अनुभव हुआ. वे स्वयं को ही भूल जाते हैं और व्यर्थ के जंजाल में पड़ जाते हैं. जीवन उनके चारों और बिखरा है और वे उसे शब्दों में ढूँढ़ते हैं. करने को कितना कुछ है, दीपावली का उत्सव आने वाला है, एक सुंदर सी कविता लिखनी है.

सागर की गहराई में शांति है,
अचल स्थिरता है, हलचल नहीं..
लहरें जो निरंतर टकराती हैं तटों से,
उपजी हैं उसी शांति से..
भीतर उतरना होगा मन सागर के
आकाश की नीलिमा में भी बादल गरजते है,
टकराते हैं, उमड़ते-घुमड़ते आते हैं और खो जाते हैं !
आकाश बना रहता है अलिप्त.
पहचानना है लहर और बादल की तरह मन के द्वन्द्वों को
जो जीवन का पाठ पढ़ाते हैं.
लहर और बादल को मिटने का दर्द भी सहना होगा
अवसर में बदलना होगा चुनौतियों को
और पाना होगा लक्ष्य-शाश्वत सत्य !