अंतर आकाश
कभी-कभी अतीत में झांकना जैसे एक खिड़की से झांकना है। जीवन को सुंदर बनाने की दिशा में उठाये गये वे छोटे-छोटे कदम थे, जो यहाँ तक ले आये हैं। जब हर घड़ी परमात्मा का स्मरण सहज ही बना रहता है। हर श्वास उसी की देन है। हर शै में वही है। उसके सिवा कोई और हो ही कैसे सकता है? भीतर एक अपूर्व शांति का साम्राज्य है, जिसे न कोई ले सकता है, न ही दे सकता है: वह ‘है’ ! शाम को मंझले भाई-भाभी से बहुत दिनों के बाद बात हुई। भाभी का जन्मदिन आने वाला है, उसके लिए कविता लिखनी है। शाम को पापाजी से बात हुई, उन्हें चिंता है कि भक्तिभाव में ज़्यादा नहीं डूबना चाहिए, नहीं तो संसार से विरक्ति हो जाएगी। मनुष्य का मन भी कितना जकड़ा हुआ है, उम्र के आख़िरी पड़ाव पर आकर भी विरक्ति की बात से उसे भय लगता है।
आज सुबह टहलने गये तो आसमान में पूर्णिमा का चाँद बादलों के पीछे छिपा हुआ था।नीले बादलों से झांकता हुआ पीला चाँद बहुत सुंदर लग रहा था। रोज़ की तरह नीम की टहनी से कुछ कोमल पत्तियाँ जून ने तोड़ कर दी, पित्त कम होता है नीम की पत्ती चबाने से। वापस आकर धौति क्रिया भी की और आसान आदि। गुरुजी का एक पुराना वीडियो देखा, बहुत ही अच्छा लगा। एडवांस कोर्स में सुना था इसे।जून आज बगीचे के लिए मिट्टी व खाद लाए हैं। दोपहर को छोटी बहन से बात हुई, बहनोई की दूसरी आँख का ऑपरेशन अगले महीने होगा। शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग के संयम कोर्स की सूचना मिली। उसने सोचा है, मंगल से शुक्र चार दिनों तक स्वयं ही प्रतिदिन मौन रहकर आठ घंटे की साधना करेगी। जून भी मान गये हैं। बहुत अच्छा लगेगा।
आज शाम से ही तेज वर्षा हो रही थी, जब से वे बोटेनिका से लौटे। वापस आकर कुछ किताबों में से एक-एक पन्ना पढ़ा, परमात्मा को अपने क़रीब महसूस किया। नन्हे से बात हुई, कल सुबह वह सोनू के साथ आएगा। आज पहली बार बगीचे से पपीता तोड़ा, कल पराँठे बनायेंगे।
आज नाश्ते के बाद सब लोग अगारा झील देखने गये, अत्यंत सुंदर दृश्य थे। थोड़ी सी चढ़ाई चढ़कर झील के किनारे बने ऊँचे बंद पर टहलते रहे। दोपहर को बच्चे वापस चले गये। शाम को बोटेनिका से आगे सोमनहल्ली की तरफ़ कच्चे रास्ते पर आगे बढ़ते गये। वापसी में एक परिचित दंपत्ति कृष्णा व उनकी डाक्टर पत्नी मिल गयीं ।उनके साथ थोड़ा और आगे जंगल में चले गये, लौटते समय वर्षा होने लगी, पहले बूँदाबाँदी फिर तेज वर्षा, घर आते-आते तक सभी पूरी तरह भीग गये थे। जून ने ग्रीन टी बनायी।आज झील और जंगल की कई तस्वीरें भी उतारीं।
आज बहुत दिनों बाद आसमान में टिमटिमाते चमचमाते तारे देखे, कल भी तापमान ३२ डिग्री रहेगा। नूना कल से अगले चार दिनों तक ध्यान व मौन की साधना शुरू कर रही है। यह इस तरह का पहला प्रयास है, पर आगे भी जारी रहेगा। सुबह ६-८।३० तक योग आसन, प्राणायाम, क्रिया तथा ध्यान । ८।३० से १० तक नाश्ता व बगीचे में काम। १०-१२/३० तक जप साधना, स्वाध्याय व लेखन। १२/३० - ३ बजे तक भोजन, विश्राम व लेखन, ३-६ तक ध्यान, भजन, गायन, श्लोक पाठ।६-९तक सांध्य भ्रमण, रात्रि भोजन, डायरी लेखन, रात्रि भ्रमण। इन चार दिनों में मोबाइल तथा टीवी से दूरी रहेगी। स्वयं को जानने के लिए स्वयं के साथ समय बिताना बहुत ज़रूरी है।
आज चार दिनों के मौन का प्रथम दिन है। दिन भर में कुल मिलकर पाँच-छह शब्द बोले होंगे। बिना बोले भी काम चल जाता है। शब्दों के पीछे जो भाव हैं, वे इशारे से भी बखूबी समझाए जा सकते हैं। आज अपेक्षाकृत मौसम गर्म है। बहुत दिनों बाद सूर्यास्त के भी दर्शन भी हुए, बादलों के पीछे ही सही। गुरुजी की दो पुस्तकें निकालीं, सोर्स ऑफ़ लाइफ तथा द स्पेस विदिन, दोनों में अमूल्य ज्ञान है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य का अर्थ बहुत सरलता से समझाया गया है। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान आदि नियमों का भी। ध्यान की बारीकियाँ पढ़कर ध्यान भी गहरा हुआ। आज रात की निद्रा भी अवश्य विश्राम पूर्ण होगी। कुछ पुरानी कविताएँ भी पढ़ीं। सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक का समय अति सरलता से बीत गया। सुबह कुछ देर बाग़वानी की कुछ देर सफ़ाई। अभी सोने में आधा घंटा शेष है, कुछ लिखा जा सकता है।
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