परसों वे ‘होलिका दहन’ का आयोजन देखने गए थे, जो नापा में बड़े ही शानदार तरीक़े से मनाया गया। अगले वर्ष वे भी कुछ मिठाई आदि लेकर जाएँगे। जल्दी आना पड़ा क्योंकि सुबह फ़्लाइट पकड़नी थी असम के लिए। कल सुबह दस बजे होटल पहुँच गये। दोपहर को जूरन में शामिल हुए। असम में विवाह से एक दिन पहले यह रीति होती है। शाम की काकटेल पार्टी भी अच्छी थी, पुराने-नए फ़िल्मी गानों की धुन पर सभी नाच रहे थे। शाम को विवाह है, फिर विशेष भोज। आज दोपहर को सोनू के घर जाना है। जून यहाँ स्थित कम्पनी के दफ़्तर चले गए हैं, जहाँ वे पहले सेवाकाल में कई बार आ चुके हैं। टीवी चल रहा है, मध्यप्रदेश में सरकार गिरने वाली है।ज्योतिराव सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गये हैं, उनके साथ कई एमएलए भी आ गये हैं।, पिछले कई वर्षों से कांग्रेस में उन्हें अपनी बात रखने का मौक़ा नहीं मिल रहा था, ऐसा उनका कहना है। मानव स्वभाव हर जगह एक सा ही होता है, जहाँ सम्मान न मिले तो व्यक्ति वहाँ रहना नहीं चाहता।
‘लोभ से भरा मन साधक नहीं हो सकता। इस जगत में पकड़ने जैसा कुछ भी नहीं है, दर्शक की तरह यहाँ से गुजर जाना है।’ टीवी पर ये सुंदर वाक्य सुने अब आकाशवाणी पर समाचार आ रहे हैं। कोरोना अब महामारी बनता जा रहा है। प्रकृति में संतुलन के लिए समय-समय पर अतीत में भी महामारी फैलती रही है। आज सुबह वे जल्दी उठ गये। टहलने गए तो हवा में हल्की ठंडक थी। कम से कम सौ लोग और भी थे उस सड़क पर, जिसे सुबह के समय ट्रैफ़िक के लिए दोनों ओर से बंद कर दिया गया था। कई बड़े शहरों में प्रातः भ्रमण के लिए ऐसा ही प्रबंध होता है आजकल। कुछ लोग खेल रहे थे, कुछ साइकिल चला रहे थे और कुछ व्यायाम भी कर रहे थे। कल शाम विवाह का सुंदर आयोजन सम्पन्न हो गया। अहोम तथा कश्मीरी दोनों तरह की रीति से विवाह हुआ। कई पुराने परिचित लोगों से मुलाक़ात हुई।
आज वे उमियम झील यानि ‘बड़ा पानी’ में आ गये हैं। गोहाटी से शिलांग पहुँचने से लगभग बारह किमी पहले मीठे पानी की यह एक बड़ी सी झील है, जिसके किनारे सुंदर विश्राम स्थल बन गए हैं। एक रात वहाँ गुजरने का इरादा है। हिमालय की अचल पर्वत शृंखला के सान्निध्य में स्थित यह शांत झील एक आकर्षक पर्यटक स्थल है। सब कुछ कितना स्थिर लग रहा है। यह पर्वत न जाने कितने काल से ऐसे ही खड़े हैं। दोपहरी का समय है। झील का हरे रंग का पानी भी जैसे विश्राम कर रहा है। किनारों पर उगे चीड़ के वृक्ष भी मौन हैं, जिन पर लगे कोन धूप में चमक रहे हैं । कुदरत का यह सुंदर दृश्य जैसे उन्हें अपने भीतर की स्थिरता को महसूस करने के लिए आमंत्रण दे रहा है। कभी-कभी पंछियों की आवाज़ें निस्तब्धता को भंग कर देती हैं, झींगुर की आवाज़ भी वातावरण को और अर्थवान बना रही है। एक श्वेत तितली काफ़ी ऊँचाई पर उड़ रही है। वह प्रकृति की इस लीला को निहार ही रही थी कि अचानक हवा बहने लगी, कुछ वृक्ष मस्ती में झूम रहे हैं।
बहुत सुंदर संस्मरण।
ReplyDeleteस्वागत व आभार मीना जी !
Deleteबहुत सुन्दर और जीवंत संस्मरण ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार मीना जी !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4337 में दिया जाएगा| आप इस चर्चा तक जरूर पहुँचेंगे, ऐसी आशा है|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार!
Deleteबहुत सुंदर मोहक यात्रा वर्णन।
ReplyDeleteस्वागत व आभार कुसुम जी !
Deleteसुंदर संस्मरण...
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