Tuesday, November 17, 2020

शिव सूत्र

 

नैनी का बेटा आज जामुन के वृक्ष पर लकड़ी फेंक कर जामुन गिराने का प्रयास कर रहा था, इसका अर्थ है कुछ ही दिनों में जामुन पकने और स्वयं गिरने आरंभ हो जाएंगे। जून कुछ  समय पहले पैदल ही क्लब चले गए हैं। एक्सेंच्योर कंपनी का एक प्रेजेंटेशन है जो कंपनी को डिजिटल करने की दिशा में सहायता करने वाली है। वर्षा होने लगी है, वापसी में उन्हें किसी से लिफ्ट लेनी होगी। अब लगभग दो माह और रह गए हैं उनके कार्यकाल में। आज से छत्तीस वर्ष पूर्व वे उत्तर प्रदेश से असम आए थे, और जीवन का अगला पड़ाव कर्नाटक में बनेगा। आज प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब दिया, विरोधी पार्टियां उनकी बातों को समझने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाती हैं, ऐसा लगता है मात्र विरोध करना ही उनका ध्येय है।अमित शाह  कश्मीर गए हैं, वहाँ अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। हज यात्रा में भी इस वर्ष काफी यात्री जाएंगे, महिलाएं भी काफी संख्या में अकेले जा रही हैं।  योग कक्षा  में एक साधिका ने कहा, उसका दस वर्षीय पुत्र बहुत चंचल है और उसकी बात नहीं सुनता। उसने कहा, बच्चे हों या बड़े, कोई भी जन आदेश लेना नहीं चाहते, देह छोटी हो पर आत्मा तो सबके भीतर समान है, उसे भी अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान उतना ही प्रिय है जितना किसी वयस्क को। उससे अनुरोध तो किया जा सकता है पर माने या न माने इसका फैसला उस पर ही छोड़ना होगा। माता-पिता को उसे यह तो बताना  होगा कि क्या करने से उसका लाभ है और किस काम से उसे ही हानि होगी, बाकी उसकी बुद्धि पर छोड़ देना चाहिए। वह यह सब बताती रही पर याद ही नहीं रहा, कि  जून को जाना है। उन्होंने शिकायत की तो उसने कहा, एक माँ को समझा रही थी। वह उस समय तो चुप हो गए पर अवश्य नाराजगी भीतर ही रह गई होगी। ऊर्जा एक बार कोई रूप धारण कर लेती है तो जब तक उसे निष्कासन का मार्ग न मिले नष्ट नहीं होती। साक्षी भाव से उसे देखना पहला तरीका है और झट स्वयं में लौट जाना दूसरा।  

 

आज सुबह तेज बारिश हो रही थी, वे बरामदे में ही टहलते रहे, फिर वहीं चटाई बिछाकर सूर्य नमस्कार व आसन किए। सुबह का योग दिन भर मन को  ऊर्जा से ताजा रखता है। एक अनुपम गंध जाने कहाँ से आ रही है, परमात्मा की शक्ति व कृपा अपार है व उसका रहस्य कोई नहीं जान सकता। परमात्मा ने उसे साम, दाम, दंड, भेद हर तरह से समझाया है कि वह हर तरह की आसक्ति का त्याग कर दे।  छोटी बहन कनाडा में है, सुंदर तस्वीर भेजी है। दीदी ने उसकी रचनाओं पर टिप्पणी की है, वह सदा उन्हें पढ़ती हैं। आज ‘शिव सूत्र’ पढ़े। मातृका के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। संस्कृत के बावन अक्षर ही बावन शक्ति पीठ हैं। अघोरा , घोरा और महाघोरा  तथा बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परा वाणी के संबंध में भी। ज्ञात हुआ साधना के द्वारा उन्हें शब्दों के पार जाकर उस स्रोत तक पहुंचना है जहाँ से शब्द निकलते हैं। उस योग साधिका ने आकर कहा, उसे एक ही दिन में अपने पुत्र में परिवर्तन दिखाई दिया है, उसका खुद का हाथ का दर्द भी आसन करने से ठीक हो गया है। योग का ऐसा परिणाम देखकर बाकी सबको भी अच्छा लगता है। 

 

आज दोपहर को तेज गर्मी के बावजूद बच्चों ने पूरे मन से सुंदर चित्र बनाए। क्रिकेट विश्व कप में भारत का मैच इंग्लैंड के साथ है, जो बहुत अच्छा खेल रहा है। भारत अब तक एक भी मैच नहीं हारा है, कहीं उसकी यह विजय यात्रा थम न जाए। आज चार  महीनों के बाद मोदी जी का सम्बोधन ‘मन की बात’ में सुना, जिसमें वह सभी देशवासियों को प्रेरित करते हैं, आज जल संरक्षण पर बात की, अपनी केदारनाथ यात्रा का जिक्र किया और भी कई मुद्दों पर बात की, पर सबसे अच्छी बात थी, उनकी भावनाएं इतनी पवित्र हैं और वह एक राजनीतिज्ञ से अधिक एक लेखक, कवि या दार्शनिक लगते हैं, वह सुधारक भी हैं और प्रेरक भी। उन्हें पत्र लिखकर यह सब बताने का मन हुआ, आज कई बार उनकी बातें सुनकर हृदय छलक आया। उनके हृदय में इतनी करुणा और इतना विश्वास है कि भारत जैसे विशाल देश के सुदूर गावों में रहने वाले लोग भी उनसे एक जुड़ाव महसूस करते हैं। सुबह सभी परिवार जनों से भी फोन पर साप्ताहिक  बातचीत हुई। छोटी भतीजी एओल का बेसिक कोर्स कर रही है, वह घर से बहुत दूर जॉब करने जाती है, भाई को उसकी सुरक्षा की चिंता के कारण कुछ तनाव तो होता होगा । माँ-पिता दोनों का ही रोल उन्हें निभाना है । सुबह अमलतास की कुछ और तस्वीरें उतारीं।   

 

वर्षों पूर्व..  उस दिन लिखा था, जीवन क्या है ? क्या मात्र सुख या आनंद का स्रोत ! क्या  सुख प्राप्त करने का प्रयत्न  ही जीवन का मात्र लक्ष्य है ? क्या खुश रहना ही अपने आप में एक महत कार्य है ? क्या भविष्य की योजनाएं बनाना और कठिन परिश्रम करके उन्हें सफल करने का प्रयत्न करना महत्वपूर्ण है या कि .. शायद महत्व इस बात का है कि  किसी का जीवन दूसरों की कुछ भलाई कर सकता है या नहीं । फिर यदि वे सुंदर भविष्य के लिए कुछ करते हैं तो वह उचित ही है। किन्तु वह जो अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ कर रही है इसके लिए उसे  ग्लानि भी नहीं होती, होती भी है तो न के बराबर। यद्यपि वह अच्छी तरह जानती है कि  उसका कर्तव्य क्या है, पर भीतर ही कोई भावना है जो कहती है, बस प्रसन्न रहो ! उसके आसपास के लोगों में कोई नहीं कहता कि  यह ठीक नहीं, या  ठीक है पर यह सब कुछ नहीं, यदि वह अपने आपको चमकाएगी नहीं, पॉलिश नहीं करेगी, ज्ञान प्राप्त  नहीं करेगी, जो पढ़ा है उसे दोहराएगी नहीं तो कुंद हो जाएगी पत्थर की तरह। तब कोई महत्व नहीं होगा, सब एक तरफ कर देंगे, छाँट देंगे या वह पीछे रह जाएगी। जीवन काम है सँवारने का,  पॉलिश करने का टेढ़े-मेढ़े पत्थर को सुडौल बनाने का ! 

 


3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. बहुत बहुत आभार !

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  3. ब्रह्मानंद की सुखद यात्रा सदृश । हार्दिक आभार ।

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