Tuesday, August 28, 2018

दफ्ती का घर



शाम होने को है. टीवी पर केन्द्रीय मंत्री बता रहे हैं कि उत्तर-पूर्व भारत के विकास और सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार क्या काम कर रही है, इसको बताने के लिए एक पुस्तिका का प्रकाशन भी हुआ है. पिछले दिनों यहाँ काफी ‘बंद’ हुए और तेल कम्पनी को भी इसके कारण काफी खामियाजा भुगतना पड़ा है. जून अभी आने वाले हैं, शाम को उन्हें बंगाली सखी के यहाँ जाना है, चाय पर बुलाया है. कल शाम को एक अन्य सखी ने रात्रि भोज पर बुलाया है. ‘नजर बदली तो नजारे बदले’, कितनी सही कहावत है यह. किसी के प्रति उनका दृष्टिकोण बदलते ही सामने वाला भी बदला सा नजर आने लगता है. यदि पहले कभी मित्रता रही हो तो वही पहले वाला प्रेम भरा. किसी के प्रति कभी भी कोई विपरीत भाव न जगे, क्योंकि एक का ही विस्तार है सब. एक के प्रति भीतर प्रेम जगे तो सबके प्रति उसकी खुशबू फ़ैल ही जाती है और उसमें प्रेम देने वाला स्वयं भी शामिल होता है. जगत के साथ उनका व्यवहार खुद के साथ के व्यवहार को ही झलकाता है. जब भी जगत के प्रति उनके मन में कोई भी निंदा का भाव जगता है, वे हर बार स्वयं को ही पीड़ित कर रहे होते हैं. भीतर की शाश्वतता का अनुभव जिसे हो जाये फिर वह बदलने वाले इस जगत को नहीं देखता, उसके पीछे छिपे अबदल ही देखता है, जो बदल ही रहा है, उसकी चिंता कब तक और क्यों ? जो अबदल है उससे ध्यान हटते ही पीड़ा व दुःख का संसार आरम्भ हो जाता है. उनके भीतर ही है शांति का वह परमधाम जहाँ अनंत सुख का साम्राज्य है !

नन्हे ने आज अपनी कम्पनी व कार्य के विषय में बहुत कुछ बताया. अगले कुछ वर्षों में वे अधिक लाभ प्राप्त करेंगे, अभी तो वे पैसा लगा रहे हैं, जो इन्वेस्टर ने लगाया है. वह अपने काम से संतुष्ट लगता है. सुबह उसकी मित्र से फोन पर बात हुई, वह इसी माह नन्हे को अपने पिता से मिलाएगी. वह कह रही थी कि उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी, उसे जरा भी अंदाजा नहीं है. चार बजने को हैं शाम के. अभी कुछ देर पूर्व अस्पताल से लौटी. आँख का दबाव सामान्य है. दस दिन बाद फिर जाना है. आंख के आगे एक काला घेरा सा दिखाई देता है. उसकी वजह से और कोई समस्या तो नहीं है फ़िलहाल. नन्हे ने पूसी के लिए दफ्ती का एक घर बना दिया है, पर वह उसमें कम ही टिकती है. कल ही वह वापस जा रहा है.

सुबह से लगातर वर्षा हो रही है. अभी-अभी धोबी आकर धुले सूखे कपड़े दे गया, ऐसे मौसम में भी वह अपना कर्त्तव्य पूरी तरह निभाता है, पुत्र की पढ़ाई को लेकर चिंतित है. उसे बीए के बाद एमए कराना है, क्या उसके बाद सरकारी नौकरी मिल जाएगी, क्या पढ़ाई कर लेने मात्र से ही मिल जाएगी ? ये उसके प्रश्न थे. नन्हे ने कहा, प्राइवेट नौकरी ही ढूँढनी पड़ेगी. आज लाओत्से पर ओशो के वचन सुने. अद्भुत वचन हैं उसके, ज्ञान जितना-जितना बढ़ेगा, पाखंड भी बढ़ेगा, होशियारी बढ़ेगी तो चालाकी भी बढ़ेगी. जब तक कोई द्वन्द्वों के पार नहीं चला जाता, उनसे मुक्त नहीं हो सकता. अच्छे बने रहने का आग्रह बुरे से पीछा छुड़ाने नहीं देता. आत्मा में रहकर मन के सारे द्वंद्व स्पष्ट दिखने लगते हैं. शिवानी भी कहती है, सतयुग में ज्ञान की, पूजा की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी क्योंकि अज्ञान ही नहीं होगा. स्वभाव में टिकना आ जाये किसी को तो वह सुख-दुःख दोनों के पार निकल जाता है.    

5 comments:

  1. स्वागत व आभार !

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.8.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3079 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

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  3. बहत बहत आभार दिलबाग जी !

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