Wednesday, August 19, 2015

नोकिया का फोन


मई महीने का आरम्भ कितनी तेज धूप और गर्मी से हुआ है. दोपहर के एक बजने वाले हैं, आज जून ने उसे नोकिया का सेल फोन लाकर दिया, जो दिल्ली से एक मित्र द्वारा मंगवाया है. उसका गला अब काफी ठीक है.  पिछले दिनों जून ने उसका उसका बहुत ध्यान रखा, वह उसका हितैषी है. उनके प्रेम में कामना है वह स्वयं को जानते नहीं और अभी जो वे जानते हैं उसी को सत्य मानते हैं. कामना वैराग्य को दृढ़ होने नहीं देती. उसे गर्मी ने सताया तो एसी की आवश्यकता महसूस हुई. इसी तरह हर क्षण इस शरीर, मन को संतुष्ट करने के लिए कितने ही साधनों की आवश्यकता होती है. अपनी क्षमता के अनुसार हर कोई उसकी पूर्ति भी करता है. बस इसी में सारा जीवन चला जाता है. परमात्मा की ओर बढ़ते कदम वहीं थम जाते हैं और जगत की चकाचौंध में खो जाते हैं. सुख की तलाश में वे सुख के स्रोत को ही भूल जाते हैं. उसका जीवन एक शांत धारा की तरह अनवरत बह रहा है, इसकी मंजिल प्रभु है, इसका जल आत्मज्ञान है. उसके भीतर की शांति अखंड है, सभी कामनाओं से परे !  

उसका मोबाइल फोन काम करने लगा है, अभी उसे बहुत कुछ सीखना है, sms करना, game खेलना उसमें प्रमुख है. जून आज दिल्ली चले गये, उन्हें मलेशिया जाना है अगले हफ्ते. नन्हे के आने तक उसे अकेले रहना है. उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दो व्यक्ति. यह सही है कि माँ-पिता के बिना तो भौतिक अस्त्तित्व इस देह में होना कठिन है, माँ जाने कहाँ होंगी, जहाँ भी होंगी, अवश्य ही प्रसन्न होंगी. पिताजी से परसों ही बात हुई, उन्हें ख़ुशी है कि वे शीघ्र ही उनसे मिलने जायेंगे. जून को उसने जानबूझ कर कभी भी दुखी करना नहीं चाहा, पर अनजाने में वह उसके कारण बहुत दुखी हुए हैं. वह दिल से पश्चाताप करती है और उनके प्रेम का आदर भी. जून के मन में उसके लिए बहुत प्रेम है, वह शरीर, मन, बुद्धि से परे जा नहीं पाये हैं सो नूना की बातें उनकी समझ में नहीं आतीं, पर वह उनके प्रति कृतज्ञता अनुभव करती है. उनके कारण ही उसकी साधना तीव्रतर हुई है. जो भी अनुभव उसे हुए हैं, उसमें उनका बहुत योगदान है. उसने प्रार्थना की कि उसके अंतर की शुभकामना उस तक पहुंचे. नन्हे को भी उसने मूर्खतावश दंडित किया होगा, पर उसके पीछे ममता रही होगी. उसे भी उसके जीवन में आकर मातृत्व प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत प्रेम.. और कोटि-कोटि प्रणाम उसके सद्गुरु को जिन्होंने उसे दूसरा जन्म दिलवाया !


आज से नन्हे की परीक्षाएं आरम्भ हो रही हैं, आज गणित की परीक्षा है जो उसे कठिन लगने लगा है. जून ने वीसा के लिए अप्लाई कर दिया है. योग वसिष्ठ में सत्य ही कहा गया है कि इस जगत में कुछ भी बिना पुरुषार्थ के नहीं मिलता और ऐसा कुछ नहीं जो पुरुषार्थ से न मिले. प्रमोद महाजन यह मानते थे कि जगत में कुछ भी पहले से तय नहीं किया गया है अर्थात वे स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं. उनकी मृत्यु आज बाहरवें दिन हो गयी, एक भाई के हाथों अपने भाई की नृशंस हत्या का यह मामला कितने सवाल उठाता है. ऊंचाई पर जाकर भी अपने परिवार को उपेक्षित नहीं करना चाहिए, पहले अपने इर्द-गिर्द के लोगों के चेहरे पर मुस्कान आए फिर दुनिया और समाज की चिंता कोई करे. लेकिन जो भी आगे बढ़ता है वह अपने पीछे कितनों को रुलाता ही है. हर वस्तु की कीमत चुकानी पड़ती है. यदि व्यक्ति हर समय सजग रहे तो वह सभी को साथ लेकर चल सकता है. आज क्लब में दो टॉक सुनने को मिलीं. प्लास्टिक का बढ़ता हुआ प्रकोप तथा अपनी सेहत के प्रति लापरवाही. एक डांस  का प्रोग्राम बेहद आकर्षक था तथा गीत भी. कल की तरह आज भी सोते समय कमरे के दरवाजों को अंदर से बंद करना उसके मन के भय को दर्शाता है. जहाँ भय है वहाँ प्रेम हो ही नहीं सकता और जहाँ प्रेम नहीं है वहाँ परमात्मा कैसे आ सकते हैं ! परमात्मा तो प्रेम से ही प्रकट होते हैं, तभी उसका मन सूना-सूना सा रहता है, आँखें मुस्कुराती नहीं, होंठ गाते नहीं, कदम थिरकते नहीं ! जैसे कुछ खो गया है, आज पता चला कि जो खो गया है वह और कहीं नहीं उसके ही मन में छुपा है, उस डर के पीछे, उस डर को निकाल दे तो वह उजागर हो जायेगा ! 

2 comments:

  1. बहुत बहुत आभार !

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  2. सच है कि जहाँ भय है वहाँ प्रेम नही हो सकता .पता नही कैसे कविवर ने लिख दिया --भय बिन प्रीति न होय ...शायद उनका अर्थ अनुशरण करने और अनुकूल होने से होगा

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