आज बाबाजी ने भारत के मनीषियों के मनोविज्ञान की चर्चा करते
हुए कहा, मन की यह विशेषता है कि वह एक साथ दो स्थितियों में नहीं रह सकता, जिस
क्षण वह संतुष्ट है, दुखी नहीं है और जिस क्षण वह तृप्ति का अनुभव नहीं कर रहा, सुखी
नहीं है. इस विशेषता का लाभ उठाते हुए यदि कोई दुःख में एक क्षण के लिए भी
मुस्कुरा दे तो सुख बरस जायेगा, और मुस्कुराना बेवजह मुस्कुराना उसकी आदत में
शामिल हो गया है. आज सुबह ऐसा लगा कि उसकी वाणी में रुक्षता आ गयी है पर सचेत थी
सो संभल गयी. जून भी कल रात को थोड़ा सा उद्ग्विन दिखे, यात्रा से आने के बाद पहली
बार, शायद गर्मी के कारण या नन्हे के देर तक क्लब में रह जाने के कारण. आज सुबह
नन्हे के पेट में दर्द था, वह ठीक से नाश्ता भी खाकर नहीं गया, लेकिन वह जानती थी,
बहादुर लड़का है, इस बात से छुट्टी नहीं लेगा. जून के साथ कल माँ के लिए साड़ी और
कुछ अन्य उपहार खरीदे.
सुबह पांच बजे उठ कर बाहर
आयी तो पूसी अकेली दिखी, उसने बच्चों को शायद कहीं शिफ्ट कर दिया है. आज भी
विद्वान् वक्ता ने अच्छी बातें कहीं, वह भाषाएँ भी कई जानते हैं. क्लब में children
meet होने वाली है, उसकी संगीत अध्यापिका बच्चों के साथ व्यस्त हैं. सो आज क्लास
नहीं होगी. अस्पताल जाने के लिए उसने जून को फोन किया, कई दिनों से ऊपरी अधर के
पास छोटा सा दाना उभर आया है, जो कितने उपाय करने से भी ठीक नहीं हुआ, अब डाक्टर
की राय लेना ही ठीक रहेगा. संभल-संभल के चलना है, व्यर्थ ही कल्पनाओं में भ्रमित
रहेंगे तो वर्तमान को कटु बना लेंगे. बीमारी का आगमन तभी होता है जब स्वास्थ्य के
नियमों का पालन नहीं करते.
आज सुबह नन्हा उठ नहीं रहा
था पर क्रोध नहीं आया, अच्छा लगा कि सहज शब्दों में उसे समझा सकी. जून का हृदय भी
उसके प्रति स्नेह से भरा है, उसकी हर छोटी-बड़ी आवश्यकता का ध्यान रखते हैं, ऐसे ही
ईश्वर भी उनकी हर तरह से सहायता करता है, उन्हें इतना कुछ दिया है, उसकी हर
छोटी-बड़ी मुश्किल में साथ देता है. और तब भी कृतज्ञता स्वरूप वह उसे अपना एकनिष्ठ
प्रेम नहीं दे पाती.
आज बाबाजी ने फटकार लगायी,
बारह साल कोल्हू के बैल की तरह एक ही जगह चक्कर लगाते रहें ऐसे भक्त उन्हें नहीं
चाहिए, जो सातत्य भक्ति कर सकें, यात्रा पूरी करने का सामर्थ्य रखते हों वही इस
क्षेत्र में आयें. कल रात को वह बेचैन थी, मन को एकाग्र रखने का प्रयास व्यर्थ
हुआ, शायद उसमें श्रद्धा की कमी है, या वह कई मार्गों पर एक साथ चलने का प्रयास
करती है तभी भटक जाती है. आज से वह निश्चित कर लेती है, ‘भगवद् गीता’ उसका इष्ट ग्रन्थ
है, इसके अतिरिक्त वह किसी ग्रन्थ का अध्ययन फ़िलहाल अभी नहीं करेगी. कृष्ण ही उसके
प्रेम का केंद्र होंगे. रास्ता एक हो उसका ज्ञान हो तो मंजिल शीघ्र मिल सकती है.
गीता में भगवान ने स्वयं कहा है, एकनिष्ठ व संशय रहित होकर जो उन्हें भजता है उनके
कुशल क्षेम का ध्यान वह स्वयं रखते हैं. प्रभु जिसके राखनहार हों उसे अन्य किसी से प्रयोजन भी
क्या हो सकता है. कल क्लब में छोटे-छोटे बच्चों को इतनी मधुरता से गाते देखकर
अच्छा लगा, संगीत में जादू है और फिर संगीत से कोई आराधना भी कर सकता है. कल
अध्यापिका ने ‘तीसरी कसम’ फिल्म का एक गीत सिखाया. सजन रे झूठ मत बोलो...मुकेश का
गाया यह गीत उसने बचपन में कई बार सुना था.
आज ‘भारत बंद’ के कारण नन्हे
का स्कूल बंद है, नूना ने उसे गृह कार्य करने को कहा, पर वह दूसरे-दूसरे कार्यों
में व्यस्त है. कभी कभी बच्चे माता-पिता के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए ही जैसे
उनका कहा नहीं सुनते.
सबसे पहले तो आज इस डाकटिकट की तस्वीर देखकर मुझे याद आया कि यह डाकटिकट मेरे वॉलेट में लगभग ग्यारह साल तक पड़ा था. मुकेश के प्रति मेरे प्रेम के प्रतीक स्वरूप. और यह गाना तो बिहार की पृष्ठ भूमि से जुड़ा है तो मुझे प्यारा होगा ही.
ReplyDeleteमन दो जगहों पर एक साथ दो स्थितियों में नहीं रह सकता यह तो सही है, लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि आप जिस स्थान पर होते हो आपका मन कभी उस स्थान पर नहीं होता (अपवाद हो सकते हैं).
एक जगह उसने कहा है जून के लिये - "और तब भी कृतज्ञता स्वरूप वह उसे अपना एकनिष्ठ प्रेम नहीं दे पाती." यहाँ जाने क्यों मुझे "कृतज्ञता" और "एकनिष्ठ प्रेम" की व्याख्या दरकार हो रही है! थोड़ा स्पष्टीकरण, तभी अपनी बात कह सकूँगा!
गीता मेरा भी इष्ट ग्रंथ है और आज भी बिना उसके मैं सो नहीं पाता! भगवान कृष्ण का मनोविज्ञान चमत्कृत करता है!
Mere jeevan ki Kahani.... http://swayheart.blogspot.in/
ReplyDeleteसही कहा है आपने जहाँ हम होते हैं मन नहीं होता, ध्यान में यही तो करना होता है कि मन को बार बार वहीं लौटा लाया जाये जहाँ कोई खुद है.
ReplyDeleteकृतज्ञता का अर्थ उसके लिए इतना ही था कि जितना ध्यान उसका जून ने रखा है, उसका प्रतिदान नहीं दे पाई, आपका प्रेम पात्र यदि खुश नहीं है इसका अर्थ यही है कि आपका प्रेम उसे नहीं मिल रहा है, नूना को अपनी इच्छा को ऊपर रखकर जून की किसी इच्छा को नकार देना भी ऐसा ही लगा कि उसका प्रेम एकनिष्ठ नहीं है. फिर प्रियपात्र की कमियां देखना भी प्रेम की कमी है.
गीता के प्रति आपका भाव जानकर ख़ुशी हुई.