कल वे अपने परिचित दम्पत्ति
के साथ चाय बागान गए, फोटोग्राफी की. सड़क के दोनों ओर ढलान पर लगे टी गार्डन यहाँ
बहुतायत में हैं, पहले भी कई बार वे इन्हें देखने गए हैं पर उनके मध्य जाकर पहली
बार चित्र उतारे. वह लिख रही थी कि पड़ोसिन ने आवाज दी, वह चावल की फुलवड़ी बनाने
में उसकी मदद चाहती थी. कल शाम उसने इडली बनायी थी दो परिवारों को बुलाया था.
नन्हा बहुत समझदारी भरी बातें कर रहा था, सभी उसकी प्यारी बातें सुनकर हँस रहे थे.
उसे अब डांटने की जरूरत नहीं पड़ती बातों को समझने लगा है व खुद की बात भी समझा
देता है.
आज सुबह वे जल्दी उठे थे, पर विडम्बना यह थी कि जून को सुबह फ्लाईट पकड़नी थी,
इसलिए वे जल्दी उठे थे. कल दोपहर ढाई और तीन बजे के मध्य यह हृदय विदारक समाचार
मिला कि जून का छोटा भाई सभी को छोड़कर चला गया. मानव मन भी कितना मजबूत होता है,
बड़े से बड़ा आघात भी वह सह लेता है, नहीं तो यह लिखते समय उसके हाथ कांप रहे होते.
कल जून ने कैसे इसे झेला होगा, किस तरह दिल पर पत्थर रखकर वह गया है, यह सिर्फ वही
जान सकता है. कल रात भर वह सो नहीं सका.
आज सुबह नन्हा सिसकियाँ भरता हुआ उठा, पापा कहाँ हैं ? यह उसका पहला सवाल था,
किस तरह मुँह बना-बना कर अंदर ही अंदर रुलाई पी रहा था वह, जाने उसने सपने में
क्या देखा था. बाद में बोला पापा पिक्चर में गए हैं, जब उसने कहा कि वह बनारस गए
हैं दादी, बुआ को लाने. कल दिन भर किसी न किसी के आते रहने से पता ही नहीं चला शाम
कब हो गयी. खाना भी बन कर आ गया था, आज भी सब्जियां भिजवायीं हैं उसकी एक परिचिता
ने. ये सब लोग न होते तो जून और वह कितने अकेले पड़ गए होते. जून घर पहुँच गए
होंगे, उसने सोचा, उनका टेलीग्राम कब मिलेगा उसे, शायद कल ही मिले. नन्हा कल दिन
भर सोया ही नहीं. आज सोया है.
आज उसे गए तीसरा दिन है, आज तो तार जरूर आना ही चाहिये. वहाँ जाकर वह माँ-पिता
को सम्भालने में लग गया होगा, उसे याद तो रहा होगा पर वक्त कहाँ मिला होगा. पता
नहीं वे लोग कैसे होंगे, हर वक्त यही ख्याल आता है दिमाग में, जब भी कोई मिलने वाला
आता है, सहानुभूति दिखाता है दुःख जैसे और स्पष्ट हो जाता है. कल शाम को मिला देवर
का पत्र व कार्ड पढ़कर तो वह आँसू रोक ही नहीं पायी. दो हफ्ते पहले उसने पोस्ट किया
था वह पत्र. पता नहीं क्या करने गया था वह गुजरात. हँसता गाता कोई इंसान ऐसे देखते-देखते
चला जाय तो कैसा लगता है.
कल वह कुछ नहीं लिख पायी. सुबह पांच बजे होंगे, नींद खुली तो मालूम हुआ कि कमर
में हल्का दर्द है, उठी अलमारी खोली और फिर अचानक आँखों के सामने जैसे अँधेरा छा
गया, दिल घबराने लगा, वह बैठ गयी फिर दो मिनट बाद उठकर बिस्तर पर गयी बेहद दर्द और
कमजोरी महसूस हो रही थी, पता नहीं कितनी देर लेटी रही, फिर धीरे-धीरे दर्द कम होता
लगा, नन्हा नींद में आकर उसकी बाँह पर सो गया और उसे लगा उसी क्षण से दर्द कम कम हो
रहा था. दोपहर को आने वालों का सिलसिला शुरू हुआ, न ही कल ही न आज ही कोई समाचार
मिला. वह चार दिन बाद जायेगी एक परिचित दम्पत्ति के साथ. देवर नहीं है अब धीरे-धीरे
मन ने इस बात को स्वीकार कर लिया है.
कभी-कभी ज़िन्दगी भी कैसी मजबूरी बन जाती है !
ReplyDeleteप्रतिभा जी, आपने सही कहा है..कभी कभी दुःख बहुत बड़ा होता है
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