Monday, September 7, 2020

संसार वृक्ष

 संसार वृक्ष 

आज वे घर वापस आ गए हैं. दिन में तेज वर्षा हुई, उस समय वे कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए आश्रम के शंकरा हॉल में बैठे थे, कवि सम्मेलन अच्छा रहा, जून ने उसकी कविता रिकार्ड भी की.  वहां से बद्रिकाश्रम विशाल में गए, जहाँ गुरूजी से भेंट करने के लिए प्रतीक्षा की. शाम को एक अन्य कक्ष में उनसे मिलवाने ले जाया गया. सुबह से ही गुरूजी अति व्यस्त थे. दर्शन लाइन में सभी से मिलने में उन्होंने घण्टों लगाए थे. उसके पूर्व वे रूद्र पूजा में बैठे थे. शाम को भी मिलने वालों का ताँता लगा रहा. गुरुद्वार पर हर कोई कुछ न कुछ मांग लेकर जाता है, पर जब उसकी उनसे भेंट का वक्त आया, उसने कहा, गुरूजी आप असम आये थे, उन्हें शायद भूल गया हो,  हजारों जगह वह जाते हैं. कोई जवाब देते इसके पूर्व दो लड्डू दिए तब तक पीछे वाली साधिका आगे आ गयी थी. बाद में सभी को एक साथ सम्बोधित किया तो कहा, शुभ विचारों को जितना हो सके लिख कर फैलाना चाहिए, वापस जाकर उसे ब्लॉग्स पर लिखना फिर आरम्भ करना है. आश्रम में बिताये ये तीन दिन उन्हें सदा प्रेरणा देंगे कि मन को संकीर्ण न बनाएं, दृष्टिकोण विशाल हो और मन व्यर्थ के चिंतन से मुक्त रहे. उनका हर नकारात्मक विचार उनके ही विरुद्ध उठाया गया एक शस्त्र होता है और हर सकारात्मक विचार ऊपर चढ़ने के लिए एक सीढ़ी। लक्ष्य है निर्विचारिता... जहाँ चेतन सत्ता सहज ही अपने आप में टिकी होती है. यह जगत एक खेल है और आज तक जो भी उनके साथ घटा है एक स्वप्न से अधिक कुछ नहीं. भगवद गीता का पन्द्रहवां अध्याय भी कहता है कि इस संसार वृक्ष को असंगता की दृढ़ तलवार से काटना है, विचार करने पर इसकी असलियत सामने आ जाती है. यहां से किसी सुख की आशा करना पानी से मक्खन निकलने जैसा व्यर्थ प्रयास है जिसमें श्रम भी होता है और कुछ हाथ भी नहीं आता. शनिवार को उन्हें गृह प्रवेश की पूजा करवानी है , नन्हे ने पंडित जी से बात कर ली है. 


रात्रि के आठ बजे हैं. आज भी दिन भर नए घर में  बीता, कोई न कोई हर घंटे आता  रहा. नन्हा आज जल्दी आया गया है, कह रहा है, कल दिन  भर वह व्यस्त रहेगा. विदेश से कोई टीम आ रही है जिसे उनकी कम्पनी में इन्वेस्ट करने के लिए एक प्रेजेंटेशन देना है, फिर अपने क्लाइंट से मिलाने ले जाना है. सुबह सात बजे उसे दफ्तर पहुँचना है और रात को दस बजे लौटेगा. आज रात को तैयारी भी करनी है, यानि नींद मुश्किल से तीन या चार घंटे की ही हो पायेगी. उसे लगा आज के ये युवा  आधुनिक तपस्वी हैं और देश के विकास में इनका भी हाथ है. आज दोपहर को एसी भी आ गया. जो दो व्यक्ति उसे लेकर आये थे, जून ने उनसे कहा कि ऊपर पहुँचा दें. एक मंजिल तक तो वे ले गए पर इतनी भारी यूनिट को जब दूसरे तल्ले पर ले जाने को कहा तो मना कर दिया. जून को क्रोध आ गया, पर थोड़ी ही देर में वह शांत हो गए और अपनी भूल का उन्हें अहसास भी हो गया. उसने देखा है, नन्हे को कितने ही व्यक्तियों से ना सुननी पड़ता है पर वह शांत बना रहता है. आज व्हाट्सएप पर कवि सम्मेलन की तस्वीरें आयी हैं, गुरूजी के साथ उसकी एक तस्वीर है, कविता पाठ करते हुए भी, कितनी मधुर स्मृतियाँ हैं  ये ! आज नैनी भी आयी थी, नन्हे ने कितने ही सामान मंगवाए हैं,  जिनके ढेर सारे खाली कार्टन आदि उसने बाहर रखे. नयी सीढ़ी भी आ गयी है और आयरन टेबल भी. 


....वह कालेज गयी थी परीक्षा का प्रवेश पत्र लेने, पर नहीं मिला था, अगले दिन फिर गयी, केवल तीन दिन रह गए हैं पहले पेपर में. उस दिन प्रवेश पत्र मिल गया, अब किताबें और किताबों के बीच उसका मस्तिष्क ! वापसी में कितनी तेज हवा चल रही थी, धूल भरा अंधड़ उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता. बस में किसी के पास रेडियो था. ‘चलते चलते यूँ ही कोई मिल गया था’, आल इंडिया रेडियो से यह गाना बजना शुरू हुआ था कि सूचना आयी, किसी कारण वश यह गाना आपको नहीं सुनवा सकेंगे, यह आवाज सुनाई दी. कोफ़्त हुई बेहद पर इसके बदले जो गीत बजा वह था, मेरी याद में तुम न आँसूं बहाना, मुझे भूल जाना.. हँसी आ गयी खन से ! 


आगे पढ़ा ... आज पहली अप्रैल है, ग्रीष्म ऋतु की शुभारम्भ बेला या दिवस. कल रजाई नहीं ली, और आज से सर्दी को रोकने वाली इस मोटी मैक्सी को छुट्टी और स्वेटर, स्कार्फ को भी. वह इतनी भद्दी दिखती है कि कोई जब कह देता है आज उसके वस्त्र अच्छे लग रहे हैं तो उसे लगता है कि वह स्वयं को सांत्वना दे रहा है. आज उसे यह पढ़कर सहानुभूति हो रही है उस उम्र की लड़कियों के प्रति, स्वयं के प्रति इतनी कठोरता.. अपनी मूर्खता पर भी उसे उन दिनों बहुत भरोसा था. 


3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-09-2020) को   "दास्तान ए लेखनी "   (चर्चा अंक-3819) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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  2. बहुत बहुत आभार !

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  3. आदरणीया अनिता सचदेव जी, नमस्ते! संस्मरणात्मक अंदाज में सुंदर प्रस्तुति! साधुवाद!--
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    सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

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