आज घर से आये छोटी बहन के खत ने तो नूना को रुला ही दिया. कितनी पुरानी यादें ताजा हो गयीं एक क्षण में ही. उसने सोचा वह उसे एक कविता लिख कर भेजेगी. इस समय शाम के सवा सात बजे हैं, विविधभारती पर जयमाला कार्यक्रम आ रहा है. लता की आवाज में यह गीत कितना मधुर लग रहा है...कहीं दीप जले कहीं दिल...जून एक किताब पढ़ रहे हैं, अनारो, उसने भी पढ़ी थी, सशक्त है इसकी भाषा और प्रवाह युक्त भी बस पढ़ते ही चले जाओ, 'मुर्दों का टीला' भी पढ़ ली. आक्रोश उपजता है भीतर और विश्वास भी नहीं होता कि ऐसा भी होता है. आज सुबह उसे याद नहीं रहा कि नौकरानी छुट्टी लेकर गयी है, आराम से सब कुछ कर रही थी. दोपहर बाद ऐसी नींद आयी कि मोटरसाइकिल का हॉर्न भी सुनाई नहीं दिया. फिर शाम को वे लाइब्रेरी गए, धर्मयुग के तीन नए अंक थे, दक्षिणी ध्रुव पर गए एक भारतीय वज्ञानिक के संस्मरण पढ़े.
एक सामान्य सा दिखने वाला जीवन भी अपने भीतर इस सम्पूर्ण सृष्टि का इतिहास छिपाए रहता है, "यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे" के अनुसार हर जीवन उस ईश्वर को ही प्रतिबिम्बित कर रहा है, ऐसे ही एक सामान्य से जीवन की कहानी है यह ब्लॉग !
Monday, January 30, 2012
प्रेमचन्द की किताबें
प्रेमचन्द की बीस पुस्तकें लाइब्रेरी में आई हैं. हिंदी की पुस्तकों का यहाँ की लाइब्रेरी में आना एक सुखद घटना है उनके लिए, और आज ही वे प्रेमाश्रम व मानसरोवर(१) लाए हैं. उसने सोचा वह कल से पढ़ना शुरू करेगी. कल से माली काम करने लगा है, आखिर वह शुभ दिन आ ही गया पर पता नहीं कब उन्हें दूसरे मकान में जाना पड़े, डीएक्स टाइप मकान में, इस घर का नम्बर है सी ७६, यह उन्हें सदा याद रहेगा. कल प्रभा, दायीं ओर की पडोसन आयी थी, दो कहानियों पर चर्चा की, उसने कहा कि उनमें से एक कहानी पर वे लोग कभी फिल्म बनाएंगे. जून चाहता है कि वह मोटी हो जाये, ढेर से फल लाकर रखे आज, पर उसे लगता है वह कभी मोटी नहीं होगी, हाँ एक बार उस तरह ‘मोटी’ होकर देखना है, दोपहर को स्वप्न में कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ था.
Friday, January 27, 2012
मुर्दों का टीला
अभी कुछ देर पूर्व जून बाजार में आटा वापस कर के आया, यहाँ का नमी भरा मौसम, कुछ भी ठीक नहीं रहने देता, न आटा न दालें आदि, बहुत कम मात्रा में वे सामान खरीदते हैं. आज भी सुबह बारिश हो रही थी. गर्मी का नाम नहीं है. कल शाम वे किसी परिचित के यहाँ गए, उनकी पत्नी माँ बनने वालीं थीं, शायद आठवां महीना था, वह बहुत कृश लग रही थीं, उन्हें उस हालत में देखकर नूना को बहुत घबराहट हुई. घर आकर उसने यह बात जून से भी कही. खाना भी अच्छा नहीं बना, पर आम बहुत मीठा था, सो वे उसकी मिठास में खाने का स्वाद भूल गए. आज दिन में उसने ‘रांगेय राघव’ की पुस्तक ‘मुर्दों का टीला’ पढ़नी आरम्भ की है, अभी प्रस्तावना ही पढ़ पायी थी, गोगोल की कहानी पढ़कर तो उसे मजा ही आ गया. रुसी कहानियाँ उसे हमेशा से ही अच्छी लगती आयी हैं.
कल वे ‘फूल और पत्त्थर’ देखने गए, तभी हॉल में जून के किसी सहयोगी ने एक पत्र दिया, बड़ी बहन का पत्र पढ़कर बहुत अच्छा लगा, उसने सोचा कि यदि वह घर पर होती तो कुछ दिनों के लिये उन के पास रह कर आती. इस बार का धर्मयुग विचित्र वृतांत अंक है, इतवार को लाइब्रेरी सुबह के वक्त खुलती है उसने सोचा तभी पढेगी.
एक यादगार इतवार... कल रात नींद नहीं आ रही थी, सुबह देर से उठे कुछ भी समय पर नहीं हो रहा था, जून ऐसे में झुंझला जाता है पर जहाँ प्रेम हो वहाँ तनाव भी आने से डरता है. दोपहर तक सब कार्य हो गया. नूना को समझ नहीं आता कि इतने प्रेम के बावजूद कैसे वह कभी-कभी इतनी निष्ठुर हो जाती है उसके प्रति.
Tuesday, January 24, 2012
अगस्त की गर्मी
रात के नौ बजे हैं, आज सुबह से ही वह बिस्तर पर है. कल रात भर नींद नहीं आयी सो जून भी जगता रहा. हर तरह से वह उसका ख्याल रखता है. सुबह कफ सिरप लाकर दिया उसे कुछ आराम मिला. अब बुखार नहीं है, उसने सोचा यदि कल भी नहीं हुआ तो कल शाम तक वह बिल्कुल ठीक हो जायेगी. इस समय जून पड़ोसी के बुलाने पर उनके यहाँ भोजन करने गया है. नूना रेडियो पर पौने नौ बजे के समाचार सुन रही थी कि डायरी पर नजर गयी और वह लिखने लगी....कितनी कमजोरी आ जाती है बुखार के बाद और मुँह से लगातार पानी आता रहता है जो सबसे ज्यादा परेशान करता है उसे. दिगबोई जाने का यह परिणाम होगा जानती नहीं थी.
आज सोमवार है, कितने दिनों के बाद उसने डायरी उठाई है. बुखार शनिवार को उतर गया था, पर अभी पूर्ण रूप से स्वस्थ होने में तीन-चार दिन और लगेंगे. इस समय वह दोपहर के समाचार सुन रही है. राजस्थान की सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव, मुख्य मंत्री की नौका डगमगाने लगी है. पिछले हफ्ते जून ने बहुत ध्यान रखा, ऐसा बस वही कर सकता था, और कोई नहीं, नूना ने सोचा. आज भी जल्दी आ गया था सहायता करने. जब कि उसे कुछ करने को था ही नहीं. टालस्टाय की लिखी पुस्तक पूरी पढ़ ली है और उससे पूर्व पढ़ी स्वेतलाना की लिखी पुस्तक भी बहुत रोचक थी.
अगस्त मासे प्रथम दिवस ! गर्मी की शुरुआत, पिछले दो दिनों से वर्षा नहीं हुई, वातावरण गर्म हो उठा है और रात रेडियो पर सुनी वह खबर, संसद ललित माखन तथा उनकी पत्नी की हत्या, कितना बेबस है इंसान क्रूरता के आगे. आज वह पूरी तरह स्वस्थ अनुभव कर रही है. पिछले माह की तरह खुद से वादा किया कि अब से नियमित लिखेगी. आजकल सुबह का नाश्ता वह बनाती है. जून की बातें, उसके स्नेह पर बरबस मुस्कान खिल जाती है. उसकी अस्वस्थता में दिन-रात एक कर दिये थे उसने. आज उसके कहने पर मटर पुलाव बनाया, उसे अच्छा लगा और नूना को यह जानकर अच्छा लगा.
Monday, January 23, 2012
दिगबोई में पिकनिक
आज भी सुबह हल्की फुहार पड़ रही थी. सुबह के नौ बजते बजते बंद हो गई, इसी वक्त वह लिखती है. आज विविध भारती पर गीत भी लगा लिये हैं, यहाँ आने के बाद पहली बार, विवाह पूर्व बिना रेडियो पर गाने सुने कोई दिन नहीं बीतता था. आज शनिवार है, साप्ताहिक खत लिखने का दिन, किताब पढ़ने का और दूर तक घूमने जाने का, क्योंकि शनिवार को जून का हाफ़ डे होता है, यानि आधी छुट्टी सारी...बचपन में स्कूल में वे ऐसे ही कहा करते थे. आज सुबह उसे फील्ड ड्यूटी पर कथलगुडी जाना है.
इतवार को वे पिकनिक पर गए, सुबह उठे तो मौसम ठीक था. वे पूरे एक दर्जन थे यानि छह जोड़े. सभी उन्हीं के घर पर एकत्र हुए फिर चले अपनी-अपनी बाइक पर, उनका गंतव्य था दिगबोई तेल क्षेत्र. तेल क्षेत्र में प्रवेश नहीं मिला पहले से अनुमति लेनी पड़ती है, वे दिगबोई गोल्फ क्लब जाने के लिये मुड़े ही थे कि तेज वर्षा होने लगी. नूना भी सभी के साथ बिल्कुल ही भीग गयी. रास्ते में एक झोपड़ी में पनाह ली पर कोई लाभ नहीं हुआ, वर्षा बहुत तेज थी. ठंड के कारण भी सिहरन हो रही थी. गले में भी चुभन होने लगी. किसी तरह क्लब पहुँचे और गैस चूल्हे के सामने कपड़े सुखाये. शाम को साढ़े पांच बजे वे घर लौटे.
पिकनिक से लौट कर वे शाम को जल्दी सोने चले गए. थकान भी थी और तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. नूना सुबह उठी तो लगा अब ठीक है. आराम करने की हिदायत देकर जून तो कार्यालय चला गया. उसका कुछ भी करने को मन नहीं हुआ.. नमक पानी से गरारा भी नहीं, थोड़ा ताप भी था दस बजे उठी, खाना बनाया. सारी दोपहरAnnie Jeagen की किताब पढ़ती रही, बहुत भायी, बहुत महान थी वह और महानतर था उसका लक्ष्य. पढ़ते-पढ़ते लगा कि कभी-कभी वह कितना अन्याय करती है उसके प्रति अर्थात अपने प्रति. वह हर तरह से उसे खुश रखता है, आज भी दो बार देखने आया, वे अस्पताल भी गए. अब ताप कम है, रात को सोते वक्त नूना ने सोचा कि सुबह तक वह बिल्कुल ठीक हो जाये तो कितना अच्छा हो, अस्वस्थ होना कितना खलता है अब, जून को सुबह का बचा भोजन ही खाना पड़ा.
मृत्यु या विरह के भय बोध
इसी महीने की अंतिम तिथि को छोटी बहन का जन्म दिन है. उसका बचपन भी याद है, देखते देखते कितनी बड़ी हो गयी नूना ने सोचा वह उसे जन्म दिन का कार्ड भेजेगी और खत भी लिखेगी. इस रविवार को वे दिगबोई जायेंगे, यदि मौसम ने साथ दिया. आज सुबह से वर्षा हो रही है. सुबह देर से उठे पर जून इतनी जल्दी तैयार हो गया, वह सभी काम बहुत शीघ्रता से करता है. वर्षा थमी तो हवा और बादलों को देख कर घर में बंद रहना संभव नहीं हुआ तो नूना सामने वाली पड़ोसिन के यहाँ गयी उनका एक वर्ष का बेटा बहुत प्यारा है और चार वर्ष की बेटी उतनी ही बातूनी.
रात्रि के साढ़े नौ बजे हैं, जून जूते पोलिश कर रहा है, बहुत अच्छा समय चुना है उसने इस काम के लिये. आज घर से पत्र आये हैं, भाई ने होने वाली पत्नी को पत्र लिखने को कहा है पर नूना को समझ नहीं आता कि वह क्या लिखे.
...सँग चलने को तेरे कोई हो न हो तैयार, हिम्मत न हार, चल चला चल अकेला चल चला चल...आज उन्होंने ‘फकीरा’ फिल्म देखी. उसी का गाना नूना को याद आ रहा था. फिल्म देखकर मन पर छाया अवसाद छंट गया सा लगता था. दोपहर को उसने जिस तरह कहा, नूना खुश रहा करो..हमेशा खुश. उससे वह अभिभूत हुई थी. उसके प्रेम की थाह पाना मुश्किल है. असीम है उसका प्रेम नूना के प्रति. आज सुबह उसका मन अच्छा नहीं था, तबीयत भारी लग रही थी. सो गई. जून जल्दी आ गया, उसने खाना बनाने में सहायता की. पर वह एक पत्र लाया था. जिसमें एक जीवन के जिसने अभी संसार में पदार्पण ही किया था, अनुभव नहीं था जिसे जीवन की गहराइयों का, उसके समाप्त होने की खबर थी. दुःख तो हुआ ही पर सदा की तरह ऐसे वक्त उत्पन्न होने वाला वैराग्य नहीं था, बल्कि जीवन के प्रति लगाव और गहरा हो गया हो जैसे. कल्पना भी दुसहः लगती है कि उन दोनों के मध्य कोई और भी आ सकता है... मृत्यु, विरह. नहीं यह निराशा वादी विचार है, जीवन आशा का दूसरा नाम है. नूना ने घड़ी देखी, उसे लगा अब देर हो रही है, वह भी वहीं बैठा था जमीन पर उसके साथ.
Thursday, January 19, 2012
हिंदी देश की पहचान
आज कितने दिनों बाद धूप निकली है, अचार को धूप दिखानी कितनी जरूरी है, फंफूदी लगने जा रही थी. नूना ने खत लिखे, दोपहर को पड़ोसिन आयी थी उसे पर्दे सिलने थे. वह गयी तो फिर से वर्षा होने लगी, वे टहलने भी नहीं जा सके. आकाश पर जो बादल थे वह मन पर भी छा गए, मौसम का कितना असर मन पर होता है, तब जून ने हँसाया उलटी सीधी हरकतें करके.
आज घर का काम जल्दी निपट गया है, अब नूना को कुशन कवर व चेयर बैक सिलने हैं, फिर वह उन पर फूल काढ़ेगी. टीवी पर सुना कनिष्क विमान दुर्घटना की अदालती जाँच होगी, अभी तक ब्लैक बॉक्स को खोला नहीं गया है. कानून की यह गुत्थियां उसे समझ नहीं आतीं. राजीव गाँधी का भाषण ही आज के समाचार का मुख्य भाग था, उन्होंने कहा कि नेहरू और इंदिरा की भाषा नीति में जरा भी परिवर्तन नहीं किया जायेगा, उसे अच्छा नहीं लगा. आजादी के बाद भी हम अंग्रेजी को सम्मान तथा हिंदी को हेय दृष्टि से देखते हैं, ऐसा क्या हमेशा होगा....उसने सोचा.
Tuesday, January 17, 2012
बूंदाबांदी
कल बड़े मजे की बात हुई, महरी जब काम करके चली गयी, पांच-दस मिनट कुछ छोटा-मोटा काम करने के बाद नूना ने घड़ी की ओर देखा तो दस बजे थे, सो रोजाना की तरह खाना बनाने रसोई में गयी. एक घंटे बाद खाना बना कर कमरे में आयी तो फिर दस बजे थे. घड़ी देखी, चल रही थी तो इसका अर्थ हुआ कि पूरा एक घंटा पहले उसने भोजन बना दिया था. उस समय नौ ही बजे थे. जून भी सुनेगा तो हँसेगा. आज वर्षा नहीं हो रही है पर गर्मी नहीं है, जुलाई में भी कल रात ठंड थी, चादर लेकर नहीं सोयी थी सो ठंड के कारण नींद नहीं आ रही थी, फिर मन सपने देखने लगा, कहाँ- कहाँ के सपने. कल लाइब्रेरी में धर्मयुग के दो नए अंक दिखे, सारिका पढ़े कितने दिन हो गए हैं. उसके आने में अभी वक्त है सो टाल्सटाय की पुस्तक पढ़ने का उपयुक्त समय है.
कल प्रेमगीत फिल्म देखी, बड़ी हँसी आयी, हँसी आयी सो फिल्म देख कर ही उठे. संगीत अच्छा था, यही बात फिल्म के पक्ष में जाती है. आज वह फिर भीग कर आया था, जबकि नूना को मना करता है भीगने से.
आज भी वर्षा का ही साम्राज्य रहा, लाइब्रेरी गए तो भीगते हुए और लौटे तब भी बूंदाबांदी हो रही थी. घर पर भी वर्षा होती होगी, रसोई से कमरे तक जाने में माँ भीग जाती होंगी.
Monday, January 16, 2012
इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
सुबह के सवा नौ बजे हैं, आधा घंटा पूर्व नूना सूखने के लिये कपड़े तार पर फैला कर इस कमरे में आयी थी. गीता खोली पढ़ने के लिये पर मन नहीं लगा, पता नहीं क्यों कभी-कभी मन बेवजह ही उदास हो जाता है. बाहर लॉन में दो कर्मचारी फेंसिंग ठीक कर रहे हैं. मिल्क कुकर आवाज दे रहा है, दूध उबल गया है. कल रात कितने स्वप्न देखे, शाम को एक वर्ष पहले लिखी चिठ्ठी पढ़ी. एक वर्ष में कितना कुछ बदल गया है. प्यार का उमड़ता वह समुद्र अब शांत गहरे जल में बदल गया है. क्यों, कैसे, कब, क्या हो जाता है, क्या छूट जाता है, कुछ समझ नहीं आता. सत्य को स्वीकारना होगा. यही कर्त्तव्य है और कर्त्तव्य से भागना नहीं चाहिए. खुले मन से यदि सब कुछ जैसा है वैसा ही स्वीकारें तो...कितना अच्छा हो.
अब दोपहर के तीन बजे हैं, नूना खुशवन्त सिंह की पुस्तक पढ़ती रही दोपहर भर. आँखें थक गयी हैं. अभी सूजी का हलवा बनाना है शाम के नाश्ते के लिये. कल क्लब में ‘आनंद’ फिल्म देखी, बाहर निकले तो आकाश में इंद्रधनुष था, कितना सुंदर लगता है इन्द्रधनुष, यहाँ उसे रामधेनु कहते हैं. जब भी इसे देखती है बचपन में पढ़ी कविता याद आ जाती है, when I behold a rainbow in the sky my heart leaps up….
Sunday, January 15, 2012
कुकर का वाल्व
कल शाम उन्होंने एक फिल्म देखी सारांश, कुछ दृश्य तो इतने भावपूर्ण थे कि महीनों तक याद रहेंगे. हेड मास्टर का रोल करने वाला अभिनेता, लड़की, और पार्वती सभी तो इतने सशक्त थे. उसके पहले वे मोटरसाइकिल पर घूमने गए, जून बहुत अच्छी तरह चलाना सीख गया है. लाइब्रेरी में साप्ताहिक धर्मयुग में राजीव-सोनिया के इंटरव्यू पढ़े, बहुत रोचक थे. नूना के छोटे भाई की शादी तय हो गयी है, उन्हें पूजा की छुट्टियों का कार्यक्रम बदलना होगा, दिसम्बर में विवाह है, पूरे दस महीनों के बाद वह घर जायेगी सबसे मिलकर बहुत खुशी होगी. बाहर लॉन में एक छोटे कद का सरदार लड़का घास काट रहा है, अभी उन्हें पूर्णकालिक माली नहीं मिला है. आज दूधवाला ज्यादा दूध दे गया है आइसक्रीम बनानी है.
आज सुबह भी पिछले दिनों की तरह नूना ने रोजमर्रा के कार्य किये, आँख में हल्का दर्द हुआ तो लेट गयी और फिर नींद खुली पौने ग्यारह बजे, ग्यारह बजे भोजन का समय है जब वह घर आता है, कल शाम कुकर का वाल्व भी उड़ गया था, दाल पतीले में बनानी थी, पूरे चालीस मिनट लगे, जून आते समय वाल्व ले आया था. उसने कुकर में लगा दिया है. कल वह भीग कर आया था तब पूर्णिमा, पड़ोस में रहने वाली लड़की यहीं बैठी थी, उसने दो पौधे लाकर दिये व अपने पेड़ के जामुन भी. उसने बताया कि कैसे वह अपने भाई को बिना बताए फिल्म देखने जाती है चुपके-चुपके अपनी सहेलियों के साथ.
Friday, January 13, 2012
बिजली का जाना
सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, अभी-अभी रेडियो श्रीलंका से 'हफ्ते के श्रोता' कार्यक्रम समाप्त हुआ है. परमार जी अच्छी तरह प्रस्तुत करते हैं, यूँ तो सभी एनाउंसर अच्छे हैं. कितनी गर्मी हो गयी है. नूना कपड़े प्रेस कर रही थी कि बिजली चली गयी, ऐसा यहाँ कभी कभार ही होता है, शायद दूसरी या तीसरी बार ही हुआ है. कल शाम एक दक्षिण भारतीय जोड़ा आया, कुछ सप्ताह पूर्व ही उनकी शादी हुई है. उनके साथ नाश्ता किया सो रात को सिर्फ दलिया ही बनाया. पिछले दो तीन दिन से रोज रात को स्वप्न में सभी परिवार जनों को देखती है नूना.
वर्षा की झड़ी लगी हुई है, रिमझिम बरसता पानी नूना को बहुत बाता है और जून को भी. आज शनिवार है. अगर दिन भर यूँ ही पानी बरसता रहा तो कितना अच्छा होगा. कल वे एक हिंदी फिल्म देखने गए तब भी वर्षा हो रही थी, नूना थोड़ा सा भीग भी गयी, फिल्म उदासी भरी थी, शोषण का घृणित रूप दिखाया गया था फिल्म में. कल घर से पत्र भी आया, कितना सुख देते हैं पत्र पढ़ने वाले को. जून की बांह में पिछले दो-तीन दिनों से दर्द था, वह आज भी डॉक्टर के पास नहीं जा पाया होगा. नूना ने सोचा वह उसका ज्यादा ख्याल रखेगी. उसे सूप पीना पसंद है, सो वह आलू-परवल-टमाटर का सूप बनाएगी.
वर्षा की झड़ी लगी हुई है, रिमझिम बरसता पानी नूना को बहुत बाता है और जून को भी. आज शनिवार है. अगर दिन भर यूँ ही पानी बरसता रहा तो कितना अच्छा होगा. कल वे एक हिंदी फिल्म देखने गए तब भी वर्षा हो रही थी, नूना थोड़ा सा भीग भी गयी, फिल्म उदासी भरी थी, शोषण का घृणित रूप दिखाया गया था फिल्म में. कल घर से पत्र भी आया, कितना सुख देते हैं पत्र पढ़ने वाले को. जून की बांह में पिछले दो-तीन दिनों से दर्द था, वह आज भी डॉक्टर के पास नहीं जा पाया होगा. नूना ने सोचा वह उसका ज्यादा ख्याल रखेगी. उसे सूप पीना पसंद है, सो वह आलू-परवल-टमाटर का सूप बनाएगी.
Wednesday, January 11, 2012
लॉन में हरी घास पर
अभी कुछ देर पहले कम्पनी के दो कर्मचारी दो खिड़कियों के शीशे लगा कर गए हैं, कमरा फिर से गंदा हो गया है. शीशे के टुकड़े बिखरे हैं और धूल भी, पर उसे साफ करने का नूना का मन नहीं होता, थोड़ी थकान सी लग रही है. कल की तरह आज भी उसने लॉन में कुछ देर घास काटी, चार-पांच दिन लगातार काटने से सब कट जायेगी, जरा भी मुश्किल नहीं है यह काम. अभी तो लॉन कैसा बेतरतीब लगता है, पता नहीं वह कौन सा शुभ दिन होगा उसने सोचा, जब एक अदद माली यहाँ काम करने लगेगा. आज बहुत दिनों बाद सुबह-सुबह आसमान स्वच्छ है पर धूप भी तेज नहीं है. कल दिन भर बादल छाये रहे. वे दोनों एक किताब पढ़ रहे हैं साथ-साथ खुशवंतसिंह की Indira Gandhi returns अच्छी है. वह पाक कला पर भी एक किताब लायी थी जिसमें से पढ़कर आलू-मटर की सब्जी बनायी जो उसे पसंद आयी.